नई दिल्ली – किशोरावस्था की शुरुआत से ही कई विद्यार्थी ऐसे प्लेटफॉर्म्स से जुड़ जाते हैं जो उनके संवाद, संपर्क और स्वयं की पहचान को प्रभावित करते हैं।जहां एक ओर सोशल मीडिया ज्ञान, रचनात्मकता और जुड़ाव के अवसर देता है, वहीं दूसरी ओर यह कई गंभीर चुनौतियां भी साथ लाता है। ऐसे में एक अभिभावक और शिक्षक के रूप में हमारा साझा दायित्व है कि हम बच्चों को इस डिजिटल दुनिया में समझदारी और दायित्वपूर्ण ढंग से आगे बढ़ने के लिए तैयार करें। रायन इंटरनेशनल स्कूल डोंबिवली के प्रिंसिपल संदीपा कुमार कहतीं हैं कि डिजिटल साक्षरता की शुरुआत घर से होती है। घर जिम्मेदार ऑनलाइन व्यवहार की नींव होती है। डिजिटल साक्षरता यानी यह समझ कि इंटरनेट कैसे काम करता है, जानकारी कैसे फैलती है और स्वयं को कैसे सुरक्षित रखें इसमें माता-पिता की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है।बच्चों को यह सिखाना आवश्यक है कि वे इंटरनेट पर देखी गई बातों को जांचें, उनके बारे में सोच-समझकर निर्णय लें और यह समझें कि डिजिटल दुनिया में हर गतिविधि का एक स्थायी रिकॉर्ड बनता है। प्राइवेसी सेटिंग्स की जानकारी देना, ऑनलाइन धोखाधड़ी को पहचानना और आवश्यकता से अधिक सूचना सांझा करने से बचना – ये सब बातें दैनिक बातचीत का भाग होना चाहिए। जिस तरह हम बच्चों को सड़क पार करना सिखाते हैं उसी तरह उन्हें पोस्ट करने, कमेंट और शेयर करना भी सीखना चाहिए। इसके साथ ही स्क्रीन टाइम की सीमा तय करना भी सोशल मीडिया के साथ जुड़ा एक और आवश्यक पहलू है।अनियंत्रित स्क्रीन टाइम नींद, एकाग्रता और सामाजिक जुड़ाव को नुकसान पहुंचा सकता है।माता-पिता को चाहिए कि बच्चों के स्क्रीन डिजिटल समय खेलने, दोस्तों से साथ बातचीत करने और शारीरिक गतिविधियों की समय सीमा तय करें। रायन इंटरनेशनल स्कूल डोंबिवली के प्रिंसिपल संदीपा कुमार कहतीं हैं कि स्कूल में हम इन प्रयासों का समर्थन करते हैं हम कक्षाओं में टेक्नोलॉजी का संतुलित उपयोग,वर्कशॉप और काउंसलिंग के द्वारा बच्चों को एक स्वस्थ डिजिटल जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। हम ऑनलाइन व्यवहार में सम्मान को बढ़ावा देना,डिजिटल दुनिया में बच्चों को ऑनलाइन सम्मानजनक व्यवहार और बच्चों को यह समझने के लिए प्रेरित करते हैं कि उनकी हर टिप्पणी या मैसेज सामने वाले पर क्या असर डालता है।हमारे स्कूल के ‘कैरेक्टर एजुकेशन प्रोग्राम’ के तहत हम साइबर बुलिंग के खतरों, हर प्रकार की बातचीत में दया भाव की अहमियत और डिजिटल दुनिया का हिस्सा बनने की जिम्मेदारियों पर जोर देते हैं।आदर, सहानुभूति और ज़िम्मेदारी जैसी बातें जितनी ऑफलाइन ज़रूरी हैं, उतनी ही ऑनलाइन भी आवश्यक है।एक बेहतर डिजिटल पीढ़ी की ओर डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देकर, सहानुभूति का भाव विकसित करके और स्पष्ट लेकिन न्यायसंगत सीमाएं तय करके, हम एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर सकते हैं जो डिजिटल दुनिया में न केवल अपने पोस्ट्स बल्कि अपने सिद्धांतों पर भी गर्व की अनुभूति कर सकते हैं।