नई दिल्ली- भारत इस समय अपनी डिजिटल यात्रा के निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। जैसे-जैसे दुनिया तेजी से ऑन-डिमांड कंटेंट और डेटा आधारित सेवाओं की ओर बढ़ रही है, एक नई तकनीक चुपचाप उभर रही है। यह तकनीक ना केवल कंटेंट डिलीवरी को पूरी तरह बदल सकती है बल्कि डिजिटल खाई को भी पाट सकती है। इस तकनीक का नाम है- डायरेक्ट-टू-मोबाइल (D2M) ब्रॉडकास्टिंग। सवाल ये नहीं है कि भारत तैयार है या नहीं, सवाल ये है कि क्या भारत इस बदलाव का नेतृत्व करेगा? बीएसई एक्सपो 2025 (BES EXPO 2025) में डीटूएम तकनीक चर्चा के केंद्र बिंदु में रही। आयोजन में शामिल टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स, मोबाइल निर्माता, ब्रॉडकास्टर्स और नीति-निर्माताओं ने इस बात पर चर्चा की कि कैसे भारत डीटूएम तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाए। प्रसारण जगत के अनुभवी विशेषज्ञ मार्क ए. एटकन ने अपने 27 वर्षों के भारतीय अनुभव के आधार पर भारत को एक भागीदार नहीं, बल्कि वैश्विक मीडिया परिवर्तन का संभावित नेता बताया। उन्होंने उस समय की याद दिलाई जब भारत का मीडिया सैटेलाइट डिश और टावरों द्वारा संचालित होता था और इसकी तुलना आज की वास्तविकता से की, जो मोबाइल फोन और डिजिटल स्क्रीन के प्रभुत्व वाली है। इस नई वास्तविकता में, डीटूएम ब्रॉडकास्टिंग एक जरूरी विकल्प बनकर उभरी है। डीटूएम: सहज लेकिन परिवर्तनकारी ,डीटूएम की खासियत है कि यह मोबाइल फोन पर सीधे कंटेंट भेज सकता है, वो भी बिना इंटरनेट के। भारत में 1.15 अरब मोबाइल कनेक्शन हैं, लेकिन सबके पास इंटरनेट की अच्छी सुविधा नहीं है। दिसंबर 2024 की भारत सरकार की रिपोर्ट और IAMAI-Kantar के 2024 के डेटा के अनुसार, भारत में 886 मिलियन लोग ही इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। यानी 26 करोड़ से ज्यादा लोग मोबाइल तो रखते हैं, लेकिन इंटरनेट प्रयोग नहीं कर पाते। यह आंकड़ा बहुत बड़ी डिजिटल खाई को दर्शाता है। इसलिए डीटूएम प्रौद्योगिकी से कहीं बढ़कर सामाजिक आवश्यकता बन जाती है। वर्तमान में, वीडियो कंटेट ओटीटी एप और टेलिकाम मोबाइल नेटवर्क से प्रसारित होते हैं, जहां हर फोन पर अलग-अलग डेटा भेजा जाता है। इससे नेटवर्क पर भारी दबाव पड़ता है और यूजर को भी ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं। तेजस नेटवर्क के पराग नाइक के मुताबिक, डीटूएम तकनीक प्रसारण के इस मॉडल को बदल देती है। यह एक साथ लाखों लोगों को एक ही समय पर कंटेंट भेज सकती है। इससे स्पेक्ट्रम और डेटा दोनों की बचत होती है, और सभी को आसानी से जानकारी मिल सकती है। भारत में मोबाइल डेटा भले ही दुनिया के बाकि देशों के मुकाबले सस्ता है लेकिन अब भी निम्न आय वर्ग समेत ग्रामीण खरीदने में असमर्थ है। ट्राई के मुताबिक, एक भारतीय औसतन हर महीने 20 GB डेटा खर्च करता है, जिसमें ज़्यादातर वीडियो देखना शामिल होता है। लेकिन 1GB डेटा की कीमत ₹10 से ₹15 होती है, जो ₹10,000 से कम कमाने वालों के लिए खरीदना मुश्किल है। दुनिया के पहले डीटूएम फीचर फोन के निर्माण से जुड़े एरिक शिन बताते हैं कि यह तकनीक उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होगी जो महंगा स्मार्टफोन या महंगा डेटा नहीं खरीद सकते। डीटूएम की मदद से शिक्षा, खबरें, मनोरंजन और आपातकालीन अलर्ट सीधे उनके फोन तक पहुंचाए जा सकते हैं। डीटूएम केवल वीडियो या मनोरंजन के लिए नहीं है, यह आपातकाल के समय बहुत काम आएगा। यह आपदा प्रबंधन में मददगार साबित हो सकता है। जैसे भूकंप, बाढ़ या किसी इमरजेंसी की खबरें बिना एसएमएस या ऐप के सीधे हर फोन पर भेजी जा सकेंगी। शिक्षा के लिहाज से भी यह बहुत उपयोगी है। डीटूएम से बिना डाउनलोड या बफरिंग के लेक्चर और स्टडी मटीरियल बच्चों तक पहुंच सकता है। जनसंचार में यह सरकारी सूचनाएं बिना एल्गोरिद्म या विज्ञापन के सीधे लोगों तक पहुँचाने का माध्यम बन सकता है।
तकनीकी उपलब्धता और सफल ट्रायल के बावजूद भारत ने अभी तक इसे बड़े स्तर पर अपनाने में झिझक दिखाई है। मार्क एटकन ने बताया कि भारत उन कुछ देशों में है जहां पूरी डीटूएम टेक्नोलॉजी हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और कंटेंट अपने देश में ही विकसित की गई है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है और यह डिजिटल इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और भारत की ग्लोबल लीडरशिप की सोच से मेल खाती है। इस रुख के पीछे शायद नीतियों को लेकर अस्पष्टता, स्पेक्ट्रम की चिंता या संस्थागत सुस्ती हो सकती है। लेकिन ये सभी समस्याएं राजनीतिक इच्छाशक्ति और सही नीति से आसानी से हल की जा सकती हैं। जरूरत है तो बस राष्ट्रव्यापी प्रयास की। जिसके तहत केंद्र सरकार डीटूएम को डिजिटल प्लान में शामिल करे, मोबाइल कंपनियों को डीटूएम चिप लगाने के लिए प्रोत्साहित करे, कंटेंट बनाने वालों की मदद की जाए और राज्य सरकारों के साथ मिलकर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में पायलट प्रोजेक्ट चलाए जाएं। लावा और एचएमडी जैसी कंपनियां पहले ही सस्ते फोन में डीटूएम फीचर दे रही हैं, जिससे शहर और गांव दोनों जगह के लोग फायदा उठा सकें। हमें यह समझना होगा कि भारत की अगली मोबाइल क्रांति किसी महंगे फोन से नहीं, बल्कि ज्यादा समावेशी और स्मार्ट तकनीक से आने वाली है। डीटूएम के लक्ष्य निहित है। यह सिर्फ वीडियो बेहतर तरीके से दिखाने की बात नहीं है। असल बात ये है कि हर भारतीय को डिजिटल फायदे मिलें, चाहे उसके पास हाई-स्पीड इंटरनेट हो या नहीं। डीटूएम डिजिटल समानता का माध्यम है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति की जानकारी, शिक्षा और अवसरों तक समान पहुंच सुनिश्चित हो। भारत का डीटूएम नेतृत्व न केवल देशवासियों को लाभ देगा, बल्कि अन्य विकासशील देशों के लिए भी उदाहरण बनेगा। जब पूरी दुनिया समावेशी डिजिटल पहुंच पर ज़ोर दे रही है, भारत यह दिखा सकता है कि सबके लिए समान नवाचार कैसा होता है।

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