भुवनेश्वर- केंद्र ने ओडिशा सरकार के श्री लिंगराज मंदिर अध्यादेश के कुछ प्रावधानों पर स्पष्टीकरण मांगा है क्योंकि उसे लगता है कि प्रस्तावित कानून राज्य विधानसभा के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। दरअसल, यह अध्यादेश प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष स्थल अधिनियम, 1958 के प्रतिकूल हो सकता है। राजभवन को केंद्रीय गृह मंत्रालय से 23 मार्च को एक पत्र मिला है, जिसे मुख्य सचिव सुरेश चंद्र महापात्रा को 31 मार्च को भेज दिया गया था। भुवनेश्वर स्थित लिंगराज मंदिर और इससे संबद्ध आठ देवालयों को एक अलग कानून के तहत लाने के लिए दिसंबर 2020 में राज्य मंत्रिमंडल की एक बैठक में इस अध्यादेश को मंजूरी दी गई थी। वर्तमान में, लिंगराज मंदिर का संचालन ओडिशा हिंदू धार्मिक धर्मादा अधिनियम,1951 के तहत होता है, जो ज्यादातर मंदिरों के लिए एक साझा विधान है। अध्यादेश के दायरे में जिन मंदिरों और जलाशयों को लाने की कोशिश की गई है वे केंद्र संरक्षित स्मारक हैं। राज्य के अध्यादेश को संस्कृति और ग्रामीण विकास विभाग से आपत्तियों का सामना करना पड़ा है। अध्यादेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी को पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर मुख्य प्रशासक नियुक्त किए जाने के साथ 15 सदस्ईय समिति गठित करने का प्रस्ताव किया गया है। इस बीच, ओडिशा के मंत्री अशोक चंद्र पांडा ने केंद्र की आपत्ति का सख्त विरोध किया और कहा, केंद्र अध्यादेश पर स्पष्टीकरण मांग सकता है लेकिन इसे रोक नहीं सकता। उसे स्पष्ट करना चाहिए कि क्या मंत्रालयों ने काशी विश्वनाथ, केदारनाथ और सोमनाथ मंदिरों के लिए भी यही मानदंड इस्तेमाल किया था।