नई दिल्ली- दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को दिल्ली के स्कूलों और अस्पतालों को दिखाकर वाहवाही लूटने के दिल्ली सरकार के प्रयास को तमाशा करार दिया है। उन्होंने कहा कि यह सच्चाई से आंखें मूंदने और अपनी पीठ थपथपाने के लिए झूठा प्रचार करने के एक शो के अलावा और कुछ नहीं है। बिधूड़ी ने कहा कि आम आदमी पार्टी के नेता झूठे प्रचार में तमाम रिकॉर्ड तोड़ चुके हैं। पार्टी की विधायक आतिशी का यह सफेद झूठ भी पकड़ा जा चुका है कि केरल सरकार के अधिकारी दिल्ली की शिक्षा नीति को समझने के लिए दिल्ली आए थे। क्योंकि केरल के शिक्षा मंत्री वी शिवनकुट्टी ने आतिशी के इस दावे को स्पष्टरूप से झुठला दिया है। अब पंजाब के मुख्यमंत्री को दिल्ली में जो कुछ दिखाया जा रहा है, वह भी सिर्फ झूठ ही है। अगर सच्चाई दिखाई जाए तो मान के साथ-साथ पूरे देश की जनता की आंखें खुल जाएंगी। उन्होंने कहा कि दिल्ली के 1027 सरकारी स्कूलों में 203 में प्रिंसिपल मौजूद नहीं हैं, इस पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने खुद दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है। 418 स्कलों में वाइस प्रिंसिपल नहीं हैं और शिक्षकों के 24 हजार पद खाली पड़े हैं। 22 हजार पदों पर गेस्ट टीचर्स की नियुक्ति की गई थी लेकिन उनमें से किसी को स्थाई नहीं किया गया। आठ साल में दिल्ली सरकार एक भी नया स्कूल नहीं खोल पाई बल्कि 16 स्कूल बंद हुए हैं। बिधूड़ी ने कहा कि अगर दिल्ली के स्कूलों का असली हाल ही दिखाना है तो मुस्तफाबाद जैसे स्कूलों को दिखाओ जहां 6 हजार बच्चों को टैंटों में पढ़ाया जाता है। एक-एक क्लास में 100 से भी ज्यादा बच्चे हैं जबकि मानकों के अनुसार 40 बच्चों से ज्यादा एक क्लास में नहीं होने चाहिए। ज्यादा बच्चे होने के कारण 2-2 घंटे की शिफ्ट चल रही है। ग्रामीण और बाहरी दिल्ली के इलाकों में ज्यादातर स्कूलों का यही हाल है लेकिन दिल्ली सरकार चंद स्कूलों को चमकाकर अपनी शिक्षा नीति की क्रांति का झांसा देती रही है जबकि परफारमेंस ग्रेडिंग इंडेक्स में दिल्ली 32वें स्थान पर लुक गई है। उन्होंने कहा कि 700 स्कूलों में तो साइंस और कॉमर्स की पढ़ाई ही नहीं की जाती। वहां से डॉक्टर, इंजीनियर या सीए कैसे बनेंगे। लड़कियों के दर्जनों स्कूलों का विलय लडक़ों के स्कूलों में कर दिया गया है जिससे अभिभावकों में बहुत रोष है। उन्होंने कहा कि पंजाब के मुख्यमंत्री को दिल्ली के मुहल्ला क्लीनिक और राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल भी उपलब्धि के रूप में दिखाया गया है जबकि दिल्ली की जनता जानती है कि कोरोना के दौरान मुहल्ला क्लीनिक सिर्फ सफेद हाथी ही साबित हुए हैं। वहां प्रशिक्षित डॉक्टरों का अभाव है। डॉक्टरों की गलत दवा के कारण बच्चों की मौत की खबर तो पंजाब के मुख्यमंत्री ने भी पड़ी होगी। जहां तक राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की स्थिति है तो विधानसभा के पिछले सत्र में ही एक सवाल के जवाब में बताया गया कि वहां पिछले दो साल में स्टेंट डालने के दौरान ही 235 मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। एक सामान्य अस्पताल में भी स्टेंट डालने की सुविधा पर लोग विश्वास करते हैं लेकिन सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में लोगों की जान जा रही हैं।