अटल बिहारी बाजपेयी, भारतीय राजनीति की एक ऐसी शख्सियत, जिनके इरादे अटल थे और सियासत के फलक पर उनका स्वरूप विराट रहा था। राजनीति उनको विरासत में नहीं मिली थी इसलिए वे आम आदमी की तरह संघर्षों में तपकर सोना बने थे।अटल जी के सादगी भरे अंदाज के देशी राजनेता से लेकर विदेशी दिग्गज तक कायल थे। अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी से जुड़ा एक रोचक किस्सा उज्जैन से 30 किलोमीटर दूर तराना तहसील से का है, जहां अटलजी संघ प्रचारक बनकर पहुंचे थे और उस वक्त उनके सितारे भी काफी गर्दिश में थे।
अटल जी का जन्म उस वक्त की ग्वालियर रियासत में हुआ था,लेकिन राजनीति के इस कद्दावर योद्धा ने सियासत के गुर मध्य प्रदेश के मालवा से सीखे थे। प्रभास प्रकाशन से प्रकाशित किताब “मैं अटल बिहारी बाजपेयी बोल रहा हूं” में अटलजी ने लिखा, “जब मैं पहली बार भाषण देने के खड़ा हुआ तथा उस वक्त मैं बड़नगर में था। वहां पर मेरे पिताजी हेडमास्टर के पद पर थे। वार्षिकोत्सव का अवसर था और मैं बगैर तैयारी के मंच पर खड़ा हो गया। बीच में मैं लड़खड़ा गया इसलिए भाषण को बीच में ही बंद कर स्टेज को छोड़ना पड़ा। उस वक्त मैं पांचवी क्लास में था और मैने इस वाकिये को गंभीरता से नहीं लिया।
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं।
आज यह गीत देश के पूर्व प्रधानमंत्री और कवि हृदय अटल बिहारी वाजपेयी की याद दिला रहा है। आज अटल जयंती है और भारत जोड़ो यात्रा लेकर दिल्ली पहुंचे राहुल गांधी भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने जाने वाले हैं। सवाल उठ सकते हैं कि अचानक कांग्रेस को विरोधी विचारधारा के दिग्गज नेता ‘अच्छे’ क्यों लगने लगे? वाजपेयी कांग्रेस के बारे में क्या सोचते थे, उनके नेताओं के बारे में उनकी राय क्या थी? भारतीय राजनीति के ‘अजातशत्रु’ के बारे में वैसे तो बहुत कुछ है जिसे आज याद किया जा सकता है लेकिन जब पक्ष और विपक्ष में क्रेडिट लेने की होड़ मची हो, एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिशें हो रही हों तो उनका व्यक्तित्व रास्ता दिखाता मालूम पड़ता है। पिछले कुछ वर्षों में पंडित जवाहर लाल नेहरू पर काफी सवाल खड़े हुए। कश्मीर से लेकर चीन के मसले पर भाजपा ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। एक साल में कोरोना वैक्सीन बनी तो कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों पर सवाल उठे और यह नरैटिव सेट करने की कोशिश की गई जैसे पिछले 6-7 दशकों में कुछ हुआ ही नहीं।अटल का सफरनामा
अटल का जन्म आज यानी 25 दिसंबर के दिन 1924 में ग्वालियर में हुआ था। उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज (लक्ष्मीबाई कॉलेज) से स्नातक और कानपुर के दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज से राजनीति विज्ञान में एमए किया था। 1957 में वह पहली बार उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से चुनकर लोकसभा पहुंचे। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे। आगे 47 वर्षों तक उन्होंने सांसद के रूप में देश की सेवा की। वह 10 बार लोकसभा और 2 बार राज्यसभा के लिए चुने गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन और 1975 में आपातकाल के दौरान वह जेल भी गए।
संसद का सबसे यादगार भाषण संसद में विश्वास प्रस्ताव के दौरान अटल जी ने कहा था,देश आज संकटों से घिरा हुआ है और ये संकट हमने पैदा नहीं किए हैं। जब-जब कभी आवश्यकता पड़ी, संकटों के निराकरण में हमने उस समय के सरकार की मदद की है। सत्ता का खेल तो चलता रहेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिए। अटल जी ने नरसिम्हा राव सरकार के कार्यकाल की यादों को भी सदन के सामने रखा था।
संसद में विश्वास प्रस्ताव के दौरान अटल जी ने कहा था,देश आज संकटों से घिरा हुआ है और ये संकट हमने पैदा नहीं किए हैं। जब-जब कभी आवश्यकता पड़ी, संकटों के निराकरण में हमने उस समय के सरकार की मदद की है। सत्ता का खेल तो चलता रहेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिए। अटल जी ने नरसिम्हा राव सरकार के कार्यकाल की यादों को भी सदन के सामने रखा था।संसद में विश्वास प्रस्ताव के दौरान अटल जी ने कहा था1999-2004 तक चलाई सरकार1996 में लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान श्री अटल जी ने कहा था, “यदि मैं पार्टी तोड़ू और सत्ता में आने के लिए नए गठबंधन बनाऊं तो मैं उस सत्ता को छूना भी पसंद नहीं करूंगा। 1996 में अटल जी को सिर्फ 13 दिन की सरकार चलाने का मौका मिला था। 1998 में एक बार फिर से अटल जी की सरकार 13 महीने में गिर गई थी। 1999 में हुए चुनाव में देश की जनता ने एक बार फिर से अटल जी पर भरोसा जताया और इस बार उन्होंने पूरे पांच साल तक सरकार चलाई थी।प्रधानमंत्री गांव सड़क योजना ने बदली गांवों की तकदीर गांव, गरीब और किसान तीनों ही अटलजी की प्राथमिकताओं में शुमार थे। उन्होंने अपने प्रधानमंत्री काल में कई ऐसे कदम उठाए जिन्होंने ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल डाली। इनमें प्रधानमंत्री गांव सड़क योजना ने तो गांवों को शहरों से जोड़कर ग्रामीण भारत की तकदीर ही बदल दी। तीन बार बने प्रधानमंत्री, हमेशा रखा गांवों व किसानों का खयाल अटलजी तीन बार प्रधानमंत्री रहे थे। सबसे पहले वर्ष 1996 में 13 दिन, फिर 1998 में 13 माह और अंतिम बार 1999 से 2004 तक। इस दौरान उनकी सरकारों ने गांवों व किसानों के अलावा गरीबों के हित में अनेक बड़े फैसले किए। किसानों व गांवों के लिए वे हमेशा तत्पर रहते थे। इसी कारण उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए भी 13 माह तक कृषि मंत्रालय अपने पास रखा था। वे हमेशा कृषि, गरीबी, निरक्षरता और बेरोजगारी को लेकर चिंतित रहे। विपक्ष में रहते हुए भी सरकार के मुखिया के नाते भी।किसान क्रेडिट कार्ड व कृषि आय दोगुना करने की पहल
अटलजी ने 15 अगस्त 2003 को लाल किले की प्राचीर से पहली बार देश के किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य रखा था। उनकी सरकार ने ही किसान क्रेडिट कार्ड योजना शुरू की थी। इसके लिए उन्होंने रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय की प्रतिकूल राय को भी दरकिनार कर दिया था। 1998 में आरंभ हुई किसान क्रेडिट कार्ड योजना ने किसानों को खाद, बीज के लिए सहकारी संस्थाओं व बैंकों से आसानी से कर्ज के इंतजाम किए। उनके प्रधानमंत्री काल में ही पहली बार राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना शुरू की गई। यह फसल बीमा योजना 1999-2000 के रबी सीजन से शुरू हुई थी।