नई दिल्ली- ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज के अनुसार भारत में होने वाली कुल मौतों में से लगभग एक चौथाई 24.8 प्रतिशत हृदय रोगों सीवीडी के कारण होती हैं। और जोखिम धीरे-धीरे बढ़ रहा है, खासकर युवा आबादी में। हाल ही में यह भी सामने आया है कि कमर नितंब का उच्च अनुपात डब्ल्यूएचआर उच्च रक्तदाब और मोटापा महिलाओं में सीवीडी के बढ़ते मामलों के प्रमुख कारण बन गए हैं। भारतीय आबादी में मोटापे उच्च रक्तचाप और कमर नितंब अनुपात और सीवीडी के बीच संबंध के बढ़ते प्रमाणों को सामने लाने के लिए और उन्हें निवारक जांच द्वारा इसकी शीघ्र पहचान के बारे में शिक्षित करने के लिए इंडिया हेल्थ लिंक आईएचएल ने हील फाउंडेशन के सहयोग से एक अध्ययन किया है। यह अध्ययन युवाओं में हृदय रोगों की रोकथाम कमर नितंब अनुपात डब्ल्यूएचआर उच्च रक्तदाब बीएमआई और सीवीडी के मध्य संबंध के बढ़ते प्रमाण विषय पर किया गया। बढ़ते उच्च कमर नितंब अनुपात डब्ल्यूएचआर मोटापे उच्च रक्तचाप और सीवीडी की घटनाओं के बीच संबंधों पर प्रकाश डालते हुए डॉ एच के चोपड़ा, सीनियर कंसल्टेंट कार्डियोलॉजिस्ट ने कहा मोटापा और उच्च रक्तचाप जैसे मेटाबोलिक सिंड्रोम सीवीडी के मामलों के जोखिम से महत्वपूर्ण रूप से जुड़े हुए हैं हालांकि हाल के अध्ययनों से पता चला है कि कमर हिप अनुपात डब्ल्यूएचआर भी सीवीडी की शुरुआत का एक मजबूत संकेत है। उच्च कमर नितंब अनुपात डब्ल्यूएचआर बीपी, बीएमआई और सीवीडी के मध्य संबंध के बढ़ते प्रमाणों पर जो हाल में हुए अध्ययन में उभरकर आए हैं उन्हें प्रस्तुत करते हुए इंडिया हेल्थ लिंक आईएचएल के संस्थापक और सीईओ डॉ सत्येंद्र गोयल ने कहा अध्ययन से पता चला है कि कमर नितंब अनुपात बीएमआई और बीपी में वृद्धि और युवा आबादी में सीवीडी के बढ़ती मामलों के बीच एक मजबूत संबंध है। लेकिन अध्ययन में यह चौंकाने वाली बात सामने आई है कि 80 प्रतिशत उच्च रक्तचाप वाली महिलाएं मोटापे से ग्रस्त हैं और उनमें से 67 प्रतिशत में उच्च कमर नितंब अनुपात है। डॉ एच के चोपड़ा सीनियर कंसल्टेंट कार्डियोलॉजिस्ट ने कहाए हाल ही में इंडिया हेल्थ लिंक द्वारा किए अध्ययन ने कमर नितंब अनुपात बीएमआई और बीपी में वृद्धि और युवा आबादी में सीवीडी की बढ़ते मामलों के मध्य एक मजबूत संबंध सामने लाया है जो सीवीडी के मामलों में प्रमुख योगदान देता है। भारतीयों को अपनी निवारक देखभाल को प्राथमिकता देने और प्रारंभिक जांच के लिए जाने की आदत नहीं है इसलिए ऐसी कई रोकथाम योग्य बीमारियों का जल्द निदान नहीं किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप बीमारी का बोझ बढ़ जाता है।