गुड़गांव – गर्भावस्था के दौरान हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म सहित थॉयराईड विकार के मामले बढते जा रहे हैं। गर्भावस्था में मॉं और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर ध्यान देना काफी जरूरी हैं। इसलिए महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य पर ध्यान देना काफी जरूरी हैं।गर्भावस्था के दौरान मधुमेह और उच्च रक्तचाप के साथ थायराइड की समस्या से कई महिला पिडीत हो रही हैं। थायराइड ग्रंथि चयापचय, ऊर्जा के स्तर और विभिन्न शारीरिक कार्यों को विनियमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।गुडगाव स्थित मदरहुड अस्पताल के कंसल्टेंट प्रसूती एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सोनल सिंघल ने कहॉं की, “गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में हाइपोथायरायडिज्म (अंडरएक्टिव थायरॉयड) (सभी गर्भधारण का २.५% मामला) और हाइपरथायरायडिज्म (ओवरएक्टिव थायरॉयड) (सभी गर्भधारण का लगभग ०.१ से ०.२% मामला) जैसे थायरॉयड संबंधी विकार पाए जाते हैं। इसके लक्षण थकान, वजन बढ़ना या घटना, सूजन और मूड में बदलाव हैं जो महिला के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। ऑटोइम्यून डिसऑर्डर, आयोडीन की कमी या पहले से मौजूद थायरॉयड समस्याओं के कारण थायरॉयड की समस्याएँ आम हैं। हर महीने २५ से ४५ वर्ष की आयु की २ से ३% गर्भवती महिलाओं में थायरॉयड की समस्या पाई जाती है और सफल गर्भावस्था के लिए उन्हें समय पर उपचार की आवश्यकता होती है। इसलिए महिलाओं को नियमित रूप थॉयराईड की जाचं करनी चाहिए। डॉ. सिंघल ने कहा,अगर थायरॉयड की समस्याओं का इलाज न किया जाए तो समय से पहले बच्चे का जन्म होना, बच्चे का शारीरिक विकास अच्छे से न होना इस तरह की जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। गर्भवती महिलाओं को थॉयराईड की समस्या का नियमित जाचं करना जरूरी हैं। ताकि समय रहते निदान हुआ तो इलाज संभव हैं। आयोडीन से भरपूर संतुलित आहार और नियमित प्रसवपूर्व जांच रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण हैं। गर्भवती महिलाओं को विशेषज्ञ द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए और नियमित रूप से थायराइड की जांच करवानी चाहिए। ये सक्रिय कदम उठाने से स्वस्थ गर्भावस्था को सुरक्षित रखने और दीर्घकालिक जटिलताओं की संभावना को कम करने में मदद कर सकता है।