लोक आस्था का महापर्व छठ शुरू हो गया है. चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व की धूम हर तरफ देखने को मिल रही है. बता दें कि छठ पूजा का त्योहार चार दिनों तक चलता है और अनुष्ठान, भक्ति और गहन आध्यात्मिक अर्थ से भरा हुआ होता है. आज नहाय खाय का पहला दिन है. छठ व्रतियों ने गंगा स्नान कर भगवान भास्कर की पूजा कर नहाय खाय के साथ छठ की शुरुआत की. आज के दिन को कद्दू भात भी कहा जाता है. बता दें कि इस पर्व का समापन 20 नवंबर को होगा. इस पर्व में भगवान सूर्य के साथ छठी माई की पूजा विधि-विधान से की जाती है, यह सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. इस पर्व में आस्था रखने वाले लोग सालभर इस पर्व का इंतजार करते हैं. इसको लेकर धार्मिक मान्यता है कि, छठ व्रत संतान प्राप्ति की कामना, संतान की खुशहाली, सुख-समृद्धि और दीर्घायु के लिए किया जाता है आपको बता दें कि यह व्रत बहुत ही कठिन माना जाता है। इसमें पूरे 36 घंटे तक कड़े नियमों का पालन करते हुए यह व्रत रखा जाता है. छठ पूजा का व्रत रखने वाले लोग चौबीस घंटे से अधिक समय तक निर्जला उपवास रखते हैं. इस पर्व का मुख्य व्रत षष्ठी तिथि को किया जाता है, लेकिन छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से होती है, जो सप्तमी तिथि को सुबह सूर्योदय के समय अर्घ्य देने के बाद समाप्त होती है.नहाय खाय के बाद कल यानी 18 नवंबर को खरना होगा. बता दें कि खरना यानी लोहंडा छठ पूजा का दूसरा दिन होता है. इस दिन सूर्योदय सुबह 06:46 बजे और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा.बता दें कि इसमें छठ व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखेंगे और शाम को गुड़ से बनी खीर और रोटी खाएंगे. इसके बाद 36 घंटा निर्जला उपवास रखकर रविवार की शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और 20 नवंबर सोमवार की सुबह उदयगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा.छठ पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है. हालांकि इन राज्यों के लोग जिस भी शहर या विदेश में होते हैं वहां छठ पर्व मनाते हैं. अब दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में भी यह त्योहार बिहार और यूपी की तरह पूरे धूमधाम से मनाया जाने लगा है. यानी छठ पर्व की धूम देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक पहुंच चुकी है. छठ पूजा एक सांस्कृतिक परंपरा है जो संतुलन, पवित्रता और सूर्य के प्रति समर्पण का वर्णन करती है. सूर्य को स्वास्थ्य, धन और सफलता का देवता माना जाता है. वहीं छठ पूजा भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व का हिस्सा है. इसमें श्रद्धालु अपनी पुरानी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत से जुड़ते हैं और पर्यावरण संरक्षण पर भी चर्चा करते हैं. यह चार दिवसीय यात्रा है जिसमें भक्त कृतज्ञता और भक्ति की भावना से भरकर पूजा-अर्चना करते हैं.