नई दिल्ली – पुणे के 52 वर्षीय व्यक्ति को हाल ही में चौथी ओपन-हार्ट सर्जरी के सफल होने के बाद नया जीवन मिला है। यह सफलता अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद में किए गए हाई रिस्क वाले ऑपरेशन की वजह से संभव हुई।
अमृता हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट और एडल्ट कार्डियक सर्जरी प्रमुख डॉ. समीर भाटे ने बताया, हमने कई चुनौतियों का सामना किया। हर कदम मुश्किल था क्योंकि पहले हो चुके ऑपरेशन्स के कारण हृदय की संरचना बहुत बदल गई थी। डिसेक्शन के दौरान एक कोरोनरी धमनी चोटिल हो गई। हमें सर्जरी के दौरान अलग-अलग समस्याओं के अनुसार ध्यानपूर्वक प्रक्रियाओं को अंजाम देना पड़ा।घंटों ऑपरेशन टेबल पर रहने के बाद सर्जिकल टीम को सर्जरी के बाद ज्यादा खून बहने का खतरा था। डॉ भाटे ने आगे बताते हुए कहा, हमने मरीज की छाती 24 घंटे के लिए खुला रखने और सावधानीपूर्वक पैक करने का फैसला किया और अगले दिन इसे बंद किया। यह तकनीक मैंने अपने पिता से सीखी थी। ये सामान्य प्रक्रिया नहीं हैं, लेकिन कभी-कभी यही तरीका ऑपरेशन के बाद खून के बहाव को कम करने में मदद करता है। यह तरीका ऐसा होता है जिससे खून जमा होने से हृदय पर दबाव नहीं पड़ता है और ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत भी कम होती है।
मरीज को लंबे समय से रूमैटिक हृदय की बीमारी थी। इस बीमारी ने धीरे-धीरे उनकी माइट्रल और एओर्टिक वाल्व को नुकसान पहुंचाया था। उनके हृदय का इलाज 2002 में शुरू हुआ। एक दशक बाद 2012 में बदले गए वाल्व खराब हो गए थे। दिसंबर 2024 तक उन्हें फिर से लक्षण दिखने लगे। ये लक्षण इस बार बायोलॉजिकल एओर्टिक वाल्व के खराब होने की वजह से नज़र आए।मरीज आयुष ने कहा, पुणे में कई डॉक्टरों ने मेरा ऑपरेशन बहुत ज्यादा खतरा होने के कारण करने से मना कर दिया।डॉ. समीर को विश्वास था कि अमृता हॉस्पिटल में एनेस्थेटिस्ट, पर्फ्यूज़निस्ट और नर्सों की कुशल टीम के साथ सर्जरी सुरक्षित रूप से की जा सकती है। रीडू हृदय सर्जरी तकनीकी रूप से बहुत चुनौतीपूर्ण होती है। डॉ. समीर भाटे ने अब तक 138 रीडू हृदय सर्जरी की हैं। इनमें 4 तीसरी बार रीडू सर्जरी भी उनके द्वारा की गई हैं।सर्जरी दुर्लभ जटिलताओं वाला केस थ। चौथी बार की गई रीडू सर्जरी: एओर्टिक बायोलॉजिकल वाल्व खराब हो गया था, इसलिए मेकेनिकल वाल्व लगाने की सलाह दी गई। बेंटाल सर्जरी एक जटिल ऑपरेशन होता है। इसमें एओर्टिक वाल्व और एसेन्डिंग एओर्टा को बदलना और कोरोनरी आर्टरीज़ को फिर से जोड़ना होता है। सर्जनों ने पेट की धमनियों और नसों को खोलकर कार्डियोपल्मोनरी बायपास शुरू करने का रास्ता बनाया।ऑपरेशन के दौरान धमनी में चोट: ऑपरेशन के दौरान हृदय की एक धमनी फट गई और इसे कोरोनरी आर्टरी बायपास के जरिए ठीक किया गया।ओपन चेस्ट रणनीति ज्यादा ख़ून के बहने के खतरे के कारण छाती को 24 घंटे के लिए खुला रखा गया और सावधानीपूर्वक पैक किया गया। उसके बाद आखिर में बंद किया गया। यह केवल एक हॉस्पिटल की सर्जिकल सफलता नहीं है, बल्कि यह एक राष्ट्रीय उपलब्धि है। यह सफलता कार्डियक एनेस्थेटिस्ट्स की टीम- डॉ. धीरज अरोड़ा, डॉ. श्वेता पांसे, डॉ. राहुल मारिया, डॉ. राजेश पांडे और डॉ. प्रभात चौधरी के सहयोग से संभव हुई है। टीम के अन्य सदस्यों ने भी इस केस को सफल बनाने में टीम के सदस्य नेफ्रोलॉजी- डॉ. उर्मिला आनंद, डॉ. हर्षा इंफेक्शियस डिजीज़- डॉ. रोहित गर्ग यूरोसर्जन- डॉ. मनव सूर्यवंशी पर्फ्यूज़निस्ट्स- रवि देशपांडे, फैसल जैन, थुषारा मोहन पीए- रुहुल खान शानदार सर्जिकल ओटी स्टाफ नर्सें, समर्पित आईसीयू नर्सें और वार्ड नर्सेज ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।