नई दिल्ली – किसी भी व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्या आने पर सबसे पहले जो मेडिकल हेल्प दी जाती है, उसे फर्स्ट एड कहा जाता है। मरीज को अस्पताल पहुंचाने से पहले अगर समय पर फर्स्ट एड मिल जाए तो हर साल लाखों जानें बचाई जा सकती हैं। घर, दुकान, दफ्तर आदि में जो फर्स्ट एड बॉक्स होता है, उसमें रखी दवाओं का इस्तेमाल कैसे करना है, इसकी जानकारी होना भी फर्स्ट एडर होने का ही एक हिस्सा है। हार्ट अटैक, एक्सीडेंट, चोट लगने आदि पर जो प्री मेडिकल हेल्प दी जाती है उसे फर्स्ट एड कहते हैं। साधारण शब्दों में कहें तो जहां पर भी कोई जीवधारी हैं, वहां फर्स्ट एडर होना चाहिए। फर्स्ट एड काउंसिल ऑफ इंडिया (एफएसीआई), दिल्ली के प्रेसिडेंट शबाब आलम बताते हैं कि सबसे पहले काउंसिल ने अटल बिहारी वाजपेयी यूनिवर्सटी, भोपाल के साथ यह कोर्स शुरू किया था, जिसके पहले बैच में 2000 से ज्यादा बच्चों ने नामांकन कराया था। वहां से निकले इन प्रोफेशनल्स ने कोरोना काल में स्वास्थ्य सेवाओं को संभालने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। जबकि कोरोना इयर में ही इस कोर्स में 16000 से ज्यादा बच्चों ने एडमिशन लिया और मध्य प्रदेश सरकार ने पासआउट बच्चों के लिए नौकरियां निकालीं। इसी दौरान दिल्ली सरकार ने भी स्वास्थ्यकर्मियों की भर्ती के लिए वैकेंसी निकाली, जिसमें फर्स्ट एडर को भी शामिल किया गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2018 में फर्स्ट एड न मिलने से हुई मौतों में 199 देशों में भारत पहले नंबर पर है। यानी प्राथमिक उपचार न मिलने से भारत में हर 23 सेकेंड में एक मौत हो जाती है। इससे समझा जा सकता है कि एक फर्स्ट एडर की अहमियत क्या है।एफएसीआई के संस्थापक शबाब आलम के मुताबिक, फर्स्ट एड कोर्स ‘स्किल इंडिया’ के कॉन्सेप्ट को आगे बढ़ा रहा है। इसे ‘प्रधानमंत्री कौशल योजना’ के अनुरूप डिजाइन किया गया है और उसी के कॉन्सेप्ट पर संचालित भी किया जा रहा है। इसीलिए एक प्राथमिक चिकित्सक बनने के लिए किसी तरह की उम्र सीमा नहीं है। जरूरी नहीं कि फर्स्ट एड देने वाला व्यक्ति किसी विशेष फील्ड से संबंधित हो, 12वीं पास कोई भी आम इंसान प्रशिक्षण के बाद फर्स्ट एडर बनकर लोगों की जान बचा सकता है।एफएसीआई के सहयोग से वर्तमान में झारखंड स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी (जेएसओयू) फर्स्ट एड में दो डिप्लोमा कोर्स चला रही है। पहला जन स्वास्थ्य रक्षक और दूसरा फर्स्ट एड स्पेशलिस्ट डिप्लोमा कोर्स। इन कोर्सेस की पढ़ाई क्लासरूम के अलावा ऑनलाइन भी कराई जा रही है। इसलिए कहीं पर भी बैठा व्यक्ति ये कोर्स करके अपना करियर बना सकता है। एक साल की अवधि के दोनों डिप्लोमा कोर्स का मकसद किफायती फीस में चिकित्सा शिक्षा उपलब्ध कराना है। कोर्स की 60 फीसदी पढ़ाई थ्योरी और 40 फीसदी प्रैक्टिकल रखी गई है। यानी पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रैक्टिकल नॉलेज के लिए किसी अस्पताल या चिकित्सा केंद्र में इंटर्नशिप करनी होगी, उसके बाद ही कोर्स पूरा माना जाएगा। एडमिशन के लिए एफएसीआई के पोर्टल पर जाकर मात्र 500 रुपये में रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं।फर्स्ट एड को शैक्षणिक विषयों में शामिल करवाने वाले शबाब आलम कहते हैं, भारत में एक लाख लोगों पर महज एक डॉक्टर है, इसलिए जिंदगी को महफूज रखने के लिए हर व्यक्ति को सोल्जर बनना पड़ेगा। जिस तरह स्कूल कॉलेज में एनसीसी और स्काउट का एक डिपार्टमेंट होता है, उसी तरह फर्स्ट एड का भी एक डिपार्टमेंट होना चाहिए। पहली से लेकर बारहवीं तक फर्स्ट एड को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। प्राइवेट हॉस्पिटल में बहुत से लोग प्रथामिक उपचार से जुड़े काम करते हैं, लेकिन स्किल्ड होने के बावजूद उनके पास किसी तरह का प्रोफेशनल सर्टिफिकेट या डिग्री नहीं होती, जिसके कारण उनका प्रमोशन और इन्क्रीमेंट नहीं हो पाता। उन्हें जिंदगी भर कम सैलरी और छोटे पद पर ही काम करना पड़ता है। ऐसे लोग अगर फर्स्ट एड कोर्स कर लेते हैं तो वे एक सर्टिफाइड फर्स्ट एडर बनकर तरक्की कर सकते हैं। प्राथमिक चिकित्सक के रूप में किसी भी हेल्थ इंस्टीट्यूट में सम्मानजनक नौकरी कर सकते हैं। सरकारी नौकरी भी हासिल कर सकते हैं। इस जॉब में 25 से 30 हजार तक की सैलरी मिल जाती है। इसके अलावा जिन इलाकों में डॉक्टरों की बेहद कमी है, वहां अपना फर्स्ट एड सेंटर भी खोल सकते हैं।