नई दिल्ली -बढ़ते सामाजिक तनाव और राजनीतिक जटिलताओं के इस दौर में, प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेता डॉ. विनोद स्वर्ण गुरु ने एकता और सद्भाव का संदेश देते हुए राष्ट्रीय विकास के लिए करुणा, मानवता और सहिष्णुता को आवश्यक बताया। राजधानी में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने धार्मिक स्थलों के विवाद और समाज में बढ़ती असहमति पर चर्चा की। गुरुजी ने जोर देकर कहा कि धर्म और आस्था को मानवता को जोड़ने का माध्यम होना चाहिए, न कि विभाजन का कारण। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत की विविधता ही उसकी वैश्विक आकांक्षाओं की नींव है और समावेशिता के बिना विकास और नवाचार संभव नहीं। डॉ. स्वर्ण गुरु ने तर्कसंगत और अंधविश्वास-मुक्त आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करते हुए आधुनिक और प्रगतिशील दृष्टिकोण पेश किया। उनकी संस्था स्पिरिचुअल सोल्स मानसिक स्वास्थ्य, नशा मुक्ति और सामुदायिक विवादों के समाधान पर कार्यरत है। एक आदिवासी मां और पिछड़े वर्ग के पिता के पुत्र के रूप में जन्मे डॉ. स्वर्ण गुरु का जीवन विविधता और संघर्ष का प्रतीक है। उनके विचार परंपरा और आधुनिकता का संतुलित मिश्रण प्रस्तुत करते हैं।सामाजिक समरसता और अहिंसा के माध्यम से देश के नागरिकों और नेताओं को एकजुट होकर कार्य करने की प्रेरणा दी।

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