कोलकाता- यूरिनरी ट्रैक्ट के एडवांस्ड ट्यूबरकुलोसिस टीबी से पीड़ित मरीज का किडनी ट्यूब यूरेटर और यूनिनरी ब्लैडर के लिए भारत का पहला लैपरोस्कोपिक रिकंस्ट्रक्शन इलियल यूरेटर रिप्लेसमेंट के साथ लैपरोस्कोपिक ऑग्मेंटेशन सिस्टोप्लास्टी किया गया। फोर्टिस कोलकाता में लैपरोस्कोपिक यूरोसर्जन, डॉ. आर. के. गोपालकृष्णा और उनकी टीम ने एक 48 वर्षीय मरीज की अत्यधिक गंभीर और चुनौतीपूर्ण सर्जरी की। मेडिकल रिकॉर्ड्स के मुताबिक यह भारत में की गई अपनी तरह की पहली सर्जरी है।दुर्गापुर निवासी मरीज आशिम कुमार साहा पिछले छः माह से फोर्टिस कोलकाता में यूरिनरी ट्रैक्ट के एडवांस्ड टीबी का इलाज करा रहा था। इस बीमारी से उसकी किडनी, यूरिनरी ब्लैडर और यूरेटर प्रभावित हो गए थे, जो फाईब्रोज़ होकर सिकुड़ गया था और बाईं ओर की किडनी का रास्ता पूरी तरह से बंद हो गया था। जहाँ ब्लैडर की सामान्य क्षमता 400 मिली. से 500 मिली. की होती है, वहीं उसका यूरिनरी ब्लैडर सिकुड़कर 150 मिली. तक की क्षमता का रह गया था, जो ओरिज़नल आकार का एक तिहाई था। मरीज को मूत्र त्यागने में मुश्किल हो रही थी, उसे रात में बार-बार, आठ बार तक पेशाब आती थी, और पेशाब करने में पीड़ा भी होती थी। उसके बाईं ओर के किडनी ट्यूब में रुकावट आ गई थी, और केवल दाईं ओर की किडनी ही ठीक तरह से काम कर पा रही थी। इससे पहले इस तरह की समस्या में यूरेटर और ब्लैडर के रिकंस्ट्रक्शन के लिए डॉक्टर ओपन सर्जरी की पारंपरिक विधि का इस्तेमाल करते आए थे, क्योंकि यह जटिल और गंभीर रिकंस्ट्रक्शन होता है। लेकिन फोर्टिस कोलकाता के डॉक्टर्स ने नई विधि अपनाई और लैपरोस्कोपी की मिनिमली इन्वेज़िव विधि द्वारा सर्जरी करना तय किया।डॉ. आर.के. गोपालकृष्णा, लैपरोस्कोपिक यूरोसर्जन, फोर्टिस कोलकाता, आनंदपुर ने कहा, मरीज अत्यधिक पीड़ा में था और हर बीतते दिन के साथ उसकी स्थिति खराब होती जा रही थी। ब्लैडर की सामान्य क्षमता दोबारा प्राप्त करने और बाईं ओर के क्षतिग्रस्त यूरेटर को ठीक करने के लिए यूरिनरी ब्लैडर का लैपरोस्कोपिक रिकंस्ट्रक्शन ही एकमात्र विकल्प बचा रह गया था। आम तौर से इस तरह का रिकंस्ट्रक्शन ओपन सर्जरी द्वारा किया जाता है, जिसमें पेट में एक बड़ा चीरा लगाया जाता है, और मरीज को एक हफ्ते से ज्यादा समय तक अस्पताल में रखा जाता है। इस मामले में सर्जरी पूरी तरह से लैपरोस्कोपी की मदद से की गई थी, जिसमें पेट में चार छोटे-छोटे सुराख किए गए थे। पैसेज के रिकंस्ट्रक्शन का यह पहला मामला नहीं था, लेकिन लैप्रोस्कोपी की मदद से ऐसा पहली बार किया गया। इसके अलावा पारंपरिक विधि में आँत को सिलने के लिए एक स्टेपलर डिवाईस का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन हमने हाथों से टाँके लगाकर आँत की सिलाई की। ऐसा पहली बार हुआ था जब सिलाई के लिए स्टेपलर का इस्तेमाल नहीं किया गया था, जिससे स्टेपलर की लागत भी बची। ओपन सर्जरी की तुलना में लैपरोस्कोपिक सर्जरी के कई फायदे हैं। ओपन सर्जरी में जोखिम शामिल होते हैं, बड़ा चीरा लगने के कारण दर्द, धीरे-धीरे ठीक होना, और ऑपरेशन के बाद हर्निया की समस्या होना आम है। लैपरोस्कोपिक सर्जरी रोबोटिक सर्जरी की तरह है, लेकिन इसमें खर्च बहुत कम आता है।मरीज अशीम कुमार साहा ने कहा, ‘‘मैं रोजी-रोटी के लिए ऑटो रिक्शा चलाता हूँ। ट्यूबरकुलोसिस ने मेरे ब्लैडर का आकार कम कर दिया था और किडनी को आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया था; मुझे काफी पीड़ा थी और बार-बार पेशाब करने की जरूरत पड़ती थी, जिससे मेरा काम और आय प्रभावित होते थे। फोर्टिस हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने लैपरोस्कोपिक रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी कराने का सुझाव दिया ताकि मैं कम दर्द के साथ तेजी से ठीक हो सकूँ। सर्जरी के बाद अब मेरे ब्लैडर की क्षमता बढ़ गई है और मुझे बार-बार पेशाब नहीं लगती है।