नई दिल्ली – साहित्य कला परिषद द्वारा आयोजित चार दिवसीय भरतमुनि रंग उत्सव का एलटीजी सभागार में शानदार समापन हुआ। उत्सव के अंतिम दिन चार नाटकों (आर्यश्री आर्य निर्देशित दिल की दुनिया, संजीव अग्निहोत्री निर्देशित ऑडिशन, अविनाश तिवारी निर्देशित लास्ट परफॉर्मेंस और शिव कुंदर निर्देशित बोझ) का दिल्लीवासियों ने भरपूर आनंद लिया। नाटक दिल की दुनिया पद्मश्री इस्मत चुगताई की रचना पर आधारित है, जिसे आर्यश्री आर्य ने अपने कुशल निर्देशन से और भी दर्शनीय बना दिया। यह कहानी है 1930 के दशक की। इस्मत आपा इसमें गुलाम भारत में महिला सशक्तिकरण की पैरवी करती हुई तत्कालीन सामाजिक बाधाओं की आलोचना करती हैं। कहानी में बाल विवाह के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के लिए शिक्षा की तत्काल जरूरत पर बल दिया गया है। कहानी में निर्देशक आर्य ने मौजूदा परिप्रेक्ष्य में थोड़ी और गहराई दी है। इसके बाद हरिसुमन बिष्ट द्वारा लिखित एवं संजीव अग्निहोत्री निर्देशित नाटक ऑडिशन का मंचन हुआ। फिर अविनाश तिवारी द्वारा निर्देशित एंटोन चेखव की रचना लास्ट परफॉर्मेस का मंचन हुआ। समापन पवन झा द्वारा लिखित और शिव कुंदर द्वारा निर्देशित बोझ के सफल मंचन से हुआ। निर्देशक इसके जरिये मानव जीवन में अत्यधिक निराशा से उपजे परिणामों का अत्यंत सटीक चित्रण करते हैं। रंग उत्सव के तीसरे दिन चार नाटकों (एक कप चाय, धूप का एक टुकड़ा, बारिश और जेबकतरा) का मंचन हुआ। एक कप चाय नाटक के जरिये राजेश तिवारी ने महिला के कठिन संघर्ष को दिखाया। वहीं, पूजा ध्यानी ने धूप का एक टुकड़ा के जरिये एक महिला की दिलचस्प कहानी पेश की। विजय श्रीवास्तव ने बारिश के जरिये 1950 के दशक के भारत फैशन और जीवनशैली को मंच पर पेश किया। जावेद समीर ने जेबकतरा में एक जेबकतरे की परिवर्तनकारी यात्रा पेश की। दूसरे दिन, सोम्यब्रत भट्टाचार्य ने एस्प्रेसो में कॉफी शॉप में वेटर-ग्राहक की बातचीत के जरिये सामाजिक असमानताओं को उजागर किया। जबकि अनिल शर्मा ने बेबाक मंटो में अच्छे स्वभाव की शोषित तवायफ की उथल-पुथल भरी जिंदगी को दर्शाया। राजेश बाली ने बिजुका में मृगांको बाबू और नौकर अभिराम के प्रति उनके दुर्व्यवहार की भावनात्मक कहानी दिखाई। वहीं बिंब में विजयदान देथा ने ग्रामीण लड़के की शिक्षा की खोज बनाम सामाजिक जटिलताओं को बारीकी से उजागर किया। रंग उत्सव के पहले दिन मृजा, प्याज के फूल और उसके साथ (एक लड़की का सच) का मंचन हुआ।