एक दिन, हमारा परिचय अभूतपूर्व वैश्विक महामारी से कराया गया, और जैसा कि हम जानते हैं कि उसने दुनिया को हमेशा के लिए बदल दिया है। लेकिन ऐसा नहीं है, है ना? दुनियाभर में कोविड-19 की लहर आने से पहले ही कार्यक्षेत्र और सामाजिक क्षेत्रों में कई व्यवसायों में बदलाव हो रहे थे। कुछ निर्धारित नीतियां और रणनीतियां कुछ विशिष्ट उद्योगों के पतन का संकेत दे रही थी। नियति ही कहे कि लॉकडाउन की अवधि बढ़ रही थी और फास्ट ग्रोइंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) कंपनियों और ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) उत्पादों को आपस में जोड़ दिया। इसके बाद भी दवा मूल्य नियंत्रण नीतियों को सख्ती से प्रतिबंधित करना देश के दवा निर्माताओं की पूरी तरह से उपेक्षा करता है।
सदियों से, एफएमसीजी और कंज्यूमर पैकेज्ड गुड्स (CPG) कंपनियां फार्मास्युटिकल कंपनियों के साथ नोक-झोंक कर रही हैं। लगातार बढ़ता हुआ ओटीसी बाजार युद्ध का मैदान बन चुका है। एफएमसीजी और सीपीजी कंपनियों के लिए ओटीसी बाजार एक विशाल प्रोफाइल मार्जिन प्रदान करता है। साथ ही फार्मा कंपनियों को यह उनके विशिष्ट आवश्यकताओं और कम मात्रा वाले ग्राहक आधार की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण बाजार प्रदान करता है। जैसे-जैसे महामारी का प्रारंभिक प्रभाव खत्म हो रहा है और दुनिया नए सामान्य के साथ तालमेल बिठा रही है, अर्थव्यवस्थाओं ने रिकवरी की यात्रा शुरू कर दी है। इसके कारण, उपभोक्ता की डिस्पोजेबल आय अपने आप बढ़ रही है, जिससे खपत में तेजी आ रही है।
फार्मास्युटिकल कंपनियां अपना आधार क्यों खो रही हैं?
कठोर सरकारी मूल्य नियंत्रण नीतियां, अवैध मुनाफाखोरी पर आरोप लगाने वाला रुख, नियामक से जुड़ी चुनौतियां, जेनेरिक ब्रांड्स का आगमन, घटता बाजार आकार, कड़ी प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ताओं के साथ ब्रांड का एंगेजमेंट कमजोर होना, 21 वीं सदी की फार्मास्युटिकल कंपनियों के खिलाफ एक शक्तिशाली पंच है। एक विकासशील राष्ट्र के रूप में भारत में दवा की कीमतें दुनियाभर में सबसे कम हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या हर नागरिक के लिए इसका लाभ उठाना पर्याप्त है? दुर्भाग्यवश नहीं। आज भी, कई भारतीय जीवन रक्षक दवाओं का उपयोग नहीं कर सकते हैं, क्योंकि वे अभी भी उन्हें वहन नहीं कर सकते हैं। इस तर्क का लाभ उठाते हुए भारत सरकार लागत प्रभावी और आसानी से सुलभ दवाओं की आवश्यकता बताते हुए विशिष्ट दवाओं पर मूल्य निर्धारण जारी रखती है। हालांकि, वास्तविकता थोड़ी अलग है।
घटी हुई कीमतें आम जनता को खुश कर सकती हैं, यह स्वास्थ्य प्रणाली में नवाचारों और नए आविष्कारों के लिए कोई अच्छा काम नहीं करेगी। और जब कई निर्माता प्रॉफिट मार्जिन के नुकसान के कारण दवा उत्पादन से बाहर हो रहे हैं, सवाल खड़ा होता है कि क्या दवा की कीमतों को कम करने के लिए दवा कंपनियों को लागत से कम में बेचने के अलावा सरकार के पास कोई और तरीका हो सकता है? यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि वोट बैंकों को खुश रखने दवा की कीमतों को कम करने के लिए सरकार ने दवा कंपनियों को नए क्षेत्रों में पकड़ बनाने के लिए प्रेरित किया। उनमें से कई ने गैर-आवश्यक दवा निर्माण शुरू करते हुए आवश्यक जीवन रक्षक दवाओं को बढ़ावा देना बंद कर दिया है।
स्वास्थ्य और व्यक्तिगत देखभाल उद्योग में सांत्वना पा रही हैं फार्मास्युटिकल कंपनियां
फार्मास्युटिकल कंपनियों के विचार-विमर्श से स्पष्ट संकेत मिलता है कि जीवन आवश्यक दवाओं पर मूल्य नियंत्रण होने के कारण उनके लिए यह सेग्मेंट बहुत लाभकारी नहीं बचा है। इस वजह से पूरी तरह से अलग सेग्मेंट में शिफ्ट होना और उसमें अपने लिए कोई जगह बनाना चुनौतीपूर्ण है। ऐसे में उनके लिए बेहतर है कि वे अपनी मूल दक्षताओं के समान उत्पादों की ओर बढ़ें। उदाहरण के लिए, डर्मेटोलॉजी उत्पादों में फार्मास्युटिकल कंपनियों के उस्ताद प्रभावशाली रूप से शक्तिशाली सौंदर्य और स्वच्छता उद्योग की ओर बढ़ सकते हैं। इसी तरह, विटामिन और सप्लीमेंट्स के निर्माण में कुशल फार्मा कंपनियां तेजी से बढ़ते न्यूट्रास्युटिकल उद्योग में आगे बढ़ सकती हैं। इसके अलावा, चूंकि हैंड सैनिटाइज़र, हैंड वॉश और साबुन जैसे व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद दवाओं और सौंदर्य प्रसाधन दोनों श्रेणी में आते हैं, इसलिए अधिकांश फार्मा कंपनियों के लिए अतिरिक्त चैनलों और आवश्यकताओं के बिना बेचने के लिए ये कहीं अधिक सुविधाजनक हैं।
कोविड-19 ने न्यूट्रास्युटिकल ब्रांडों और व्यक्तिगत देखभाल और स्वच्छता कंपनियों के विकास के लिए अनजाने में ही उत्प्रेरक के रूप में काम किया है। भयानक वैश्विक महामारी से गुजरने के बाद लोग आज अपने आहार, रोग प्रतिरोधक क्षमता, स्वच्छता कारकों और सौंदर्य को लेकर अधिक चिंतित हैं। मजबूत रिसर्च और डेवपमेंट के कारण, नकदी भंडार होने, अप-टू-स्क्रैच मैन्युफैक्चरिंग प्लांट, और बढ़िया बिक्री नेटवर्क की वजह से सौंदर्य और व्यक्तिगत देखभाल सेग्मेंट के 2021 से 2025 के बीच 8.51% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ने की उम्मीद है। दूसरी ओर, 2023 के अंत तक भारतीय न्यूट्रास्युटिकल उद्योग के वैश्विक बाजार का कम से कम 3.5% हिस्सा होने का अनुमान है, क्योंकि 2025 तक इसके 18 बिलियन अमेरिकी डॉलर का उद्योग बन जाने की उम्मीद है।
उपरोक्त वृद्धि भविष्य के रुझानों और मुनाफे का एक निश्चित संकेत है। हालांकि, यह पूरी प्रक्रिया सोल-ड्रेंचिंग और लंबी है, सौंदर्य और व्यक्तिगत देखभाल उद्योग के फार्मा विशेषज्ञता और एडवांस टेक्नोलॉजी और रिसर्च के संयुक्त प्रयासों के साथ उपभोक्ता इन नई-नई कंपनियों से उच्च उम्मीदें रख सकते हैं। चूंकि कोविड-19 ने फार्मा कंपनियों को बड़े पैमाने पर बाजार और ओटीसी के नए स्वाद लेने को मजबूर किया है, इसलिए यह कहना सुरक्षित है कि भविष्य में निश्चित रूप से एफएमसीजी क्षेत्र में फार्मा कंपनियों से अधिक
ओटीसी प्रोडक्ट्स आएंगे।