नई दिल्ली – अंतरराष्ट्रीय स्वदेशी ज्ञान प्रणाली और सतत विकास सम्मेलन, जिसका आयोजन शैक्षिक फाउंडेशन, शिवाजी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) और राष्ट्रीय सिंधी भाषा संवर्धन परिषद (NCPSL) द्वारा किया गया, में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उद्घाटन किया। इस सम्मेलन में स्वदेशी ज्ञान प्रणाली (IKS) को आधुनिक शहरी नियोजन, अर्थव्यवस्था, शिक्षा और सतत विकास में शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। इस मंच पर जाने-माने विशेषज्ञों ने चर्चा की कि वास्तु शास्त्र, आयुर्वेद और भू-ऊर्जात्मक ऊर्जा जैसी पारंपरिक विधियाँ आधुनिक तकनीक के साथ मिलकर कैसे टिकाऊ और संतुलित शहरों के निर्माण में सहायक हो सकती हैं। इसी संदर्भ में, सिद्धार्थ एस कुमार, संस्थापक एवं मुख्य ज्योतिषी, नुम्रोवाणी, ने अपने शोध “प्राचीन ज्ञान और आधुनिक शहरी नियोजन का समन्वय: दिल्ली-एनसीआर में भू-ऊर्जात्मक ऊर्जा और वास्तु शास्त्र के समावेश द्वारा सतत विकास” पर प्रस्तुति दी। उनके अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली-एनसीआर में रुकी हुई 82% रियल एस्टेट परियोजनाएँ उच्च भू-ऊर्जात्मक तनाव वाले क्षेत्रों में स्थित थीं, जिसके कारण औसतन 18 महीने की देरी और प्रति प्रोजेक्ट ₹150 मिलियन तक का वित्तीय नुकसान हुआ। साथ ही, इन क्षेत्रों में रहने वाले 62.8% निवासी थकान, अनिद्रा और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित थे, जिससे उनकी जीवन गुणवत्ता प्रभावित हुई। शोध से यह भी स्पष्ट हुआ कि वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार बनाए गए भवनों में बेहतर वेंटिलेशन, ऊर्जा संतुलन और अधिक संपत्ति मूल्य देखा गया, जिससे इनका रखरखाव भी कम खर्चीला रहा। इस शोध ने यह दर्शाया कि यदि शहरी नियोजन में भू-ऊर्जात्मक ऊर्जा का मूल्यांकन और वास्तु सिद्धांतों का समावेश किया जाए, तो निर्माण परियोजनाएँ अधिक टिकाऊ, आर्थिक रूप से व्यवहारिक और रहने योग्य हो सकती हैं। सम्मेलन में विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि स्वदेशी ज्ञान केवल परंपरा नहीं, बल्कि आधुनिक शहरी विकास के लिए व्यावहारिक समाधान प्रदान कर सकता है। स्मार्ट सिटी विकास के अगले चरण में, तकनीक के साथ पारंपरिक भारतीय विज्ञान का समावेश न केवल आर्थिक लाभदायक होगा, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य और समग्र जीवनशैली में सुधार लाएगा।