गुरुग्राम- चिकित्सा विशेषज्ञ एक महत्वपूर्ण लेकिन अक्सर नजरअंदाज किए गए चरण की ओर ध्यान दिला रहे हैं, 4 से 6 वर्ष की आयु के बीच डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस और पोलियो का बूस्टर डोज़, जो आमतौर पर स्कूल में दाख़िले के समय दिया जाना चाहिए। हालांकि बचपन में दिए गए टीके एक मज़बूत सुरक्षा की नींव रखते हैं, लेकिन शोध से पता चलता है कि डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस और पोलियो जैसी बीमारियों के खिलाफ प्रतिरक्षा शक्ति स्कूल जाने की उम्र तक घटने लगती है। कक्षा में और समूहों में बढ़ती सहभागिता के साथ, संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, जिससे इस संवेदनशील समय में समय पर बूस्टर लेना और भी ज़रूरी हो जाता है। डॉ. मोहम्मद आमिर, कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजिस्ट एवं पीडियाट्रिशन, क्लाउड नाइन हॉस्पिटल, गुरुग्राम कहते हैं, बचपन में टीकाकरण का उद्देश्य प्रारंभिक सुरक्षा और समय के साथ निरंतर बचाव दोनों होता है। 4 से 6 वर्ष की उम्र में दिया गया बूस्टर बच्चों के अधिक खुले वातावरण में कदम रखने से पहले सुरक्षा में आई कमी को पूरा करता है। यह एक ऐसा निवारक कदम है जिसे हर परिवार की स्वास्थ्य योजना में शामिल होना चाहिए। अभिभावकों को अक्सर लगता है कि शुरुआती टीकाकरण ही पर्याप्त है, लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, प्रतिरक्षा बनाए रखना ज़रूरी होता है। स्कूल-प्रवेश बूस्टर न केवल उस सुरक्षा को दोहराता है, बल्कि दीर्घकालिक बाल स्वास्थ्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। यह नियमित टीकाकरण प्रणाली पर जनविश्वास को भी मज़बूत करता है।
आधुनिक संयोजन टीके माता-पिता और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए प्रक्रिया को सरल बनाते हैं, क्योंकि एक ही इंजेक्शन में कई बीमारियों से सुरक्षा मिलती है। स्कूल में दाख़िले की उम्र में DTP और पोलियो बूस्टर जनसंख्या स्तर पर प्रतिरक्षा बनाए रखने और स्कूलों में रोग प्रसार की संभावना को कम करने में एक अहम कदम बना हुआ है। रूटीन दाख़िला प्रक्रियाओं के हिस्से के रूप में अब कई स्कूल अद्यतन स्वास्थ्य और टीकाकरण रिकॉर्ड मांग रहे हैं। यह माता-पिता के लिए एक स्वाभाविक अवसर है कि वे अपने बच्चे के स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से संपर्क करें। जनस्वास्थ्य अधिकारी समय पर बूस्टर को अनुपस्थिति कम करने, पढ़ाई की निरंतरता सुधारने और दीर्घकालिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने का एक प्रभावी तरीका मानते हुए इसकी लगातार सिफारिश करते हैं।

Leave a Reply