नई दिल्ली – भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की अवधारणा समय की आवश्यकता बन चुकी है। वर्तमान में देश के विभिन्न हिस्सों में लगातार होने वाले चुनावों के चलते शासन व्यवस्था बाधित होती है, विकास कार्यों पर प्रभाव पड़ता है और प्रशासनिक तंत्र पर अनावश्यक दबाव बनता है।मोहित माधव, वरिष्ठ स्वयंसेवक (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) एवं सामाजिक कार्यकर्ता (दिल्ली-एनसीआर) ने कहा कि अगर देश में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं, तो इससे न केवल आर्थिक संसाधनों की बचत होगी, बल्कि नीतिगत निर्णयों में भी स्थायित्व आएगा। उनके अनुसार, “एक राष्ट्र, एक चुनाव” से न केवल चुनावी खर्च में कमी आएगी, बल्कि शासन प्रणाली अधिक प्रभावी और परिणामदायी होगी। जनता को भी एक व्यापक दृष्टिकोण से राष्ट्र और राज्यों के मुद्दों पर एक साथ निर्णय लेने का अवसर मिलेगा, जिससे लोकतंत्र और भी मजबूत होगा। मोहित माधव ने कहा कि इस पहल से देश को दीर्घकालिक राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक प्रगति का लाभ मिलेगा। उन्होंने आह्वान किया कि सभी राजनीतिक दल और समाज के विभिन्न वर्ग इस विचार पर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं और भारत के लोकतांत्रिक भविष्य को और अधिक सशक्त बनाएं।

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