नई दिल्ली – यूनेस्को दिल्ली कार्यालय के डॉयरेक्टर और भारत, भूटान, श्रीलंका और मालदीव के प्रतिनिधि डॉ. टिम करटिस ने कहा कि शिक्षा सिर्फ हर व्यक्ति का मूल अधिकार नहीं है, बल्कि यह बेहतर भविष्य बनाने की शक्ति है। उन्होंने अमृता विश्व विद्यापीठ में हुए इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन सस्टेनेबल एंड रेजिलेंट फ्यूचर्स में यह बात कही। समारोह में सरकारी शीर्ष नेताओं ने भाग लिया। माता अमृतानंदमयी मठ के महासचिव स्वामी पूर्णामृतानंद पुरी ने समापन भाषण दिया। अमृता यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ जन भी मौजूद थे, जिनमें डॉ. पी. अजीथ कुमार रजिस्ट्रार, डॉ. मनीषा वी. रमेश प्रोवोस्ट, डॉ. बिपिन जी. नायर बायोटेक्नोलॉजी स्कूल के डीन और डॉ. एम. रविशंकर आदि शामिल रहे।यह कॉन्फ्रेंस अमृता स्कूल फॉर सस्टेनेबल फ्यूचर्स, यूनेस्को चेयर ऑन एक्सपीरिएंशियल लर्निंग फॉर सस्टेनेबल इनोवेशन एंड डेवलपमेंट और इंटरनेशनल नेटवर्क फॉर सस्टेनेबल इनोवेशन एंड रेजिलिएंट फ्यूचर्स ने मिलकर आयोजित किया। इस कार्यक्रम में 20 से ज्यादा देशों से करीब 1,000 प्रतिभागियों ने भाग लिया। इसमें 80 से ज्यादा एक्सपर्ट लेक्चर, हैकाथॉन, संगोष्ठी, वर्कशॉप्स और पेपर प्रेजेंटेशन हुए। डॉ. करटिस ने सस्टेनेबिलिटी के लिए शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “पार्टनरशिप फॉर ग्रीनिंग एजुकेशन के जरिए 1,300 से ज्यादा गैर-सरकारी संगठन, प्राइवेट कंपनियाँ और शिक्षण संस्थान हर सिस्टम में हरित पाठ्यक्रम, शिक्षण और समुदाय को शामिल कर रहे हैं। स्थिरता सिर्फ एक लक्ष्य नहीं है, बल्कि एक सिद्धांत है, जो आज की आवश्यकताओं को बिना भविष्य की पीढ़ियों को नुकसान पहुँचाए पूरी करता है। यूनेस्को का लंबे समय से चल रहा ‘मैन एंड द बायोस्फियर’ प्रोग्राम इसी सोच के जरिए प्रकृति की सुरक्षा करता है और मनुष्य को उन इकोसिस्टम्स के साथ संतुलन में रखता है, जिन पर हम निर्भर हैं।यह वैश्विक प्राथमिकताओं के साथ मेल खाता है। कॉन्फ्रेंस को पूरी तरह कार्बन-न्यूट्रल तरीके से आयोजित करके आईसीएसआरएसएफ ने एशिया में पर्यावरण-संवेदनशील कार्यक्रमों के लिए एक नया उदाहरण पेश किया है। यह वैश्विक स्तर पर सस्टेनेबल और हरित कार्यक्रमों की बढ़ती मांग के साथ मेल खाता है। एशिया का पहला कार्बन-न्यूट्रल सस्टेनेबिलिटी कॉन्फ्रेंस अमृता विश्व विद्यापीठ में यूनेस्को के सहयोग से हुआ आयोजित हुआ।यूनेस्को ने इस वैश्विक सस्टेनेबिलिटी कॉन्फ्रेंस में अमृता की साझेदारी की सराहना की। इसमें 20 देशों के 1,000 प्रतिभागी शामिल हुए।