नई दिल्ली- राजधानी दिल्ली में सबसे ऊं चे कूड़े के पहाड़ के साए में रह रहे गाजीपुर के लोगों में दमा, छाती में संक्रमण, सांस लेने में परेशानी और अन्य श्वास संबंधी बीमारियां आम है और उनकी मुश्किल में इस कूड़े के पहाड़ में बार-बार लगने वाली आग और इजाफा कर देती हैं तथा उन्हें सांस लेने तक के लिए संघर्ष करना पड़ता है। चुनाव घोषणा पत्रों में नियमित रूप से गाजीपुर डम्पिंग यार्ड का मुद्दा शामिल रहा है और यह राजनीतिक आरोप-प्रत्योप का कारण बनता है लेकिन इसके आसपास के लोग लगातार स्वास्थ्य खतरे को लेकर शिकायत कर रहे हैं। इस डम्पिंग यार्ड में 28 मार्च को आग लगी थी और करीब यह 50 घंटे तक बुझी नहीं। हालांकि, इससे जानमाल का नुकसान नहीं हुआ परंतु आसपास के लोगों को आसमान में छाई धुएं की मोटी परत की वजह से परेशानी का सामना करना पड़ा। पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर में कूड़े के ढेर के नजदीक रहने वाली 55 वर्षीय जुम्मल बताती हैं कि वह दमे की शिकार हैं और पिछले नौ साल से लगातार श्वास संक्रमण का सामना कर रही हैं। उन्होंने बताया कि जब से सेहत की समस्या हुई है तब से मैंने घर से बाहर निकलना छोड़ दिया है। जब 28 मार्च को आग लगी तब सांस लेनी भी मुश्किल हो गई। हम केवल खिडक़ी बंद कर और घर में रहकर बचने की कोशिश कर सकते हैं। इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। जुम्मल ने बताया कि उन्होंने कई बार संबंधित अधिकारियों से मिलने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। वहीं, कई प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि आग लगने की नवीनतम घटना के दौरान यहां रहने वाले लोग या तो घरों में बंद थे या अस्पताल जाते नजर आए। वर्ष 1983 से ही गजीपुर में रह रहे रियाजुद्दीन ने कहा कि उनके परिवार के सभी सदस्य बीमारी से ग्रस्त हैं और उन्होंने इसके लिए बार-बार कूड़े की ढेर में लगने वाली आग और वहां से निकलने वाली बदबू को उनकी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराया। रियाजुद्दीन ने कहा कि मेरी पत्नी यहां की जहरीली हवा की वजह से दमे की मरीज हो गई है। एमसीडी हमारी समस्या पर ध्यान नहीं देता। नेता केवल चुनाव के दौरान यहां का दौरा करते हैं। वे हमारे पास लंबे चौड़े वादे के साथ आते हैं लेकिन समस्या अब भी बनी हुई है।