नई दिल्ली- जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि टीकाकरण कार्यक्रम में एक अहम चरण अक्सर अनदेखा रह जाता है 4 से 6 वर्ष की उम्र में स्कूल प्रवेश के समय दिया जाने वाला डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस (DTP) और पोलियो का बूस्टर डोज़। शुरुआती टीकाकरण श्रृंखला से मिलने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता शुरुआती वर्षों में तो प्रभावी होती है, लेकिन समय के साथ यह घटने लगती है। अध्ययन बताते हैं कि जब बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है, तब तक उसके शरीर में इन बीमारियों के खिलाफ एंटीबॉडी का स्तर काफी कम हो चुका होता है। ऐसे में समूहों जैसे कि कक्षा में संक्रमण की आशंका अधिक बढ़ जाती है। डॉ. विवेक चौधरी, कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजिस्ट और पीडियाट्रिशन, अपोलो क्रैडल, मोती नगर, नई दिल्ली बताते हैं, जब बच्चे स्कूल जाना शुरू करते हैं तो वे अचानक कई लोगों और संभावित संक्रमणों के संपर्क में आते हैं। इस उम्र में शिशु काल के टीकों से मिली सुरक्षा घटने लगती है। 4–6 वर्ष का बूस्टर यह सुनिश्चित करता है कि उनके प्रतिरक्षा तंत्र में अगली अवस्था के लिए पर्याप्त ताक़त हो। यह एक सरल लेकिन दीर्घकालिक सुरक्षा देने वाला कदम है। स्कूल प्रवेश की उम्र में दिया जाने वाला बूस्टर व्यक्तिगत सुरक्षा के साथ-साथ सामुदायिक सुरक्षा के लिए भी ज़रूरी है। जब पर्याप्त संख्या में बच्चों को समय पर टीके लगाए जाते हैं, तो यह बीमारियों जैसे पर्टुसिस और पोलियो के दोबारा फैलने से रोकने में मदद करता है। यह खास तौर पर स्कूल जैसे वातावरण में महत्वपूर्ण होता है, जहां संक्रमण तेजी से फैल सकता है। जैसे-जैसे लोगों में टीकों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ रही है, वैसे-वैसे कई स्कूल भी अद्यतन स्वास्थ्य और टीकाकरण रिकॉर्ड की मांग कर रहे हैं। टीकाकरण केवल एक बार किया जाने वाला कार्य नहीं है स्वस्थ रहने के लिए इसे समय-समय पर पूरा करना ज़रूरी है। सुनिश्चित करें कि आपके बच्चे को स्कूल शुरू करने से पहले सभी ज़रूरी टीके लग चुके हों। यह न केवल उन्हें सुरक्षित रखेगा, बल्कि समाज के लिए एक स्वस्थ भविष्य का निर्माण करेगा।