वाराणसी – के हृदय में, ‘साबो हेरिटेज होम’ न केवल एक बुटीक होटल के रूप में बल्कि सावित्री देवी डालमिया की जीवित विरासत के रूप में बनाया जा रहा है सावित्री देवी डालमिया ब्रिटिश काल में लड़कियों की शिक्षा और उनके सशक्तिकरण की एक शांत और प्रबल समर्थक रहीं और एक दूरदर्शी सोच रखते हुए उन्होंने ने बेटियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई सार्थक प्रयास किये। सावित्री देवी डालमिया जिन्हें प्यार से साबो के नाम से जाना गया एक ऐसे प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली महिला थीं जिन्होंने औपनिवेशिक भारत में एक ऐसे शांत आंदोलन की नींव रखी जिसने बेटियों को शिक्षा के माध्यम से समाज में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। सावित्री देवी डालमिया यानि साबो उन गुमनाम नायकों में से थीं, जिन्होंने ब्रिटिश राज और पितृसत्ता की छाया में भी लड़कियों की शिक्षा और बेटियों के सपने देखने के अधिकार की वकालत की। आध्यात्मिक नगर वाराणसी के हृदय में बसने जा रहा साबो नामक एक बुटीक लक्ज़री हेरिटेज होम सावित्री देवी डालमिया यानि साबो की जीवंत कहानी बताएगा। कभी आलीशान निवास स्थान रहा यह घर अब उस स्नेहमयी और दृढ़ महिला को श्रद्धांजलि होगा, जिसने उस समय समानता में विश्वास करने का साहस किया, जब महिलाओं से अपेक्षा की जाती थी कि वे परदे में रहें और अव्यक्त रहें। उनके बेटे कुणाल डालमिया द्वारा बड़े मनोयोग से तैयार किया जा रहा ‘साबो’ एक होटल से कहीं बढ़कर होगा – यह साहस, करुणा और शांत विद्रोह में निहित शक्ति और संस्कार की विरासत का पुनर्जीवन होगा। 20वीं सदी की शुरुआत में वाराणसी के कचौरी गली की जीवंत गलियों में जन्मी सावित्री देवी डालमिया ने छोटी उम्र से ही रूढ़िगत सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी। उनके पिता एक दूरदर्शी व्यक्ति ने सुनिश्चित किया कि वह अंग्रेजी माध्यम के मिशनरी स्कूल में पढ़ाई करें। वहाँ, उन्होंने किताबों की शक्ति, ज्ञान की ताकत और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की महत्ता समझी। उनका विवाह राजस्थान के प्रसिद्ध डालमिया परिवार में हुआ। उनकी सास काशी में ही मोक्ष प्राप्त करना चाहती थीं इसलिए साबो देवी ने विवाह के बाद अपनी सासू माँ के साथ बनारस में ही रहने का निर्णय किया । अपनी सासू माँ के साथ काशी में ही रहते हुए उन्होंने सुनिश्चित किया कि उनकी छह संतानों में सभी को उच्च शिक्षा प्राप्त करें। अपने दृढ़ निश्चय से ‘साबो’ ने अपने भीतर की परिवर्तनकारी ऊर्जा को कभी खोने नहीं दिया, और न ही अपने मूल्यों से समझौता किया। सामाजिक दायित्वबोध के प्रति दृढ़ता की मिसाल मिलती है बी. एच. यू. के ‘सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन’ और ‘सेठ दूलीचंद डालमिया हॉस्टल’ में। इन दोनों की स्थापना में साबो जी की भूमिका महत्वपूर्ण रही। सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन प्रतिवर्ष हजारों छात्राओं को उच्च शिक्षा के मार्ग पर प्रशस्त करता है और डालमिया हॉस्टल में सैकड़ों छात्रों के सपने साकार होते हैं। शांत स्वभाव से महान कार्य कर जाने की सावित्री देवी डालमिया जी के व्यक्तित्व की छाप आज भी बी. एच. यू. परिसर में महसूस की जा सकती है।जब उनके बेटे कुणाल डालमिया को वाराणसी में पारिवारिक घर विरासत में मिला जिसे मूल रूप से 1960 के दशक के अंत में लक्ष्मी निवास डालमिया ने खरीदा था तो उन्होंने सिर्फ़ एक जीर्णोद्धार परियोजना से कहीं ज़्यादा की कल्पना की। उन्होंने उस महान महिला को सम्मानित करने का अवसर देखा जिसने अपनी विनम्रता, आंतरिक शक्ति और दूरदर्शिता के ज़रिए उन्हें और अनगिनत अन्य लोगों को आकार दिया। घर, जो कभी राजा गोस्वामी परिवार का था, को एक बुटीक हेरिटेज प्रॉपर्टी में बदला जा रहा है और अपनी माँ की याद में इसका नाम कुणाल जी ने साबो रखा है।कोई आवाज़ नहीं उठती थी उस वक़्त पर माँ ने उठाई थी। और उन्होंने इसे अपने सौम्य तरीके से किया, कुणाल डालमिया ने अपनी आवाज़ में भावनाओं को नरम करते हुए कहा। यह घर, यह जगह, उनकी कहानी है। और मैं चाहता था कि लोग उस कहानी का अनुभव करें, जानें कि ब्रिटिश काल में भी, भारतीय महिलाएँ दूसरी महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ रही थीं चुपचाप, लेकिन अथक रूप से। आज के समय में भारत सरकार ने एक महान मिशन चलाया है ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ (बीबीबीपी)। यह योजना 22 जनवरी 2015 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य बाल लिंगानुपात (सीएसआर) में गिरावट के मुद्दे को संबोधित करना है और यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से संचालित एक राष्ट्रीय पहल है। साबो: हर ईंट में एक जीवित स्मृति साबो सिर्फ़ एक होटल नहीं होगा, बल्कि एक प्रीमियम हेरिटेज अनुभव होगा जहाँ हर दीवार, हर कोना आपको अतीत की गरिमा और शाही ठाट-बाट का अहसास कराएगा। यह एक ऐसा स्थान होगा जो व्यक्तिगत इतिहास और सामाजिक प्रभाव से भरा हुआ हो। प्रत्येक कमरे को सोच-समझकर ऐसे तत्वों से सजाया जा रहा है जो सावित्री देवी की भावनाओं को दर्शाते हैं पुरानी तस्वीरों और हस्तलिखित नोटों से लेकर,किताबों की अलमारियों तक, जो उस तरह के साहित्य से भरी हुई होंगी, जिसे वह पसंद किया करती थीं। साबो के सबसे बड़े ऐतिहासिक महत्वों में से एक ये भी रहा है कि 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के दौरान, डालमिया भवन उन उल्लेखनीय हस्तियों के लिए एक आश्रय स्थल के रूप में कार्य करता था, जिनके योगदान ने भारतीय इतिहास की दिशा को आकार दिया था। इसके पवित्र हॉल ने एनी बेसेंट, महात्मा गांधी, सरोजिनी नायडू और आदरणीय रवींद्रनाथ टैगोर जैसे लोगों का स्वागत किया है। सम्मानित मेहमानों की ऐसी परंपरा इस वास्तुशिल्प रत्न के वैभव और भी बढ़ा देती है। मेहमान सिर्फ़ साबो (SABO) में नहीं रुकेंगे वे एक महान कहानी को महसूस भी कर सकेंगे। कई लोग एक ऐसी महिला की कहानी से प्रेरित होकर जाते हैं, जिसने उस समय बदलाव लाने की हिम्मत की, जब ऐसा करना फ़ैशनेबल या सुरक्षित भी नहीं था। SABO की दीवारें उस समय की कहानियाँ बताएंगी जब एक महिला का मानना था कि हर बेटी को सीखने, आगे बढ़ने और नेतृत्व करने का अधिकार है। आगंतुकों और यात्रियों के लिए, SABO केवल ठहरने की जगह नहीं, बल्कि इतिहास में डूबा एक जीवंत अनुभव होगा एक ऐसी जगह जो महान संघर्षों को नमन करती है, विरासत को संजोए हुए है, और हर कदम पर अतीत की स्मृतियों से संवाद करती है।