अहंकार हमारी खुद की वह पहचान है जो दुनिया की नजर में हम खुद बना लेते हैं। मनोविज्ञान और अध्यात्म में इस शब्द की यही परिभाषा है। यह अंतर्मन की आवाज़ है जो कहती है कि हम ही ‘सही हैं’ या ‘हम सही नहीं’ हैं। हमारे इस अहंकार पर मुहर लगाने के लिए हम तमाम उपलब्धियों, दिखावे पर भरोसा और दूसरों से अपनी तुलना किया करते हैं। और जब इन बातों से ही हमारी पहचान रह जाती है तो अलग-थलग पड़ने, एकाकीपन और मन में चिंता घर कर लेती है।अहंकार के साथ हमेशा ‘कुछ और’ की भूख लगी रहती है – कुछ और प्रशंसा, अधिक महत्व पाने की चाहत, अधिक नियंत्रण। लेकिन इन बाहरी मान्यताओं के पीछे भागना एक कुचक्र की तरह है जो अक्सर हमें अधिक अधूरा और अलग-थलग महसूस कराता है। यहीं काम आता है मेडिटेशन – खुद को समेटने, आत्म निरीक्षण करने और अंततः खुद को इन बातांे से दूर कर लेने का माध्यम।
मेडिटेशन मन का आईना है
मेडिटेशन का बुनियादी तत्व थोड़ा धीमा होने और अपने-आप में सिमटने को न्योता देना है। यह मन में उठते विचारों को बस देखने का माध्यम है। इस बारे में किसी निर्णय पर पहंुंचने या आसक्ति जगाने की जरूरत नहीं। कल्पना कीजिए कि आप मेडिटेशन में बैठे हैं और बस अपने विचारों को आते-जाते देख रहे हैं – जैसे आसमान में बादल गुजर रहे हों। आपको यह अनुभव होने लगेगा कि आप अपने विचार नहीं हैं। अपने बारे में जो धारणा बना लेते हैं, वह आप नहीं हैं। आप तो इन सब के पीछे की चेतना हैं।यह बहुत गहरा अनुभव है। यह अहंकार से दूर जाने की दिशा में पहला कदम है। इसलिए आप जितना मेडिटेट करेंगे उतना ही सू़क्ष्म रूप में देखेंगे कि अहंकार, भले ही कितना हुंकार भरे और जिद्दी हो, वह आपका असली सार कतई नहीं है।अलग होने का भ्रम को दूर हो जाएगा
मेडिटेशन करने से आपके अलग होने का भ्रम दूर हो जाएगा। यह इसके सबसे शक्तिशाली पहलुओं में है। अहंकार ‘मैं बनाम दुनिया’ की सोच पर पलता है। निरंतर खुद को दूसरों से श्रेष्ठ या हीन बताता है। हालाँकि मेडिटेशन से हम एकता और परस्पर जुड़ाव का अद्भुत अनुभव प्राप्त करते हैं।मेडिटेशन में हम माइंडफुलनेस और स्नेह व सहानुभूति जैसे अभ्यास कर अहंकार से उत्पन्न बाधाओं को दूर कर सकते हैं। इसके बाद सहज ही हम अंतर्मन से और दूसरों से जुड़ा होना महसूस करेंगे। हमारा अंतर्मन कहेगा कि हम सभी जीवन के एक ही प्रवाह का हिस्सा हैं। अहंकार बेशक इन बाधाओं को रोकने का प्रयास करता है पर ये धुंधली होने लगती हैं। इसके बाद ‘स्व’ का सही भाव जन्म लेता है – जो पद-प्रतिष्ठा या धारणा बना लेने जैसी किसी सीमा को नहीं मानता है।यह सोच बदलना कि हम कर्ता हैं यही तो सहज होने का सफर है भाग-दौड़ की जिन्दगी में अहंकार अक्सर हमें इस बात से परिभाषित करता है कि हम क्या करते हैं – हमारी उपलब्धियाँ, हमारी हैसियत, हमारी पद-प्रतिष्ठा आदि। लेकिन मेडिटेशन यह सोच बदलना है कि हम कर्ता हैं – यह सहज होने का सफर है। हमें कुछ भी साबित करने और हासिल करने की जरूरत नहीं है। बस वर्तमान क्षण है और अंतर्मन की शांति है। लेकिन यह मनोदशा प्राप्त करने के लिए हमें वह सब त्याग करना होगा जो हम सिर्फ दूसरों के सामने अपना कद ऊंचा करने या आत्ममुग्ध होने के लिए अनवरत करते हैं।ऐसा कुछ ‘करने’ की लाचारी नहीं रहेगी और हम ‘सहज’ रहेंगे तो जीवन का विशुद्ध अनुभव करेंगे। हम उपलब्धियां पाने या गिनाने में अपनी अनमोल क्षमता नहीं लगाएंगे। इसके बजाय अंतर्मन की शांति और सहजता प्राप्त करेंगे। यही अहंकार दूर करने का सार है।
आत्म-चेतना की यात्रा
मेडिटेशन सिर्फ शांति के चंद पलांे की तलाश नहीं है – यह हमारे अंतर्मन की चेतना जगाना है। इसलिए हम मेडिटेशन के प्रत्येक सेशन के साथ अहंकार को जन्म देने वाले तथ्यों जैसे कंडीशनिंग, पिछले अनुभवों और मान्यताओं को परत-दर-परत खोल देते हैं। इस तरह आप पुनः अपने सच्चे सार से जुड़ना शुरू करते हैं, जो अहंकार की सीमाओं से परे है।यह चेतना सिर्फ़ हमारे मेडिटेशन तक ही सीमित नहीं रहती है बल्कि जीवन के हर पहलू में व्याप्त हो जाती है। इसलिए हम हम अहंकार से जितना दूर जाने का अभ्यास करेंगे, उतनी ही स्वतंत्र अनुभूति पाएँगे। हम किसी डर या आत्मरक्षा की भावना से कुछ करने को लाचार नहीं रहेंगे और इसके बजाय खुले दिल और दिमाग से जीवन का सन्मार्ग चुनेंगे। आसान नहीं है अहंकार से बचना
अहंकार दूर करना आसान नहीं है। एक सेशन मेडिटेशन कर ऐसा कुछ कर लेने की सोच लेना भी बेमानी है। इसके लिए धैर्य, संकल्प और निरंतरता चाहिए। इस बीच बार-बार अहंकार दस्तक देगा। अक्सर तब जब आप सोच भी नहीं सकते! हमें हमारे पुराने डर या असुरक्षा की याद दिलाएगा।लेकिन मेडिटेशन की यही तो खूबसूरती है – यह हमें इन क्षणों को जानने की जगह देता है और उनके तेज प्रावह में बहने से रोकता भी है। अब जब भी अहंकार दस्तक देता है तो हम धीरे से उसे आजाद कर देते हैं और एक बार फिर अंतर्मन की शांति अवस्था में लौट आते हैं।
अहंकार से परे भी एक जिन्दगी है
अहंकार से नाता तोड़ कर हम एक नए जीवन से रिश्ता जोड़ते हैं, जिसमें स्वतंत्रता, करुणा और स्पष्टता की अटूट भावना है। मेडिटेशन न सिर्फ मन को शांत करने का माध्यम है, बल्कि यह खुद को गहराई से जानने का अवसर देता है, जो अहंकार की सीमाओं से परे है। हमारे लिए जब दूसरों से मान्यता प्राप्त करना मायने नहीं रखते हैं, तब हम स्वयं का सबसे सहज सुंदर रूप देखते हैं। यह शांति और चेतना की वह मनोदशा है जिसमें हम सूक्ष्म रूप में यह देख पाते हैं कि सबसे संतुष्ट जीवन वह है जहाँ हमारी पहचान अहंकार से नहीं है, बल्कि अंतर्मन की अनंत शक्ति से है।

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