उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के खाते में चुनावी नाकामी का एक और अध्याय जुड़ गया तो पहली बार सक्रिय नेता के तौर पर जनता के बीच पहुंची प्रियंका गांधी वाद्रा का जादू भी बेअसर रहा। राहुल गांधी ने मुख्य रूप से पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव प्रचार का मोर्चा संभाला था तो उत्तर प्रदेश की पार्टी प्रभारी प्रियंका ने राज्य में चुनाव अभियान की पूरी कमान संभाल रखी थी। प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में 209 जनसभाओं को संबोधित किया और कई रोडशो तथा डिजिटल कार्यक्रमों में भाग लिया, जबकि राहुल गांधी ने भी चुनावी राज्यों में कई जनसभाओं को संबोधित किया। राहुल ने 2019 के लोकसभा में चुनाव में कांग्रेस की करारी शिकस्त के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। इसके बाद भी वह पार्टी के प्रमुख चेहरा और चुनाव अभियान के नेता के तौर पर अपनी भूमिका निभाते रहे तथा इस दौरान कांग्रेस को कई विफलताएं और कुछ सफतलाएं मिलीं।
लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी ने ठीक-ठाक प्रदर्शन किया। महाराष्ट्र और झारखंड में वह गठबंधन सरकार का हिस्सा भी बनी। साल 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला। बिहार विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को सिर्फ 19 सीटें मिलीं, जबकि वह राजद के साथ गठबंधन में 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। पिछले साल असम, केरल, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इन राज्यों में पराजय के बाद विरोधियों ने राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए। दूसरी तरफ, साल 2019 में सक्रिय राजनीति में कदम रखने वाली प्रियंका गांधी पहली बार किसी चुनाव में पुरजोर तरीके से चुनाव प्रचार किया। उनकी सभाओं में भीड़ भी आई, हालांकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों में इसका असर नहीं दिखा। विशेषज्ञों का कहना है कि ए चुनाव नतीजे राहुल गांधी के साथ प्रियंका गांधी की राजनीतिक छवि के लिए भी बड़ा झटका है।
लेखक और वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में एक दलित मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन यह प्रयोग विफल रहा। इसी तरह, उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की मौजूदगी भी बेअसर रही। इससे सवालिया निशान लगता है। वे कांग्रेस परिवार में अपनी विश्वसनीयता खो रहे हैं। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले जी 23 समूह के नेता ही नहीं, कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं का विश्वास भी अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी में खत्म हो रहा है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजय के. पांडे का कहना है कि मौजूदा स्थिति कांग्रेस के लिए बहुत बुरी है और इससे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की छवि को झटका लगा है। उन्होंने कहा कि इस तरह के नतीजे से जी 23 के नेताओं और गांधी परिवार के अन्य विरोधियों को ताकत मिलेगी। गौरतलब है कि कांग्रेस ने पंजाब में सत्ता गंवा दी और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा।