21 अक्टूबर 1951 को प्रमुख राष्ट्रवादी नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित, भारतीय जन संघ (बीजेएस) को अब अखिल भारतीय जन संघ (एबीजे) के रूप में जाना जाता है और इस वर्ष एक बड़े परिवर्तन के साथ नए भारत की चुनौतियों का सामना करने के लिए इस पुनर्गठित पार्टी ने आज अपनी पुनर्परिभाषित विचारधारा एवं कार्य योजनाओं का अनावरण किया। एबीजे ने अपनी नई और युवा नेतृत्व टीम की घोषणा की और युवा नेता संदीप राजेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पार्टी की बागडोर संभाली। पार्टी ने अपनी कोर और वर्किंग कमेटी को भी अंतिम रूप दे दिया है और अपने राष्ट्रव्यापी कैडर बेस का और विस्तार करने के लिए 23 दिसंबर से बड़े पैमाने पर सदस्यता अभियान शुरू करेगी। एबीजे ने सनातन विचारों, ‘राम राज्य’, ‘राम यात्रा’, ‘भारतीयता’ और समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी कार्य योजना/एजेंडा की भी घोषणा की। पार्टी जल्द ही एक राष्ट्रव्यापी ‘रामयात्रा’ शुरू करेगी और पहली यात्रा दिसंबर के मध्य तक राम सेतु से शुरू होगी।
श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित, अखिल भारतीय जनसंघ एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल है जो भारतीयता (राष्ट्रवाद), लोकतंत्र, जनकल्याण और सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध है। एबीजे का 1977 में जनता पार्टी में विलय कर दिया गया था। इसे 1979 में पुनर्जीवित किया गया था जब इसके सदस्यों के एक सदस्य ने अल्पसंख्यक आयोग के गठन के विरोध में जनता पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। इसने जनसंघ के अन्य सदस्यों को आमंत्रित किया जो जनता पार्टी में बने रहे और जनता पार्टी के विघटन के बाद इसमें फिर से शामिल हो गए। कुछ सदस्य इसमें शामिल हो गए और अन्य सदस्यों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नाम से एक नई पार्टी बनाई जिसकी विचारधारा जनसंघ से अलग थी। उल्लेखनीय है कि आरएसएस समर्थित भाजपा एवं अखिल भारतीय जनसंघ दो अलग-अलग संगठन हैं व इनके कोई सम्बन्ध नहीं। यह पार्टी धर्म, यानी नैतिक मूल्यों व सत्यनिष्ठा के मार्गदर्शन में सिद्धांतों की राजनीति के लिए प्रतिबद्ध है।
हम भारत में राम-राज या धर्मराज कि स्थापना करना चाहते हैं ना कि साम्प्रदायिकता की । किसी भी तरह की साम्प्रदायिकता तथा राजनीति में धर्म की मिलावट सनातन विचारों के खिलाफ है जो भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक ढाँचे का मुख्य आधार है।
नए सिरे से परिभाषित विचारधारा का अनावरण करते हुए नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री संदीप राजेंद्र सिंह ने कहा, “पार्टी एक युवा नेतृत्व टीम एवं नई युवा ऊर्जा के साथ देश में अपनी राजनीतिक भूमिका का फिर से आविष्कार और पुनर्कल्पना कर रही है। एबीजे के राम राज्य के संकल्प हेतु बहुत बड़ी संख्या में युवा कैडर और पार्टी के नेता ‘रघुकुल रीत’ (भगवान राम के वंश के सिद्धांत) का दृढ़ता से पालन करते हैं एवं पार्टी के प्रत्येक सदस्य और समर्थक एबीजे द्वारा परिकल्पित सनातन विचारों और राम राज्य की खोज में अपना योगदान देने के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध हैं।”
सिंह ने आगे कहा, “एबीजे अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का समर्थन करता है, यह ‘राम राज्य’ लाने के लिए बड़े पैमाने पर जन आंदोलन शुरू करने की योजना बना रहा है क्योंकि पार्टी खुद को रघुकुल मानदंडों, मूल्यों और विचारों के एकरूपता में देखती है जो इसे भगवान राम के सिद्धांत या मर्यादा पुरुषोत्तम कि दिशा में ले जाता है। नई व्यवस्था को प्राप्त करने में कुछ चुनौतियाँ हो सकती हैं, लेकिन हमारा दृढ़ विश्वास है कि द्वापर युग फिर से आएगा और ‘सर्व धर्म हिताय’ पर ध्यान केंद्रित करते हुए जन सहयोग के साथ ‘राम राज्य’ का एक सपना साकार होगा।
21 अक्टूबर 1951 को प्रमुख राष्ट्रवादी नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित, भारतीय जन संघ (बीजेएस) को अब अखिल भारतीय जन संघ (एबीजे) के रूप में जाना जाता है और इस वर्ष एक बड़े परिवर्तन के साथ नए भारत की चुनौतियों का सामना करने के लिए इस पुनर्गठित पार्टी ने आज अपनी पुनर्परिभाषित विचारधारा एवं कार्य योजनाओं का अनावरण किया। एबीजे ने अपनी नई और युवा नेतृत्व टीम की घोषणा की और युवा नेता संदीप राजेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पार्टी की बागडोर संभाली। पार्टी ने अपनी कोर और वर्किंग कमेटी को भी अंतिम रूप दे दिया है और अपने राष्ट्रव्यापी कैडर बेस का और विस्तार करने के लिए 23 दिसंबर से बड़े पैमाने पर सदस्यता अभियान शुरू करेगी। एबीजे ने सनातन विचारों, ‘राम राज्य’, ‘राम यात्रा’, ‘भारतीयता’ और समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी कार्य योजना/एजेंडा की भी घोषणा की। पार्टी जल्द ही एक राष्ट्रव्यापी ‘रामयात्रा’ शुरू करेगी और पहली यात्रा दिसंबर के मध्य तक राम सेतु से शुरू होगी।
श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित, अखिल भारतीय जनसंघ एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल है जो भारतीयता (राष्ट्रवाद), लोकतंत्र, जनकल्याण और सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध है। एबीजे का 1977 में जनता पार्टी में विलय कर दिया गया था। इसे 1979 में पुनर्जीवित किया गया था जब इसके सदस्यों के एक सदस्य ने अल्पसंख्यक आयोग के गठन के विरोध में जनता पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। इसने जनसंघ के अन्य सदस्यों को आमंत्रित किया जो जनता पार्टी में बने रहे और जनता पार्टी के विघटन के बाद इसमें फिर से शामिल हो गए। कुछ सदस्य इसमें शामिल हो गए और अन्य सदस्यों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नाम से एक नई पार्टी बनाई जिसकी विचारधारा जनसंघ से अलग थी। उल्लेखनीय है कि आरएसएस समर्थित भाजपा एवं अखिल भारतीय जनसंघ दो अलग-अलग संगठन हैं व इनके कोई सम्बन्ध नहीं। यह पार्टी धर्म, यानी नैतिक मूल्यों व सत्यनिष्ठा के मार्गदर्शन में सिद्धांतों की राजनीति के लिए प्रतिबद्ध है।
हम भारत में राम-राज या धर्मराज कि स्थापना करना चाहते हैं ना कि साम्प्रदायिकता की । किसी भी तरह की साम्प्रदायिकता तथा राजनीति में धर्म की मिलावट सनातन विचारों के खिलाफ है जो भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक ढाँचे का मुख्य आधार है।
नए सिरे से परिभाषित विचारधारा का अनावरण करते हुए नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री संदीप राजेंद्र सिंह ने कहा, “पार्टी एक युवा नेतृत्व टीम एवं नई युवा ऊर्जा के साथ देश में अपनी राजनीतिक भूमिका का फिर से आविष्कार और पुनर्कल्पना कर रही है। एबीजे के राम राज्य के संकल्प हेतु बहुत बड़ी संख्या में युवा कैडर और पार्टी के नेता ‘रघुकुल रीत’ (भगवान राम के वंश के सिद्धांत) का दृढ़ता से पालन करते हैं एवं पार्टी के प्रत्येक सदस्य और समर्थक एबीजे द्वारा परिकल्पित सनातन विचारों और राम राज्य की खोज में अपना योगदान देने के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध हैं।”
सिंह ने आगे कहा, “एबीजे अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का समर्थन करता है, यह ‘राम राज्य’ लाने के लिए बड़े पैमाने पर जन आंदोलन शुरू करने की योजना बना रहा है क्योंकि पार्टी खुद को रघुकुल मानदंडों, मूल्यों और विचारों के एकरूपता में देखती है जो इसे भगवान राम के सिद्धांत या मर्यादा पुरुषोत्तम कि दिशा में ले जाता है। नई व्यवस्था को प्राप्त करने में कुछ चुनौतियाँ हो सकती हैं, लेकिन हमारा दृढ़ विश्वास है कि द्वापर युग फिर से आएगा और ‘सर्व धर्म हिताय’ पर ध्यान केंद्रित करते हुए जन सहयोग के साथ ‘राम राज्य’ का एक सपना साकार होगा।