हिमाचल – प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी को लेकर अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने मनीष सिसोदिया को साफ छवि का नेता बताते हुए बगैर अपराध और सबूतों के जेल में डालने पर हैरानी जताई है। शांता कुमार ने बाकायदा बयान जारी करके मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने ये बयान अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर भी साझा किया है। दिनभर राजनीतिक गलियारों में शांता कुमार के इस बयान की चर्चा रही। शांता कुमार ने मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी पर सवाल उठाकर आम आदमी पार्टी को बीजेपी पर हमला बोलने का मजबूत आधार दे दिया है। बताया जाता हैकि पुरानी पीढ़ी के नेता केंद्र सरकार की दमनकारी नीतियों से खुश नहीं है। लेकिन वो उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। ऐसे में शांता कुमार ने ये हिम्मत दिखाई है तो उन्हें दबी जुबान में पार्टी के भीतर से भी समर्थन मिल रहा है। बीजेपी का एक बड़ा धड़ा मानता है कि बीजेपी दिल्ली में आम आदमी पार्टी से चुनावों में हारने का बदला उसके नेताओं को जेल भेजकर ले रही है। शांता कुमार ने भी अपने बयान में यह कहने की कोशिश की है। गौरतलब है कि इससे पहले शांता कुमार कई बार मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं। 2018 में शांता कुमार ने कर्नाटक विधानसभा में बीजेपी को बहुमत न मिलने के बावजूद सरकार बनाने की पीएम मोदी और तात्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की नीतियों का खुला विरोध किया था। तब शांता कुमार ने जोड़तोड़ की सरकार बनाने की अपनी ही पार्टी की कोशिशों को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। उन्होंने यहां तक कहा था कि देश में सबकुछ ठीक नहीं हो रहा। उन्होंने 1982 में हिमाचल विधानसभा चुनाव के बाद का तजुर्बा साझा किया था। उन्होंने बताया तब बीजेपी को 29 और कांग्रेस को 31 सीटें मिली थीं। 6 निर्दलीय जीते थे। उन पर 6 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने का दबाव था। उन्होंने खुलासा किया कि निर्दलीय विधायक जिन शर्तों पर समर्थन दे रहे थे वो उन्हें मंजूर नहीं थी। शांता ने बताया कि उस दौरान उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी से कहा था कि ‘मैं जिंदा मांस का व्यापारी नहीं हूं। मैं नीलामी नहीं खरीदूंगा। हमारी सरकार बन सकती है, लेकिन ऐसे हालात में सरकार नहीं बनाऊंगा। तब मैंने वाजपेयी जी से कहा था कि मेरे दोस्त उनको कुछ दे रहे हैं, वह हमारे साथ आ जाएंगे, लेकिन मैं उनको लेने को तैयार नहीं हूं।’ इसके बाद वाजपेयी ने जयपुर से घोषणा की थी कि हिमाचल की जनता ने हमको विपक्ष में बैठने का जनादेश दिया है। हम हिमाचल में सरकार नहीं बनाएंगे। कांग्रेस की हमसे दो सीटें ज्यादा थी इसलिए हमने सरकार बनाने का दावा भी नहीं किया था। इसके उलट 2018 में बीजेपी ने बहुमत नहीं मिलने के बावजूद सरकार बनाने का दावा किया था। बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ली थी। लेकिन सदन में शक्ति परीक्षण से पहले इस्तीफा दे दिया था। इस राजनीतिक घटनाक्रम को शांता कुमार ने पार्टी और देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। हालांकि इस खुले विरोध का खामियाजा उन्हें 2019 के लोकसभा का टिकट कटवा कर भुगतना पड़ा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हिमाचल की कांगड़ा से उनका टिकट काट दिया था। इस सीट से वो चार बार सांसद रहे हैं। तब से वो लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा हैं। आज अगर वो मोदी सरकार के खिलाफ मुंह खोल रहे हैं तो इस लिए कि उनके पास खोने ले लिए कुछ नहीं है। लेकिन मोदी सरकार के खिलाफ उठी शांता कुमार की आवाज बीजेपी के भीतर सुलग रही बगावत की चिंगारी है। बीजेपी में कई और नेता मोदी-शाह की नीतियों से असहमति व्यक्त कर चुके हैं। इन की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव तक इस चिंगारी के आग के शोलों में तब्दील होने की पूरी संभावना दिख रही है। पीएम मोदी और बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह बारीकी से इस पर नजरें जमाए हुए हैं। दरअसल बीजेपी में अब कमोबेश हर राज्य में बगावत के सुर सुनाई देने लगे हैं। हालांकि कि अभी तक खुले तौर पर किसी भी स्तर से अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को किसी ने चुनौती नहीं दी है लेकिन यह साफ होता जा रहा है कि क्षेत्रीय ताकतों वाले भाजपा नेता अपनी अपनी ताकत का एहसास केंद्रीय नेतृत्व को कराने में कामयाब हो रहे हैं। इस दिशा में हाल में शांता कुमार का ये बयान गंभीर माना जा रहा है। इसके पहले मेघालय के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने किसानों के मुद्दे पर मोदी पर सीधा सीधा निशाना साधा था। इससे मोदी सरकार की काफी फजीहत हुई थी। कर्नाटक में बीजेपी लिंगायत समाज पर मजबूत पकड़ रखने वाले बीएस येदियुरप्पा की बगावत से परेशान है। 2008 में उन्हीं के नेतृत्व में कर्नाटक में पहली बार सरकार बनाने वाली उनके पार्टी छोड़ने की वजह से ही 2013 में सत्ता से बाहर हो गई है। येदियुरप्पा ने चुनावी राजनीति से अलग होने का ऐलान कर दिया है। वो क्या गुल खिलाने वाले हैं, इसे लेकर बीजेपी काफी चिंतित है। उन्हें मनाने के लिए खुद पीएम मोदी उनके 80वें जन्मदिन के कार्यक्रम में शरीक होने पहुंच गए। पिछले 48 दिन में उनका यह पांचवां कर्नाटक दौरा था।य़ कर्नाटक के लिंगायत समाज में येदियुरप्पा का तोड़ नहीं है। मुख्यमंत्री बसावराज बोम्मई भी नहीं। राजस्थान में कमोबेश यही हाल वसुंधरा राजे की भी है। महारानी के करीबी गुलाब चंद कटारिया अब भले ही असम के राज्यपाल हैं। कटारिया के उत्तराधिकार की गणेश परिक्रमा जारी है। वसुंधरा राजे ने ही 2020 में सचिन पायलट के जहाज को बीजेपी के रनवे पर उतरने रोक दिया था। शांता कुमार का जता बयान बीजेपी में अंदर ही अंदर सुलग रही बगावत की आग की तरफ इशारा है। जल्द ही बीजेपी में शांता कुमार की मान मनौव्वल की कोशिशें भी देखने को मिल सकती हैं।