नई दिल्ली- विधिशास्त्र या न्यायशास्त्र एक विधि का सिद्धांत अध्ययन व दर्शन है इसमें दुनिया के समस्त विधिक सिद्धांत सम्मिलित हैं जिनके आधार पर की कानून बनते हैं और लागू होते हैं विधि शास्त्र के विद्वान जिन्हें जिला विधिक सिद्धांतवाद या न्याय शास्त्र भी कहते हैं।संस्कृत साहित्यों में न्याय के बारे में बहुत व्यापक ग्रन्थ लिखे गए हैं न्याय दर्शन में तो पूरा ही न्याय के बारे में विस्तार से बताया गया है। ये विचार दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित निरंतर चल रही नवोन्मेष व्याख्यानमाला के अंतर्गत आयोजित व्याख्यानमाला आधुनिक न्याय प्रक्रिया में न्याय शास्त्र की उपयोगिता विषय के मुख्य वक्ता वनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के आचार्य प्रो. सच्चिदानन्द मिश्रा ने व्यक्त किए। प्रो. मिश्रा ने कि प्राचीन भारतीय वैदिक समाज में, कानून अथवा धर्म, जिसका अनुपालन हिन्दुओं द्वारा किया जाता था, स्मृतियों के द्वारा प्रतिपादित था, जो पाप और उसके निराकार के उपायों को परिभाषित करने वाला एक साहित्यिक संग्रह है। ऐसा कहा जाता है कि इनकी रचनायें 200 ईसापूर्व से 200 ईस्वीसन के मध्य हुई है। वास्तव में, ये कानून की संहिताएं नहीं हैं किन्तु सामाजिक दायित्वों के प्रति उस युग की कुछ आवश्यक मान्यताएं हैं। आधुनिक न्याय व्यवस्था में भारतीय शास्त्र भारत के लिये ही नहीं अपितु पूर्ण विश्व के लिए बहुत उपयोगी है। कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करते समय अकदमी के सचिव डॉ. अरुण कुमार झा ने कहा कि न्यायशास्त्र कानून का सिद्धांत और दर्शन है। न्यायशास्त्र के विद्वान अथवा कानूनी दार्शनिक, विधि की प्रवृति, कानूनी तर्क, कानूनी प्रणालियां एवं कानूनी संस्थानों का गहन ज्ञान पाने की उम्मीद रखते हैं। इस अवसर पर अकादमी की उपाध्यक्षा डॉ. कान्ता भाटिया ने प्रो. सचिदानन्द मिश्रा का परिचय करते हुये कहा कि प्रो. मिश्रा वाराणसी के संस्कृत विद्वान हैं। ये बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र और धर्म के प्रोफेसर हैं। इन्हें भारत वर्ष 2009 में संस्कृत के लिए महर्षि बादरायण व्यास पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ये भारतीय दर्शन और संस्कृत व्याकरण के विशेषज्ञ हैं। इन के न्याय दर्शन के ज्ञान से सभी लाभान्वित होगे । प्रो. सच्चिदानंद मिश्रा ने 8 जून 2021 को भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद में सदस्य सचिव के पद की जिम्मेदारी संभाली। वे भारतीय तर्कशास्त्र और ज्ञानमीमांसा, नव्या-न्याय के वैचारिक विकास के क्षेत्रों में एक प्रसिद्ध शिक्षाविद हैं।