बिहार – लोकसभा चुनाव और सीएम नीतीश की चुनावी सीट को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. JDU के नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उत्तर प्रदेश के फूलपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने की बात कह रहे थे, लेकिन खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कह दिया कि वो वहां से चुनाव नहीं लड़ेंगे. अब ऐसे में सियासी गलियारों में सवाल ये उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव से पहले बैकफुट पर आ गए हैं.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस बयान ने महीनों से फूलपुर सीट को लेकर लगाए जा रहे कयासों पर विराम लगा दिया है, लेकिन बयान के बाद प्रदेश में एक बार फिर बयानबाजी तेज हो गई है. बीजेपी को मानो इससे बैठे बिठाए एक मुद्दा मिल गया है. जिससे भुनाने में पार्टी पीछे नहीं हट रही है. प्रदेश के पूर्व मंत्री और बीजेपी विधायक नितिन नवीन ने तो ये तक कह दिया कि नीतीश कुमार जानते हैं कि उनकी प्रतिष्ठा नहीं बचने वाली है.एक तरफ बीजेपी तंज कस रही है तो वहीं अब JDU सीएम के बयान के बाद डैमेज कंट्रोल करने में लगी है. जहां JDU कह रही है कि किस सीट से टुनाव लड़ना है ये सीएम का अधिकार क्षेत्र है. वहीं, सहयोगी दल RJD की मानें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई सालों तक केंद्र में मंत्री रहे हैं. यही वजह है कि बिहार के बाहर के लोग और कार्यकर्ता चाहते हैं कि फूलपुर से चुनाव लड़े.सवाल उठता है कि आखिर उत्तर प्रदेश के फूलपुर सीट को लेकर ये कयास लगाए क्यों गए? इसका जवाब है सीट का सियासी समीकरण. दरअसल, फूलपुर संसदीय सीट पर सबसे बड़ी आबादी दलितों की है. जहां दलितों की करीब 18.5 फीसदी आबादी है. इसके बाद पटेल और कुर्मी वोटर हैं. इनकी आबादी 13.36 फीसदी है. मुस्लिम वोटर भी यहां 12.90 फीसदी हैं. इनके अलावा करीब 11.61 फीसदी ब्राह्मण भी प्रयागराज की इस दूसरी लोकसभा क्षेत्र में रहते हैं. वैश्यों की आबादी करीब 5.4 फीसदी है. इनके अलावा कायस्थ करीब 5 फीसदी, राजपूत 4.83 फीसदी, भूमिहार 2.32 फीसदी हैं. कुल मिलाकर सवर्ण वर्ग की आबादी यहां 23 फीसदी है.समीकरण से तो साफ है कि अगर सीएम नीतीश यहां से चुनाव लड़ते हैं तो दलित, कुर्मी और मुस्लिम वोटर्स के भरोसे उनकी चुनावी नैया पार हो सकती है. हालांकि सीएम ने खुद ही इन कयासों पर फुल स्टॉप लगा दिया है.