नई दिल्ली- हर साल दुनिया में 62 मिलियन टन ई-वेस्ट पैदा होता है यह सबसे तेज़ी से बढ़ते कचरा प्रवाहों में से एक है। हममें से ज्यादातर लोग शायद ही कभी सोचते हैं कि हमारे पुराने फ़ोन, चार्जर या लैपटॉप का क्या होता है। लेकिन अब पूरे भारत में युवा बदलावकर्ता कठिन सवाल पूछने और उनके जवाब खोजने के लिए आगे आ रहे हैं। स्कूल्स फॉर सस्टेनेबिलिटी, जो बजाज फाउंडेशन द्वारा इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, मेरी लाइफ़ और यूनिसेफ़ युवाह के सहयोग से शुरू की गई एक पहल है, छात्रों को यह समझा रही है कि आज किए गए उनके चुनाव कल के हरित भविष्य को आकार दे सकते हैं। यह केवल रिसाइक्लिंग के बारे में नहीं है, बल्कि जागरूकता के बारे में है। खपत पर पुनर्विचार करने से लेकर ई-वेस्ट को एन्वायरनमेंटल वेस्ट समझने जैसी भ्रांतियों को दूर करने तक, यह कार्यक्रम सस्टेनेबिलिटी को प्रासंगिक और वास्तविक बनाता है। सिर्फ किताबों के पाठ नहीं, बल्कि छात्र वर्कशॉप्स में कहानियों, खेलों, केस स्टडीज़ और इंटरैक्टिव सत्रों के माध्यम से सीखते हैं, जो सर्कुलर इकोनॉमी के विचार को जीवंत बना देते हैं। वे देखते हैं कि कैसे एक छोटा सा कदम-जैसे किसी पुराने गैजेट को जिम्मेदारी से फेंकना-मिट्टी और पानी में जहरीले कचरे के रिसाव को रोक सकता है। वे सीखते हैं कि सस्टेनेबिलिटी कोई केवल चर्चित शब्द नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है जो उनके हर छोटे कदम पर आधारित होती है। यह अभियान कक्षाओं से बाहर भी पुल बनाता है। 304 स्कूलों में 65 वर्कशॉप्स के माध्यम से, बजाज फाउंडेशन की इस पहल ने पहले ही दिल्ली, मुंबई और राजस्थान के 38,804 छात्रों को प्रभावित किया है। स्कूल स्थानीय एनजीओ, सामुदायिक नेताओं और विशेषज्ञों से जुड़ते हैं, जिससे जागरूकता का असर घरों और मोहल्लों तक फैलता है। कई छात्रों के लिए यह पहला मौका है जब वे समझ रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन कोई अमूर्त अवधारणा नहीं, बल्कि उनके हाथों में मौजूद डिवाइस से जुड़ा हुआ है। इस जिज्ञासा को जल्दी जगाकर, बजाज फ़ाउंडेशन उम्मीद करता है कि वह ऐसे जागरूक नागरिकों का निर्माण करेगा, जो इन सीखों को अपने परिवारों, करियर और उस भविष्य तक लेकर जाएँगे, जिसे वे आकार देंगे। यदि आप भी इस आंदोलन का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो बजाज फाउंडेशन के सस्टेनेबिलिटी एक्शन नेटवर्क से जुड़ें, जहाँ जागरूकता को कार्रवाई में बदला जाता है।