गुवाहाटी-ओडिशा के रायरंगपुर कस्बे के निकट उपरबेड़ा गांव में निर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पैतृक आवास से कुछ मीटर दूर रहने वाली चंद्रमणि हंदसा चाहती हैं कि नई राष्ट्रपति यह सुनिश्चित करें कि कोई आदिवासी लडक़ी अशिक्षित न रहे। वहीं, पड़ोसी राज्य झारखंड में आदिवासी अधिकार नेता सलखान मुर्मू अपने राज्य के लंबे समय से शोषित आदिवासियों के लिए वास्तविक सेंगल सशक्तीकरण चाहते हैं। मुर्मू एक समय झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं। पास के एक कॉलेज से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई कर चुकीं और फिलहाल गृहिणी हंसदा ने कहा, अब, दीदी के शीर्ष पर पहुंचने के बाद, मैं भी अपने जीवन में विकास की उम्मीद कर सकती हूं। अगर मुर्मू मदद कर सकती हैं, तो उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी आदिवासी लडक़ी अशिक्षित न रहे। पूर्वी और मध्य भारत में ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल तथा असम के कुछ हिस्सों में फैले आदिवासी समुदायों के बीच उत्साह का माहौल है। एक ओर कुछ आदिवासी सेंगल सशक्तीकरण चाहते हैं, तो अन्य चाहते हैं कि पारंपरिक आदिवासी धर्म सरना को मान्यता दी जाए और जो लोग पूजा के आदिवासी तरीके का पालन करते हैं, उन्हें हिंदुओं व ईसाइयों से अलग माना जाए।आदिवासी सेंगल अभियान आदिवासी सशक्तीकरण अभियान की अगुवाई करने वाले झारखंड के प्रमुख आदिवासी नेता सलखान मुर्मू ने कहा, हमें लगता है, यह लंबे समय से शोषित और उपेक्षित आदिवासियों के लिए वास्तविक सेंगल का समय है, जब समुदाय का एक व्यक्ति शीर्ष संवैधानिक पद पर पहुंच गया है। सलखान मुर्मू ने बताया कि झारखंड की राज्यपाल के रूप में द्रौपदी मुर्मू ने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम में संशोधन करने की पिछली भाजपा सरकार के प्रयास को नकारने का साहस दिखाया था, जिनके तहत आदिवासी भूमि के व्यावसायिक उपयोग की अनुमति दी गई थी।उन्होंने कहा कि उन्हें याद है कि कैसे झारखंड की राज्यपाल के रूप में मुर्मू ने रघुबर दास सरकार को विवादित विधेयकों को वापस लेने के लिए मजबूर किया था, जिनका उद्देश्य काश्तकारी अधिनियमों में संशोधन करना था।केंद्रीय सरना समिति, झारखंड के अध्यक्ष बबलू मुंडा, मुर्मू के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद उनके साथ सरना धर्म के बारे में बात करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, हमें उम्मीद है कि राष्ट्रपति भवन के दरवाजे दूरदराज के ग्रामीण इलाकों के आदिवासियों के लिए खुले रहेंगे। हम उनसे मिलेंगे और सरना संहिता की मांग करेंगे। झारखंड विधानसभा ने डेढ़ साल पहले एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से सरना को धर्म के रूप में मान्यता देने का अनुरोध किया था, जिसको मानने वाले प्रकृति की पूजा करते हैं। साथ ही इसे जनगणना के लिए संहिताबद्ध करने की भी मांग की गई थी। सलखान मुर्मू ने कहा, हम आदिवासी प्रकृति उपासक हैं – न हिंदू और न ही मुस्लिम, न सिख और न ही ईसाई। उन्होंने कहा कि सरना संहिता को मान्यता नहीं देकर अधिकारी आदिवासियों को दूसरे धर्मों में परिवर्तित होने के लिए मजबूर कर रहे हैं। हालांकि, उम्मीदें किसी स्कूल या धर्म के लिए मान्यता तक सीमित नहीं हैं, आदिवासियों के संघर्ष को समाप्त करने और उनकी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कानूनों में बदलाव की मांग भी आदिवासी समुदाय के लोग कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला ने कहा, हम उम्मीद करते हैं कि वह मुर्मू वन संरक्षण नियम, 2022 को वापस लेने के लिए निर्देश जारी करेंगी, जो वन अधिकार अधिनियम, 2006 के खिलाफ है। नए नियम राज्यों को वनवासियों की सहमति के बिना परियोजनाओं के लिए वन भूमि के इस्तेमाल की अनुमति देते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर आदिवासियों का विस्थापन हो सकता है। आदिवासी समुदायों के साथ काम करने वाली नर्मदा नवनिर्माण अभियान ट्रस्ट की ट्रस्टी योगिनी खानोलकर ने कहा, मैं उनसे नई राष्ट्रपति उम्मीद करती हूं कि वह आदिवासी समुदायों के हितों और संस्कृति की रक्षा के लिए अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करेंगी, जिन्हें कई बार बड़ी ढांचागत परियोजनाओं के लिए जमीन से बेदखल किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि किसी भी नई योजना में उन्हें शामिल करने की प्रक्रिया बहुत कठोर है और अक्सर मनमाने ढंग से लागू की जाती है। खानोलकर ने कहा, इससे उन्हें अनुचित संघर्षों का सामना करना पड़ता है। मुर्मू अपने पद का उपयोग करके आदिवासियों से संबंधित संवेदनशील मुद्दों का बेहतर समाधान निकाल सकती हैं। असम की चाय-जनजातियों को आदिवासी भी कहा जाता है। इनमें से कई को भारत की आजादी से पहले चाय बागानों में श्रमिक के रूप में काम करने के लिए बिहार और झारखंड से असम स्थानांतरित किया गया था। मुर्मू के राष्ट्रपति चुने जाने के पर समुदाय के लोग बहुत खुश हैं।विभिन्न आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों का एक ही एजेंडा है या उम्मीद है कि अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की उनकी लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा किया जाएगा। उन्हें उम्मीद है कि मुर्मू संवैधानिक प्रमुख के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। राज्य के सभी आदिवासी संगठनों के मूल संगठन आदिवासी राष्ट्रीय सम्मेलन समिति के सचिव बीर सिंह मुंडा ने कहा, संवैधानिक प्रमुख के रूप में, उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की आदिवासियों की काफी समय से लंबित मांग को पूरा किया जाए।