नई दिल्ली- इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के 100वें राष्ट्रीय सम्मेलन (नेटकोन 2025) में देश के जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञों ने आहार वसा (डायटरी फैट्स) और हृदय स्वास्थ्य के पारस्परिक संबंधों पर विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता जताई। विशेषज्ञों ने इस बात पर बल दिया कि बदलते वैज्ञानिक शोध के परिप्रेक्ष्य में पुरानी धारणाओं का पुनर्मूल्यांकन अनिवार्य है। आईएमए नेटकोन के इस शताब्दी सत्र में देशभर के हजारों चिकित्सकों और शोधकर्ताओं ने सहभागिता की, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य की दिशा निर्धारित करने वाले एक प्रमुख मंच के रूप में इसकी भूमिका फिर से मजबूत हुई है। इस सम्मेलन में डॉ. वरुण बंसल और डॉ. केतन मेहता के विशेषज्ञ सत्रों ने उन विषयों पर चिकित्सकीय स्पष्टता प्रदान की, जिन्हें लेकर अक्सर भ्रांतियाँ बनी रहती हैं। वैश्विक शोध और क्लिनिकल साक्ष्यों के आधार पर इन सत्रों में आहार वसा, पाम ऑयल और हृदय संबंधी रोगों (कार्डियोमेटाबॉलिक) के उपचारों का गहन विश्लेषण किया गया। एथेरोस्क्लेरोसिस, सैचुरेटेड फैट और पाम ऑयल: क्या वास्तव में इनका परस्पर संबंध है? विषय पर अपनी प्रस्तुति में डॉ. बंसल ने उन उन मान्यताओं पर प्रश्न उठाए जो सैचुरेटेड फैट को सीधे तौर पर हृदय रोगों का कारक मानती थीं। बहु-देशीय अध्ययनों का संदर्भ देते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि सभी सैचुरेटेड फैट पोषण की दृष्टि से एक समान नहीं होते। हृदय रोगों का जोखिम केवल किसी एक तत्व पर नहीं, बल्कि व्यक्ति की आहार पद्धति, जीवनशैली और कुल कैलोरी सेवन पर निर्भर करता है। डॉ. केतन मेहता ने कार्डियोमेटाबोलिक सिंड्रोम में पाम टोकोट्रिएनोल्स की भूमिका पर अपनी शोधपरक प्रस्तुति दी। उन्होंने भारत में मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्तचाप और डिस्लिपिडेमिया के बढ़ते संकट की ओर संकेत किया। उन्होंने रेड पाम ऑयल में मौजूद विटामिन-ई के विशिष्ट स्वरूप, ‘टोकोट्रिएनोल्स’ पर प्रकाश डालते हुए इनके एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और हृदय-संरक्षी (कार्डियोप्रोटेक्टिव) गुणों के साक्ष्य प्रस्तुत किए। कार्डियोमेटाबोलिक सिंड्रोम एक बेहद जटिल और बहुआयामी स्थिति है। हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि हम रोगी-केंद्रित उपचार में गहन शोध पर आधारित पोषण तत्वों को शामिल करें।इन सत्रों ने उपस्थित चिकित्सा विशेषज्ञों को वैचारिक रूप से गहरे स्तर पर प्रभावित किया। सक्रिय परिचर्चा और प्रश्नोत्तर के दौर ने स्पष्ट किया कि चिकित्सक भी अब पुरानी आहार मान्यताओं को आधुनिक वैज्ञानिक साक्ष्यों की कसौटी पर परखने के इच्छुक हैं। इन चर्चाओं ने हृदय और मेटाबोलिक स्वास्थ्य के लिए संतुलित एवं साक्ष्य-आधारित दिशा-निर्देशों को सुदृढ़ करने हेतु चिकित्सा जगत में निरंतर वैज्ञानिक संवाद की आवश्यकता को और भी मजबूत किया है।
