नई दिल्ली – भारत सरकार ने तपेदिक (टीबी) रोग के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए 100 दिन का विशेष अभियान शुरू किया है। इस अभियान का उददेश्‍य देश में तपेदिक से सबसे अधिक प्रभावित 347 जिलों में रोगियों का जल्‍दी पता लगाना और उनका उपचार करना है। भारत यह अभियान ऐसे समय में चला रहा है, जब एक प्रमुख रिपोर्ट में टीबी के खिलाफ भारत की हालिया उपलब्धियों को रेखांकित किया गया है।विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) की इस रपट के अनुसार बीते लगभग दस साल में भारत में टीबी मामलों में 17.7 प्रतिशत की उल्‍लेखनीय कमी आई है। इसके अनुसार 2015 में भारत में प्रति लाख की आबादी पर टीबी के 237 मामले सामने आए थे, वहीं 2023 में यह संख्‍या घटकर 195 रह गई। सबसे बड़ी बात इस दौरान भारत में टीबी के मामलों में आई गिरावट वैश्विक गिरावट (8.3 फीसद) से लगभग दोगुनी रही। इसी तरह टीबी से होने वाली मौतों की संख्‍या साल 2015 में 28 (प्रति लाख) थी जो 2023 तक 21.4% घटकर 22 रह गई। अक्तूबर में जारी इस ‘वैश्विक टीबी रिपोर्ट 2024’ में भारत में टीबी के मरीजों की पहचान करने में उल्‍लेखनीय प्रगति को भी रेखांकित किया गया है।दरअसल, संक्रामक श्रेणी के टीबी रोग को किसी समय ‘धीमी मौत’ माना जाता था। अगर किसी को टीबी हो जाती थी तो उसे व उसके समूचे परिवार को एक तरह से सामाजिक तिरस्‍कार- बहिष्‍कार झेलना पड़ता था। किसी व्‍यक्ति या परिवार के लिए इस रोग से ग्रस्‍त हो जाने के बाद इसके मानसिक, सामाजिक व आर्थिक दुष्‍प्रभाव भी कम न थे। लेकिन खासकर बीते एक दशक में इस रोग को लेकर सरकार व आम लोगों की सोच में आमूल चूल बदलाव आया है। 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने सतत विकास लक्ष्यों की 2030 की समय सीमा से बहुत पहले ही देश से टीबी के नासूर को जड़ से मिटाने का विचार व विजन रखा। प्रधानमंत्री मोदी की उसी सोच को आगे बढ़ाते हुए केंद्र सरकार व उसके स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने अब टीबी के खिलाफ सौ दिन का विशेष अभियान चलाया है।टीबी रोग को जड़ से मिटाने की भारत की लड़ाई में कई चुनौतियां आती रही हैं। इसमें सबसे बड़ी चुनौती तो रोग का पता लगाना व रोगी की पहचान करना है। कहीं न कहीं इस रोग को ‘कलंक’ के रूप में देखा जाता रहा है इसलिए लोग इसे छुपाते थे या निजी चिकित्‍सकों की शरण ले लेते थे। इसलिए इसके रोगियों को चिन्हित करना, उनके उपचार पर निगरानी रखना कठिन था। इसके अलावा आर्थिक रूप से कमजोर रोगियों को इसका मुफ्त इलाज उपलब्‍ध करवाना या उनको वित्‍तीय मदद देना भी मुश्किल हो जाता था। लेकिन केंद्र सरकार ने बीते कुछ साल में साहसी नीतिगत निर्णयों से इन कमियों को दूर करने का प्रयास किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा के शब्‍दों में कहें तो केंद्र सरकार ने टीबी से इलाज की सेवाओं को रोगी-अनुकूल और विकेंद्रीकृत बनाने के लिए बहुत सी नई रणनीतियां अपनाई हैं। सरकार के प्रयासों के चलते आज टीबी रोग का पता समय से पहले ही चल जाता है, जिसका श्रेय देश भर में 1.7 लाख से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिरों को जाता है। सरकार ने देश में जांच प्रयोगशालाओं की संख्‍या बढाकर 8,293 कर दी है, जो 2014 में सिर्फ 120 थी। इससे टीबी की नैदानिक ​​सेवाएं मजबूत हुई। साथ ही टीबी के लिए एक नई छोटी और अधिक प्रभावी व्यवस्था सहित दैनिक आहार शुरू किया है, जिससे टीबी के उपचार की सफलता दर 87 प्रतिशत तक बढ़ गई है।यह भी एक तथ्‍य है कि टीबी रोग से ग्रस्‍त रोगियों की ज्‍यादातर संख्‍या उस तबके से आती है, जो आमतौर पर गरीबी में जी रहा है। ऐसे में चिन्हित रोगी के लिए उपचार जारी रखने में सरकारी स्‍तर पर आर्थिक मदद बहुत मानीखेज हो जाती है। यहां उल्‍लेखनीय है क‍ि सरकार ने 1.17 करोड़ से अधिक टीबी रोगियों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से 3,338 करोड़ रुपये की निक्षय सहायता दी है। सरकार ने हाल ही में निक्षय पोषण राशि को 500 रुपये से बढ़ाकर 1000 रुपये कर दिया है और टीबी रोगियों के पोषण सहायता के लिए ऊर्जा बूस्टर जोड़े हैं।एक और महत्‍वपूर्ण कदम उठाते हुए सरकार ने अब निजी चिकित्सकों के लिए भी यह अनिवार्य कर दिया है कि वे टीबी का कोई भी नया रोगी आने पर उसके बारे में तुरंत सूचित करें, ताकि उसका उपचार फौरन शुरू किया जा सके। सरकार के इस छोटे से कदम के बड़े प्रभाव सामने आए है। निजी क्षेत्र में टीबी के बारे में सूचित करने की दर में 8 गुना वृद्धि हुई है। टीबी की जांच और उपचार सेवाओं के साथ आयुष्मान आरोग्य मंदिर का एकीकरण किया जा रहा है। टीबी रोगियों का पता लगाने के लिए मोबाइल वैन “निक्षय वाहन” की शुरूआत को भी यहां रेखांकित किया जा सकता है। सरकार का 100 दिन का यह अभियान राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तत्वावधान में उस राष्ट्रीय तपेदिक उन्मूलन कार्यक्रम का ही एक हिस्‍सा है, जो तपेदिक उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय रणनीतिक योजना 2017-2025 से संबद्ध है। यह योजना तपेदिक के मामलों में कमी लाने, निदान और उपचार की क्षमताओं को बेहतर बनाने व इस रोग के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को दूर करने पर केंद्रित है। यह महत्वाकांक्षी पहल 2018 के टीबी उन्मूलन शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी द्वारा निर्धारित विजन को प्रतिबिम्बित करती है, जिसमें उन्होंने 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल करने का संकल्प लिया था। निसंदेह रूप से टूबर्क्यूलोसिस जिसे आम बोलचाल में टीबी, तपेदिक या क्षय रोग कहा जाता है, के खिलाफ एक नए विजन से लड़ाई बीते एक दशक में लड़ी गई है और भारत सरकार का मौजूदा सौ दिवसीय गहन राष्ट्रव्यापी अभियान इस लड़ाई को और मजबूत करेगा। सरकार के इस अभियान से उम्‍मीद की जा सकती है कि भारत, टीबी मुक्त राष्ट्र बनने की ओर तेजी से कदम बढ़ाएगा। प्रोफाइल- 1डॉ. मोहित टांटिया नेशनल इंस्‍टीट्यूट फोर लोकोमोटर डिसएबिलिटीज (एनआईएलडी-कोलकाता) के कार्यकारी सदस्‍य हैं। वे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की परामर्श समिति के भी सदस्‍य हैं।

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