ओडिशा- गहिरमाथा के शांत समुद्र तट पर लाखों की संख्या में ओलिव रिडले प्रजाति के कछुए जुटने लगे हैं। अधिकारियों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि कछुओं का यहां अंडे देने के लिए आना उनके सालाना सफर का एक हिस्सा है। कवच के रंग के आधार पर इन कछुओं का यह नाम पड़ा है। अधिकारियों ने बताया कि तट पर कछुओं का जमावड़ा अपने आप में एक दुर्लभ और प्राकृतिक घटनाक्रम है, जिसका नजारा स्तब्ध करता है। गहिरमाथा समुद्र तट को इन कछुओं का दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञात घोंसला माना जाता है। उन्होंने कहा कि गहिरमाथा के अलावा कछुए सामूहिक घोंसले के लिए रुशिकुल्या और देवी नदी के मुहाने पर भी आते हैं। राजनगर मैंग्रोव वन्यजीव संभागीय वन अधिकारी जे. डी. पति ने कहा कि करीब 2.45 लाख मादा कछुए रेंगकर समुद्र किनारे गड्ढे खोदने के लिए आए। पति ने कहा कि समुद्र तट पर घोंसला बनाने के लिए आए कछुओं की एक दिन में यह संभवत: सबसे बड़ी संख्या है। इससे पहले इस बात की आशंका थी कि ओलिव रिडले कछुए अपनी वार्षिक यात्रा त्याग सकते हैं, क्योंकि इस बार घोंसले बनाने में लगभग एक पखवाड़े की देरी हुई है। पिछले साल नौ मार्च से 23 मार्च तक 3,49,694 मादा कछुए अंडे देने के लिए तट पर आए। मादाएं अंडे देने के लिए आमतौर पर रात में समुद्र तट पर बने घोंसले में आती हैं। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि एक मादा कछुआ आमतौर पर लगभग 120-150 अंडे देती है और फिर समुद्र में लौट जाती है। इस अंडे से 45-60 दिनों के बाद बच्चा निकलता है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार समुद्र में प्रवेश करने वाले कछुओं के।,000 बच्चों में से केवल एक ही वयस्क होने की उम्र तक पहुंच पाता है। अधिकारियों ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के अलावा अंडे का अवैध शिकार, कछुओं को पकडऩा और इंसान द्वारा घोंसले को नष्ट करने समेत कई खतरों से कछुओं को जूझना पड़ता है। उन्होंने कहा कि घोंसलों की सुरक्षा को वन विभाग प्राथमिकता दे रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि वन्यजीव कर्मचारी 24 घंटे निगरानी करते हैं, ताकि सियार, लकड़बग्घा और जंगली कुत्तों जैसे शिकारियों को अंडों से दूर रखा जा सके।