नई दिल्ली – सम्पूर्ण ब्रह्मांड पंचतत्वों से निर्मित है। हमारा शरीर भी पंचतत्व से बना है । ग्रहों का प्रभाव सभी पदार्थो पर पड़ता है । सजीव व निर्जीव। ग्रहों का सीधा सम्बन्ध हमारे शरीर के स्वास्थ्य पर पड़ता है।ज्योतिष शास्त्र में यदि बात के किसी पंडित ग्रह से हमें शारिरिक कष्ट या कोई बीमारी होती है जो हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते है। शारिरिक स्वास्थ्य पर अपना प्रभाव डालते है। सूर्य:- सूर्य यदि आप की कुण्डली में बली होगा तो व्यक्ति की हड्डियां मजबूत होगी ।नेत्र ज्योति अच्छी रहेगी । यदि सूर्य निर्बल होगा तो हड्डी भी कमजोर होती हे। मस्तिष्क में भी दुर्बलता आती है। सरकार से सम्बंधित समस्याए, ईश्वर अकृपा ,सिर में दर्द पीत ज्वर,मिर्गी ,क्षयरोग, पेट एवं लिवर,शूल (चुभने वाली) रोग से जातक पीड़ित होता है। चंद्रमाः- चन्द्रमा बली होने से शरीर में रक्त का प्रवाह अच्छा होने के कारण मनुष्य स्वस्थ होता है। लेकिन यदि चंद्रमा पाप प्रभावित हो तो मनुष्य कोडिसुरिया” (dysuria) रोग, नासिका रोग, कफ जनित रोग, ज्वर एवं कफ, पीनस रोग, एनीमिया, स्त्री प्रसंग एवं व्यभिचारिता जनित रोग, अतिसार, पाचन शक्ति का कमज़ोर होना खून से सम्बंधित रोग से जातक पीड़ित होता है। मंगल के बली होने से मनुष्य की हड्डियां मजबूत होती हैं। परन्तु मंगल के दोषी रहने से अंडकोष वृद्धि, कफ, फोड़े, फुंसी आदि खून से सम्बंधित पीड़ायें, पीतज-ज्वर, वायु जनित पीड़ा, कुष्ट एवं शस्त्र आदि से भय होता है। ऐसे मनुष्य को प्रायः ऊपरी भाग में पीड़ा होती है। साथ ही दरिद्रता के कारण जिन रोगों की उत्पत्ति होती है. उन रोगों से ऐसा जातक पीड़ित रहता है। बुधः- के शुभ होने से मनुष्य के शरीर का चमड़ा सुंदर एवं रोग रहित होता है। परंतु बुध के अनिष्ट कारी होने से पेट एवं गुप्त अंगों में वायु प्रकोप से रोगों की उत्पत्ति होती है तथा त्रिदोष विकार से ज्वर, धीमी पाचन शक्ति, शूल, चर्म रोग, : खून की कमी, गला एवं नासिका रोग होता है। बृहस्पतिः- उच्च अथवा सुभदायी हो तो मस्तिष्क की शक्ति अच्छी होती है। परंतु क्लेसित रहने से प्लीहा, ज्वर, कफ जनित रोग, मस्तिष्क विकार से रोग, बेहोशी, कर्ण रोग एवं मानसिक दुख आदि यदि शुभ हो तो वीर्य की पुष्टि और काम शक्ति में उत्तेजना होती है। यदि शुक्र पापा ग्रह हो तो स्त्री सहवास जनित पीड़ा, मादक द्रव्य के सेवन से दुख जनेन्द्रिय रोग, खून से सम्बंधित, पॉलीयूरिया रोग, कफ-वायु जनित रोग, नेत्र रोग एवं क्षय रोग होती है। यदि शुभ हो तो स्नायु -जनित अंग दृढ़ एवं मजबूत होते हैं, और शनि के अशुभ रहने से वायु एवं कफ के प्रकोप से गठिया आदि रोग, उदर रोग, पक्षाघात लकवा, अंग भंग इत्यादि क्लेश एवं दरिद्रता से उत्पन्न रोग होते हैं। के विपरीत होने से मृगी, चेचक, कुष्ठ रोग, हैलिमिंथियासिस रोग, पैरों में पीड़ा एवं सर्प से भय होता है और कभी-कभी यह ग्रह अपने प्रभाव द्वारा आत्महत्या संकल्प बुद्धि को उत्तेजित करता है। केतु :-केतु के विकार से कण्डु, चेचक आदि रोग होते हैं। संक्षिप्त में सूर्यादि ग्रह से सम्बंधित रोगों का विचार इस प्रकार किया जाता है। सूर्य मुँह में बार बार थूक इकट्ठा होना, झाग निकलना, धड़कन का अनियंत्रित होना, शारीरिक कमजोरी और रक्तचाप इत्यादि रोगों का विचार सूर्य से किया जाता है!चन्द्रमा- दिल और आँख की कमजोरी का विचार किया जाता है। मंगल :- रक्त और पित्त संबंधित बीमारी, नासूर, जिगर, पित्त, अमाशय, भगंदर और फोड़े फुंसी इत्यादि का विचार मंगल से किया जाता है।बुध- चेचक, नाड़ियों की कमजोरी, जीभ और दांत इत्यादि रोगों का विचार किया जाता है! बृहस्पति- पेट की गैस और फेफड़े की बीमारियों का विचार किया जाता है। शुक्र-त्वचा, दाद, खाज, खुजली इत्यादि रोगों का विचार किया जाता है। शनि नेत्र रोग और खाँसी इत्यादि रोगों का विचार किया जाता है। राहु-बुखार, दिमागी समस्या, अचानक चोट लगना दुर्घटना इत्यादि रोगों का विचार किया जाता है।केतु रीढ़, जोड़ो का दर्द, शुगर, कान, स्वप्नदोष, हार्निया, गुप्तांग सम्बन्धित रोगों का विचार किया जाता है। इस प्रकार हम किसी भी व्यक्ति के शारीरिक रोगों का विचार किया जाता है।

Leave a Reply