नई दिल्ली – 40 वर्ष से कम आयु के लोगों में दिल के दौरे की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, जो वैश्विक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई हैं। कभी केवल वृद्धों की बीमारी मानी जाने वाली हृदय रोग की घटनाएं अब 20 और 30 की उम्र वाले युवाओं में भी लगातार देखी जा रही हैं। इस बदलाव ने विशेषज्ञों को पारंपरिक जोखिम मॉडल पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है और युवाओं से कम उम्र में ही हृदय स्वास्थ्य को गंभीरता से लेने की अपील की जा रही है। अस्वस्थ खानपान, शारीरिक निष्क्रियता और लंबे समय तक स्क्रीन देखने की आदतें मोटापा, मधुमेह और उच्च कोलेस्ट्रॉल जैसी चयापचयी बीमारियों की शुरुआत को बढ़ावा देती हैं, जो दिल के दौरे के प्रमुख जोखिम कारक हैं। मधुमेह से ग्रसित वयस्कों में हृदय रोग से मृत्यु का खतरा दो से चार गुना अधिक होता है। दिल की बीमारी 60 की उम्र में शुरू नहीं होती, यह चुपचाप 20 और 30 की उम्र में ही शुरू हो जाती है, डॉ. सुकृति भल्ला, यूनिट हेड एवं वरिष्ठ सलाहकार, कार्डियोलॉजी विभाग, आकाश अस्पताल, नई दिल्ली कहती हैं। हालांकि जीवनशैली और खानपान इसकी मुख्य वजह हैं, पर स्थिति तब और बिगड़ जाती है जब युवा नियमित जांच नहीं कराते, जिससे उच्च रक्तचाप या इंसुलिन रेजिस्टेंस जैसे साइलेंट खतरे वर्षों तक छिपे रह जाते हैं। दिल के दौरे की स्थिति में समय पर चिकित्सा हस्तक्षेप बेहद ज़रूरी और अक्सर जीवनरक्षक होता है। उपचार का मुख्य उद्देश्य हृदय की क्षतिग्रस्त हिस्से में रक्त प्रवाह को तुरंत बहाल करना, मांसपेशियों को होने वाली क्षति को कम करना और जटिलताओं को रोकना होता है। सबसे आम उपचार है कोरोनरी एंजियोप्लास्टी, जिसमें एक कैथेटर और फूली न हुई बैलून के साथ अवरुद्ध धमनी में प्रवेश कर उसे खोल दिया जाता है। अधिकांश मामलों में, एक स्टेंट (जालीदार ट्यूब) भी लगाया जाता है ताकि धमनी लंबे समय तक खुली रहे। हालांकि, चिकित्सक ज़ोर देते हैं कि उपचार कभी भी रोकथाम का विकल्प नहीं हो सकता। विशेषज्ञों का कहना है कि युवावस्था से ही कार्डियोवैस्कुलर जोखिम की नियमित जांच, हृदय-स्वस्थ जीवनशैली की शिक्षा और स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों में निवारक स्वास्थ्य कार्यक्रमों का समावेश आवश्यक है।