पटना- सारण में जहरीली शराब के सेवन से मृतक संख्या बढक़र 30 हो गई। छह साल पहले शराबबंदी की घोषणा के बाद मृतकों की यह संख्या सबसे अधिक है। यह मामला राज्य विधानसभा में भी छाया रहा, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों ने राजभवन तक मार्च निकालने से पहले दोनों सदनों में कार्यवाही बाधित की। सारण के जिलाधिकारी डीएम राजेश मीणा ने बताया कि मंगलवार रात से अब तक मृतक संख्या बढक़र 30 हो गई है। हालांकि, अपुष्ट खबरों में दावा किया गया है कि जहरीली शराब के सेवन से 50 से अधिक लोगों की मौत हुई है। डीएम अपनी इस बात पर कायम रहे कि मौतें संदिग्ध जहरीली शराब के सेवन से हुई हैं जिसकी पुष्टि फोरेंसिक प्रयोगशाला में मृतकों के विसरा के परीक्षण के बाद होगी। दोपहर में विधानसभा परिषद की कार्यवाही शुरू होने के चंद मिनट बाद ही विधान पार्षदों ने उनके द्वारा लाए गए स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा के लिए अध्यक्ष द्वारा अनुमति नहीं दिए पर हंगामा किया जिसके बाद सदन को दिन में दो बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया। कुछ ही देर बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में गुस्से से भरा बयान दिया। विधानसभा में भी घटना को लेकर इसी तरह का हंगामा हुआ था जिसके चलते पूर्वाह्न 11 बजे सदन की कार्यवाही शुरू होने के कुछ ही मिनट बाद इसे स्थगित कर दिया गया। एक दिन पहले नीतीश कुमार ने भडक़ते हुए कहा था, जो पिएगा वो मरेगा। कोई सहानुभूति नहीं है और कोई मुआवजा नहीं मिलेगा , जिसकी काफी आलोचना हुई थी। कुमार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भाकपा के विधायक सत्एंद्र यादव की इस दलील पर आपत्ति जताते हुए अपनी कुर्सी से उठे थे कि सरकार शोक संतप्त परिवार के सदस्यों को आर्थिक मुआवजा देने पर विचार कर रही है।घटना से व्यथित कुमार ने कहा, कृपया इस तरह का रुख न लें। मैंने हमेशा वाम दलों को अपने सहयोगियों के रूप में देखा है। उन्होंने कहा, अगर आप लोगों को लगता है कि शराबबंदी गलत है, तो इसे स्पष्ट रूप से कहें। कानून को सभी की सहमति से लाया गया था। अगर आज सभी सोचते हैं कि हम गलत थे, तो हम इसे वापस ले सकते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा, लेकिन याद रखें कि इस गंदी आदत के कारण ए मौतें हुई हैं। उन्होंने दोहराया, जो पिएगा वो मरेगा। मुख्यमंत्री का यह बयान दोपहर के भोजनावकाश से पहले और भाजपा विधायकों के बहिर्गमन के तुरंत बाद आया। कार्यवाही में विपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा और विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी के बीच कई बार तीखी नोकझोंक हुई। बृहस्पतिवार रात सारण में प्रभावित मशरक ब्लॉक का दौरा करने वाले सिन्हा ने सदन के अंदर दावा किया कि जहरीली शराब त्रासदी ने 100 से अधिक लोगों की जान ले ली है। कई मीडिया संगठन ने अपुष्ट रिपोर्ट के हवाले से हताहतों की संख्या 50 के आसपास बताई है। सिन्हा ने विधानसभा के बाहर संवाददाताओं से कहा, मैं विधानसभा अध्यक्ष के आचरण पर शर्मिंदा हूं, जो सरकार के फरमानों के अनुसार काम कर रहे हैं। मैं उनसे पहले विधानसभा अध्यक्ष था, लेकिन मैंने कभी भी इस तरह पक्षपातपूर्ण तरीके से काम नहीं किया। सिन्हा ने कहा, सारण में जो कुछ हुआ वह राज्य प्रायोजित सामूहिक हत्या है। प्रशासन ने जिस विशेष जांच दल एसआईटी का गठन किया है वह एक छलावा है। हमलोग राज्यपाल फागू चौहान से मिलकर उन्हें एक ज्ञापन सौंपने जा रहे हैं। हमारी मांग है कि इस संबंध में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो सीबीआई से जांच कराई जाए। अगर यह संभव नहीं है तो न्यायिक जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा, हम राज्यपाल से आग्रह करेंगे कि वे सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश करें और राष्ट्रपति शासन लागू हो क्योंकि सत्तारूढ़ गठबंधन के शासन में असंवेदशील रवैए के कारण राज्य में लोगों का जीवन खतरे में है। ऐसा प्रतीत होता है कि सिन्हा अध्यक्ष के एक चेतावनी भरे नोट से भी व्यथित हैं जिसमें उन्होंने लिखा है कि विपक्ष के नेता के रूप में सिन्हा को संसदीय मानदंडों का पालन करना चाहिए। पत्रकारों के सामने नियम पुस्तिका की एक प्रति लहराते हुए उन्होंने कहा, हमने मामले को सख्ती से मानदंडों के अनुसार उठाया। उन्होंने कहा, विधानसभा अध्यक्ष हमें उपदेश देने के लिए उतावले नजर आ रहे हैं। उन्हें उस आदमी के खिलाफ कार्वाई करने की हिम्मत दिखानी चाहिए जिसने अध्यक्ष के आसन को जूतों से रौंद डाला और वर्तमान में उप मुख्यमंत्री का पद संभाल रहा है। सिन्हा ने यह टिप्पणी मार्च में हुई उस घटना के संदर्भ में की जबकि विपक्ष में रहे राष्ट्रीय जनता दल ने एक विधेयक पर हंगामा किया था और तत्कालीन अध्यक्ष सिन्हा को उनके कक्ष के अंदर कई घंटों तक बंधक बनाए रखा था। उस समय विपक्ष के नेता रहे तेजस्वी यादव सदन के अंदर हंगामे के बीच विधानसभा अध्यक्ष के आसन पर चढ़ गए थे। कहा जाता है कि सदन की एक समिति ने अगस्त में अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। हालांकि इसके बाद राजनीतिक उथल-पुथल ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया और राजद ने मुख्यमंत्री की जद यू से हाथ मिला लिया। भाजपा आरोप लगाती रही है कि नई सरकार ने रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया क्योंकि यह राजनीतिक रूप से असुविधाजनक थी।