गुमला – बाजार समिति विभाग पूरी तरह से बदहाल स्तिथि में बना हुआ है. एक समय सरकार को करोड़ों का राजस्व देने वाला विभाग आज अपने कर्मियों के लिए सही रूप से वेतन देने के रूप में भी राजस्व की उगाही नहीं कर पा रहा है. वहीं, विभाग का कार्यालय का भवन भी पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो गया है, जिसके कारण कभी भी कोई भी बड़ा हादसा हो सकता है. झारखंड में किसानों और व्यापारियों के लिए अलग-अलग जिलों में बाजार समिति का गठन किया गया.बाजार समिति बनाने का उद्देश्य था ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले किसानों के लिए एसी जगह बनाना जहां वो अपने उत्पादों को आराम से बेच सके और व्यापारी भी सामान खरीद सकें. अगर बात गुमला जिला की करें तो जिले के तमाम प्रखंडों में कुल 84 बाजार समिति है, लेकिन सरकारी उदासीनता के चलते बाजार समितियां बदहाल हो गई हैं.बाजार समितियां की बदहाली का सबसे ज्यादा दंश स्थानीय किसान और व्यापारी झेल रहे हैं. वहीं, समितियों के अधीन आने वाले बाजार हाटों की हालत भी खराब होने लगी है. जहां कभी बाजार समितियों से सरकार को दो करोड़ से ज्यादा का सालाना राजस्व मिलता था. वहीं, अब ना के बराबर राजस्व मिलता है. राजस्व ना मिलने से ना तो समितियों में कोई व्यवस्था की जाती है और ना ही कर्मचारियों की नियुक्ति हो पाती है. आलम ये है कि ज्यादातर बाजार समितियों के भवन जर्जर हो चुके हैं. वहां ना तो पानी का इंतजाम है ना ही साफ-सफाई की सुविधा.गुमला बाजार समिति में 12 पदों का सृजन होने के बाद भी सिर्फ 1 कर्मचारी नियुक्त है. जिसके चलते कार्यालय में काम के नाम पर महज खानापूर्ति की जा रही है. भवनों की हालत तो ऐसी है कि कब कोई हादसा हो जाए कुछ कह नहीं सकते. विभाग के पदाधिकारी अभय कुमार की मानें तो भवन की जर्जर हालत को देखते हुए इस भवन को कंडम भी घोषित कर दिया गया है. बावजूद उन्हें वहां बैठना पड़ता है क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है. कई बार सरकार को पत्र लिखने के बाद भी भवन निर्माण या मरम्मतीकरण को लेकर कोई पहल नहीं की जा रही है.बाजार समिति की ये हालत सिर्फ गुमला में ही नहीं बल्कि पूरे झारखंड में ही अमूमन ऐसी ही है. जहां राज्य के सभी बाजार समिति सचिवों के भरोसे चल रही है. समितियों में संसाधन की कमी के चलते काम नहीं हो पा रहा. ज्यादातर बदहाल समितियां घाटे में चल रही है. बाजार समितियों में कर्मचारियों की भी कमी है. कई बाजार समिति तो संचालित भी नहीं हो रहे हैं. बाजार समितियों की इस बदहाली का सबसे बड़ा कारण है शासन प्रशासन की अनदेखी. जिसके चलते अब किसानों और व्यापारियों को परेशानी झेलनी पड़ रही है. लोगों की मांग है कि सरकार जल्द से जल्द बाजार समितियों को ठीक करे ताकि ग्रामीणों को इसका लाभ मिल सके. झारखंड में बाजार समितियों को दुरुस्त करने की जरूरत है. जरूरत है कि सरकार किसानों और ग्रामीणों की इस समस्या को गंभीरत से ले.