नई दिल्ली – फोर्टिस एस्कॉर्ट्स ओखला रोड, नई दिल्ली में 125 किलोग्राम वजन के 58-वर्षीय मरीज की टोटल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी को सफलतापूर्वक किया गया। मरीज पिछले तीन वर्षों से दाएं कूल्हे में दर्द से परेशान थे। उन्हें यह तकलीफ एक दुर्लभ किस्म के रोग एवास्क्युलर नेक्रोसिस के कारण थी, इस गंभीर मेडिकल कंडीशन में ब्लड सप्लाई में कमी होने के कारण बोन टिश्यू मृत होने लगते हैं। डॉ कौशल कांत मिश्रा, डायरेक्टर ऑर्थोपिडिक्स एंड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला रोड, नई दिल्ली के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने मरीज की सर्जरी की जो करीब 50 मिनट चली। इसके बाद मरीज की हालत में धीरे-धीरे सुधार होने लगा और 4 दिन बाद उन्हें स्थिर अवस्था में अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई। इस तरह के मामले, भारी वजन वाले मरीजों में हिप रिप्लेसमेंट प्रक्रियाओं से जुड़ी मेडिकल चुनौतियों और सर्जरी के बाद मिली कामयाबी के मद्देनज़र काफी दुर्लभ बन जाते हैं।मरीज 2022 से ही दाएं कूल्हे में दर्द की शिकायत से ग्रस्त थे। उन्हें जुलाई 2022 में शहर के एक अन्य अस्पताल में जांच के बाद एवास्क्युलर नेक्रोसिस से ग्रस्त पाया गया जहां उनकी कोर डीकम्प्रेशन सर्जरी की गई। लेकिन इससे उन्हें कुछ ही समय के लिए राहत मिली, और वे दोबारा दर्द से जूझने लगे थे तथा चलने-फिरने में भी तकलीफ महसूस कर रहे थे। कई बार इलाज करवाने के बाद भी मरीज की तकलीफ दूर नहीं हुई और वे दर्द-निवारक दवाओं पर निर्भर थे। उन्हें चलने-फिरने में भी परेशानी थी और बिना सपोर्ट के नहीं चल पा रहे थे। जब वह उपचार के लिए फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला आए तो उनकी पीड़ा इतनी गंभीर थी कि उनकी मोबिलिटी और लाइफ क्वालिटी काफी प्रभावित थी। अस्पताल में एक्स-रे और एमआरआई जांच से पता चला कि वह एवास्क्युलर नेक्रोसिस की एडवांस स्टेज से पीड़ित थे। डॉक्टरों ने उनके लिए टोटल हिप आर्थेप्लास्टी को चुना। सर्जरी के बाद, मरीज दोबारा चलने-फिरने लगे, और कुछ ही दिनों के बाद उनका वजन भी कम होने लगा जो 125 किलोग्राम से घटकर पहले फौलो-अप के वक्त 123.3 किलोग्राम और अगले फौलो-अप के समय, जो कि सर्जरी के 3 सप्ताह था, 119.2 किलोग्राम हो गया था। इस मामले की जानकारी देते हुए, डॉ कौशल कांत मिश्रा, डायरेक्टर ऑर्थोपिडिक्स एंड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला रोड, नई दिल्ली ने कहा,सामान्य से अत्यधिक वजन के मरीजों, खासतौर से 100 किलोग्राम से अधिक वजन वाले मरीज अक्सर ज्वाइंट रिप्लेसमेंट से बचते हैं, और यहां तक कि सर्जन भी ऐसे मामलों में जटिलताओं के मद्देनजर काफी सावधानी बरतते हैं। ऐसे मामलों में इंफेक्शन और डिस्लोकेशन के चलते मरीजों में संतुष्टि का स्तर भी आमतौर से अच्छा नहीं होता। इतने अधिक वजन वाले मरीजों की सर्जरी के दौरान ज्वाइंट और इंट्राऑपरेटिव मैनीपुलेशन काफी कठिन काम होता है। लेकिन समय पर हस्तक्षेप होने पर मरीजों को आजीवन विकलांगता से बचाया जा सकता है। अक्सर मरीज अपनी शारीरिक तकलीफ की वजह से चलना-फिरना बंद कर देते हैं जिससे उनका वजन और बढ़ जाता है और कंडीशन भी बिगड़ जाती है। लेकिन जब वे मोबिलीटी दोबार पा लेते हैं, तो उनका वजन सहज रूप से कम होने लगता है जैसा कि इस मामले में हुआ। यह मामला काफी अहम है जिससे यह साबित हो गया है कि अधिक वजन वाले मरीज भी, यदि वे अन्य प्रकार से मेडिकली फिट हैं, तो सुरक्षित रूप से ज्वाइंट रिप्लेसमेंट करवा सकते हैं। मरीज को सर्जरी के अगले ही दिन से पूरा वजन वहन करने की मंजूरी भी दे दी गई थी। यदि इनका समय पर उपचार नहीं किया जाता, तो वह लंबे समय से जारी दर्द को सहन करने के लिए मजबूर बने रहते, चलते हुए लंगड़ाहट रहती और दीघर्कालिक ऑस्टियोपोरोसिस, सेकंडरी स्पाइन डीजेनरेशन का जोखिम भी बढ़ जाता। डॉ विक्रम अग्रवाल, फेसिलिटी डायरेक्टर, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला रोड, नई दिल्ली, ने कहा,मरीज के भारी वज़न के चलते यह कॉफी चुनौतीपूर्ण मामला था। लेकिन फोर्टिस एस्कॉर्ट्स में डॉ कौशल कांत मिश्रा के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम द्वारा समय पर सर्जरी और भरपूर देखभाल के परिणामस्वरूप, अब मरीज पीड़ा-मुक्त हैं और काफी एक्टिव जीवन बिता रहे हैं। इस सफलता ने एक बार फिर सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के तौर पर हमारी स्थिति को और पुख्ता बनाया है, और साथ ही, उन विदेशी मरीजों के लिए भी उम्मीद बढ़ायी है जो उन्नत, जीवनरक्षक मेडिकल समाधानों की तलाश कर रहे हैं।”