नई दिल्ली – डिजिटल शिक्षा और उद्यमिता के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने पर हाल ही में आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यक्रम के दौरान डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए उच्च शिक्षा तक पहुँच बढ़ाने की रूपरेखा पर चर्चा की गई। कार्यक्रम का मुख्य फोकस ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं और युवाओं की भागीदारी को बढ़ाना था, ताकि 2050 तक भारत में 100% सकल नामांकन अनुपात प्राप्त किया जा सके। इस आयोजन की प्रमुख झलक रही तीन महिला ग्राम स्तरीय उद्यमियों (VLEs) को अंतिम छोर तक डिजिटल सशक्तिकरण को सक्षम बनाने में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। रेवाड़ी की सुश्री सोनू बाला, बिलासपुर की सुश्री अंचल अगीचा, और दक्षिण-पश्चिम जिला की सुश्री सरिता सिंघानी को, CSCs के माध्यम से महिला उद्यमियों के रूप में उनके योगदान के लिए सराहा गया। उन्होंने डिजिटल सेवाओं तक पहुँच, ऑनलाइन शिक्षा और स्थानीय स्तर पर जागरूकता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो समुदाय-आधारित परिवर्तन में महिलाओं की केंद्रीय भूमिका को दर्शाता है। सीएससी अकादमी के चेयरमैन श्री संजय कुमार राकेश, शूलिनी विश्वविद्यालय के संस्थापक एवं अध्यक्ष श्री आशीष खोसला, और यूनिसेफ इंडिया के ‘पासपोर्ट टू अर्निंग’ कार्यक्रम के प्रोग्राम स्पेशलिस्ट श्री पल्लव तिवारी ने डिजिटल अवसंरचना, कौशल-आधारित शिक्षा और जमीनी साझेदारियों के माध्यम से नामांकन में अंतर को कम करने पर केंद्रित चर्चा का नेतृत्व किया। उन्होंने बताया कि कैसे महिलाओं की भागीदारी और लचीले ऑनलाइन कार्यक्रम, शिक्षा व रोजगार के लिए समावेशी रास्ते बना सकते हैं। श्री आशीष खोसला, संस्थापक एवं अध्यक्ष, शूलिनी विश्वविद्यालय ने कहा,महिलाएं हमारे समाज की रीढ़ हैं, और उनकी शिक्षा सच्ची समानता की दिशा में पहला कदम है। जब एक महिला शिक्षित होती है, तो एक पूरी पीढ़ी बदल जाती है। आज भारत की कार्यबल में केवल 24% महिलाएं शामिल हैं यह बदलाव आवश्यक है। यदि उन्हें सही समर्थन, कौशल और आत्मविश्वास मिले, तो महिलाएं नेतृत्व कर सकती हैं, नवाचार कर सकती हैं और एक सशक्त भारत का निर्माण कर सकती हैं। श्री संजय कुमार राकेश, चेयरमैन, सीएससी अकादमी ने कहा,सीएससी का मुख्य उद्देश्य केवल सेवा प्रदान करना नहीं है, बल्कि समुदायों के भीतर वास्तविक अवसरों का निर्माण करना है। शूलिनी विश्वविद्यालय के साथ हमारी साझेदारी इस दृष्टिकोण को समर्थन देती है, क्योंकि यह गांवों की महिलाओं और युवाओं को गुणवत्तापूर्ण, व्यावसायिक शिक्षा तक पहुँच प्रदान करती है। ऐसी शिक्षा, जो रोजगार तक ले जाए, पूरे परिवार की आर्थिक स्थिति को बदल सकती है। हम इसे एक व्यावहारिक और प्रभावशाली पहल मानते हैं। श्री पल्लव तिवारी, प्रोग्राम स्पेशलिस्ट, यूनिसेफ इंडिया ने कहा,आज की फिल्मों में महिलाएं नेताओं और पेशेवरों के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत अधिक जटिल है। कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी अब भी 25% से कम है विशेषकर ग्रामीण भारत में, महिलाएं अब भी अनौपचारिक और कम वेतन वाली नौकरियों तक सीमित हैं। सीएससी के साथ साझेदारी के माध्यम से हमारा लक्ष्य अंतिम छोर तक कौशल प्रशिक्षण पहुँचाना है। सिर्फ 10 घंटे का कोर्स भी परिवर्तन की शुरुआत हो सकता है। यात्रा शुरू हो चुकी है, लेकिन हमें बहुत आगे जाना है। कार्यक्रम के दौरान शूलिनी विश्वविद्यालय और कॉमन सर्विस सेंटर्स (CSC) के बीच हुई साझेदारी को भी रेखांकित किया गया, जिसे इस वर्ष की शुरुआत में एक समझौता ज्ञापन (MoU) के माध्यम से औपचारिक रूप दिया गया था। इस साझेदारी के अंतर्गत, छात्र CSC के देशव्यापी केंद्रों के नेटवर्क के माध्यम से शूलिनी के ऑनलाइन और दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों तक पहुँच प्राप्त कर सकते हैं। ये केंद्र डिजिटल एक्सेस, अकादमिक मार्गदर्शन और प्रवेश सहायता जैसी सेवाएं प्रदान करते हैं।इस पहल के तहत, शूलिनी विश्वविद्यालय ने अपनी ऑनलाइन डिग्री कार्यक्रमों में योग्य महिला आवेदकों के लिए विशेष रूप से 40% छात्रवृत्ति की घोषणा की है।यह आयोजन शिक्षा तक पहुँच में मौजूद महत्वपूर्ण अंतरालों को भरने की दिशा में एक समन्वित प्रयास को दर्शाता है। इसने यह रेखांकित किया कि डिजिटल प्लेटफॉर्म, स्थानीय नेतृत्व और लक्षित सहयोग के माध्यम से दीर्घकालिक प्रभाव उत्पन्न किया जा सकता है, जिससे भारत के 2050 तक 100% सकल नामांकन अनुपात के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।

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