तमाम अफवाहों और कयासों के बाद ललन सिंह को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. अब पार्टी की कमान सीएम नीतीश कुमार ने खुद ही अपने हाथों में रखा है. वहीं, ललन सिंह के इस्तीफे के बाद विपक्ष लगातार पार्टी पर जुबानी हमला करता नजर आ रहा है. आरएलजेडी सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि अभी तक नीतीश महागठबंधन के हिस्सा हैं और ललन सिंह आरजेडी के करीबी हो चुके हैं. जदयू को ललन सिंह से खतरा था. इसलिए इनका इस्तीफा लिया गया. वहीं, कुशवाहा ने नीतीश को लेकर यह भी बयान दिया था कि नीतीश कुमार चाहे तो वह एनडीए में आने के लिए उनकी पैरवी कर सकते हैं. जिसे लेकर यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या नीतीश कुमार एनडीए में शामिल हो सकते हैं. वहीं, ललन सिंह के इस्तीफे पर भाजपा नेता विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि एक स्वाभिमानी नेता की इस तरह से विदाई स्वीकार नहीं है और अगर पार्टी को उनके नेतृत्व पर भरोसा नहदीं है तो ऐसे में पद पर बने रहने का कोई मतलब नहीं है. ललन सिंह के इस्तीफे की खबर पर जीतन राम मांझी ने ट्वीट करके कहा कि नीतीश कुमार की तीन वर्षीय योजना के तहत ललन सिंह का भी पत्ता साफ कर दिया गया है. वैसे ललन बाबू को समझना चाहिए था कि जो नीतीश कुमार फार्नाडिस साहब के ना हुए,RCP बाबू,शरद यादव,दिगविजय सिंह के ना हुए वह उनके कैसे होंगें? “ऐसा कोई सगा नहीं जिसे नीतीश ने ठगा नहीं वहीं, लोजपा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने कहा कि जो कभी दूसरे के घर को तोड़ने और अध्यक्ष पद से हटाने के लिए साजिश किए आज वो स्वयं साजिश के शिकार हो गए. ललन बाबू कहावत है ना की कर्म लौट कर आता है, आज कुछ वैसा ही आपके साथ भी हो रहा है. मैं आपकी व्यथा को समझ सकता हूं. आप भी आज नीतीश कुमार जी के महत्वकांक्षा का शिकार हो गए. इससे पहले भी जदयू के कई राष्ट्रीय अध्यक्षों को नीतीश जी ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया है. उनको अपने नेताओं के बढ़ते कद से ही सबसे ज्यादा परेशानी होती है. जनता दल यूनाइटेड में गुटबाजी अब इस कदर बढ़ गई है कि यह मतभेद और अंतरकलह पार्टी का अस्तित्व खत्म करके ही मानेगी. आने वाले चुनाव में जदयू का कोई नाम लेने वाला भी नहीं रह जाएगा.