मुंबई- बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह जुलाई और अगस्त 2021 में जारी उन तीन कोविड-19 रोधी मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) से संबंधित सभी फाइल और रिकॉर्ड जमा करे जिनके तहत ऐसे लोगों के लोकल ट्रेन में यात्रा करने पर रोक लगा दी गई थी जिन्होंने टीकाकरण नहीं कराया है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा यह सूचित किए जाने के बाद रिकॉर्ड मांगा कि राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव सीताराम कुंटे ने उस समय के कोविड संबंधी आपातकाल पर विचार करते हुए लोकल ट्रेन में यात्रा करने संबंधी प्रतिबंध लगाया गया था। अदालत ने पूछा, ैऐसी कौन सी आपात स्थिति थी जिसने मुख्य सचिव को स्वयं निर्णय लेने में सक्षम बनाया और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कमतर कर दिया?ै पीठ संबंधित प्रतिबंध को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें कहा गया था कि यह कदम अवैध, मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (डी) में प्रदत्त देशभर में स्वतंत्र रूप से घूमने के नागरिकों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। जनहित याचिकाओं में राज्य सरकार द्वारा 15 जुलाई, 10 अगस्त और 11 अगस्त को जारी तीन एसओपी को चुनौती दी गई थी।

याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील एन ओझा ने पहले तर्क दिया था कि राज्य एसओपी को लेकर अपना दिमाग लगाने में विफल रहा और टीकाकरण एवं गैर-टीकाकरण वाले व्यक्तियों के बीच भेदभाव किया, जबकि न तो केंद्र ने और न ही राज्य सरकार ने टीकाकरण अनिवार्य किया था। शुक्रवार को, राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल अंतुरकर ने पीठ को बताया कि चूंकि कुंटे ने राज्य के मुख्य सचिव का पद छोड़ दिया था, इसलिए उन्होंने इस तरह के प्रतिबंध का कारण बताने के लिए अदालत में कोई हलफनामा दायर नहीं किया। अंतुरकर ने कहा, उस समय लोग (कोविड-19 से) मर रहे थे और मुख्य सचिव ने स्थिति को आपात स्थिति माना।
अदालत ने इसके बाद कहा कि वह तीनों एसओपी से संबंधित सभी रिकॉर्ड चाहती है। उच्च न्यायालय ने कहा, ैहमें चुनौती के तहत एसओपी से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड और फाइल देखने की जरूरत है। पूरा रिकॉर्डाफाइल 21 फरवरी को हमारे सामने रखी जाएं। इसके बाद यह तय किया जाएगा कि मुख्य सचिव को बुलाया जाना चाहिए या नहीं।