अहमदाबाद- गुजरात दंगों के 21 साल बाद भी नरोदा पाटिया के घाव अब भी दृष्टिगोचर हैं और उससे जुड़ा दर्द ऐसे सांप्रदायिक विभाजन की याद दिलाता है जिसे अब तक नहीं पाटा जा सका है। हालांकि विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ओमप्रकाश तिवारी का कहना है कि जीवन को आगे बढऩा होगा और ध्यान महंगाई जैसे मुद्दों पर होना चाहिए जो सभी समुदायों से जुड़े हों। तिवारी को उम्मीद है कि अगले महीने होने वाले चुनाव में नरोदा पाटिया के लोग उनका समर्थन करेंगे। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि धर्म को एक तरफ छोड़ दिया जाए और लोग बदलाव के लिए आगे आएं। नरोदा पाटिया अहमदाबाद का बाहरी इलाका है जो 2002 के दंगों से जुड़ा हुआ है।तिवारी ने कहा,20 साल पहले यहां क्या हुआ था,उसे हम भूल चुके हैं।भारत एक धार्मिक देश है और यहां हर किसी को अपना पसंदीदा धर्म पालन की आजादी है।लेकिन हमें पहले बेरोजगारी,महंगाई और सभी के लिए सस्ती शिक्षा जैसे मुद्दों पर गौर करना होगा। उनसे सवाल किया था कि क्या गोधरा कांड के बाद हुआ दंगा अब भी उनके निर्वाचन क्षेत्र में मुद्दा है। भारतीय जनता पार्टी 1990 से इस क्षेत्र में जीत हासिल कर रही है। अयोध्या से लौट रहे 57 कारसेवकों की साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक डिब्बे में गोधरा रेलवे स्टेशन पर जलकर मौत होने के एक दिन बाद नरोदा पाटिया में हिंसा भडक़ गई थी जिसमें भीड़ ने मुस्लिम समुदाय के 97 लोगों की हत्या कर दी थी और उनकी संपत्ति को लूट लिया था। भीड़ ने उनके घरों में आग लगा दी थी और कुछ महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार भी किए गए। ज्यादातर पीड़ित गरीब थे। नरोदा पाटिया नरोदा विधानसभा क्षेत्र के तहत आता है और यहां पांच दिसंबर को मतदान होगा। भाजपा और कांग्रेस ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है,वहीं आप ने कांग्रेस के पूर्व नेता तिवारी को अपना प्रत्याशी बनाया है। नरोदा से दो बार नगर पार्षद रह चुके तिवारी 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे थे लेकिन भाजपा के बलराम थवानी से भारी अंतर से हार गए थे।आप उम्मीदवार ने कहा कि इस बार चुनाव अलग होगा। अब तक यहां की राजनीति द्विध्रुवीय रही है लेकिन आप के जोरशोर से मैदान में उतरने के बाद मुकाबला त्रिकोणीय दिखने लगा है। नरोदा विधानसभा क्षेत्र में करीब तीन लाख मतदाता हैं, जिनमें ज्यादातर हिंदू और जैन हैं तथा करीब 4,000-5,000 मुस्लिम मतदाता हैं।नरोदा पाटिया अब भी भयभीत दिखता है लेकिन लगता है कि वह बदलाव के लिए तैयार है।दंगों से जुड़े मामले में गवाह सलीम शेख ने इस बार आप का समर्थन करने की इच्छा जताई। शेख, उनकी पत्नी और बच्चे हिंसा में बाल-बाल बच गए थे, लेकिन उनका घर और अन्य संपत्ति आग में जल गई थी। उनकी भतीजी के दो बच्चे दंगों में मारे गए थे। शेख ने कहा, 2002 की घटना हमारे लिए बहुत दर्दनाक थी। हमें कांग्रेस पर भरोसा था लेकिन केंद्र में 10 साल तक सत्ता में रहने के बावजूद उसने हमारे लिए कुछ नहीं किया।अल्पसंख्यक समुदाय के रुख के बारे में पूछे जाने पर शेख ने कहा,कई आरोपी आज जेल से बाहर हैं, हमें जो मुआवजा मिला वह भी पर्याप्त नहीं था इसलिए हमने इस बार आप को वोट देने का फैसला किया है। शेख ने हालांकि कहा कि उन्हें विश्वास नहीं है कि आप सांप्रदायिकता को खत्म करेगी।यशिन का घर भी दंगों में जला दिया गया था। उन्होंने कहा कि उनके कई पड़ोसी गुजरात में 87 स्थानों पर बने पुनर्वास कॉलोनियों में चले गए गए हैं। उन्होंने कहा, हमारी कॉलोनी का भी पुनर्निर्माण किया गया था और हम यहां सामान्य जीवन जी रहे हैं। हमारे अन्य समुदाय के सदस्यों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध हैं। लेकिन हम सभी हमेशा भयग्रस्त रहते हैं। यहां कब सांप्रदायिक राजनीति हो जाए, कोई नहीं जानता है। वर्ष 2002 के दंगों के एक अन्य पीड़ित शरीफ ने कहा, वे शिक्षा, भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों की चर्चा करते हैं। वे लोगों को तीर्थयात्रा पर राम मंदिर ले जाने की भी बात करते हैं। लेकिन जब बिलकिस बानो मामले के दोषियों की रिहाई की बात आती है, तो वे चुप्पी साध जाते हैं। उन्होंने दावा किया कि आप के नरम हिंदुत्व की भूमिका निभाने से पार्टी को अल्पसंख्यक समुदाय का पूरा समर्थन नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा, अगर पार्टी मुसलमानों तक पहुंचती, उनकी आवाज उठाती और उनके नेताओं को बढ़ावा देती तो अल्पसंख्यक वोट आप को मिलते, गुजरात में उसे कम से कम 22 सीटें जीतने में मदद मिलती। आप मुस्लिम वोट चाहती है लेकिन मुस्लिम नेता नहीं चाहती।