लखनऊ- इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की नगर निकाय चुनाव संबंधी मसौदा अधिसूचना को रद्द करते हुए राज्य में नगर निकाय चुनाव बिना ओबीसी अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण के कराने का आदेश दिया। इसके साथ ही पीठ ने राज्य सरकार एवं राज्य चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि पिछड़ा वर्ग की सीटों को सामान्य श्रेणी की सीटें मानते हुए स्थानीय निकाय चुनाव को 31 जनवरी, 2023 तक संपन्न करा लिया जाए। न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने यह आदेश दिया। इस फैसले से राज्य में शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राज्य सरकार ने कहा है कि इस मामले में आयोग गठित कर ट्रपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी और इसके उपरांत ही नगर निकाय चुनाव सम्पन्न कराया जाएगा। उसने कहा कि यदि जरूरी हुआ तो उच्चतम न्यायालय में भी सरकार अपील करेगी। वहीं मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी ने इसे पिछड़ों के हक पर कुठाराघात बताते हुए कहा है कि भाजपा निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के विषय पर घडय़िाली सहानुभूति दिखा रही है। बहुजन समाज पार्टी ने भी फैसले के बाद सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में शहरी स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा पांच दिसंबर को तैयार मसौदा अधिसूचना को रद्द करते हुए निकाय चुनाव को बिना ओबीसी आरक्षण के कराने के आदेश दिए हैं। उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार ट्िरपल टेस्ट फॉर्मूले के बिना सरकार द्वारा तैयार किए गए ओबीसी आरक्षण के मसौदे को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर उच्च न्यायालय का यह फैसला आया। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि उच्चतम न्यायालय ने 12 साल पहले सरकार को ट्रपल टेस्ट फॉर्मूला अपनाने की बात कही थी किंतु इतना लंबा समय बीतने के बाद भी उक्त आदेश का अनुपालन नहीं किया गया। उसने कहा कि जब तक ट्रपल टेस्ट में बताई गई सारी बातों को राज्य सरकार पूरा नहीं करती तब तक पिछड़ा वर्ग के नागरिकों को निकाय चुनावों में आरक्षण उपलब्ध नहीं कराया जाएगा। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि तमाम निकायों का कार्यकाल खत्म हो चुका है और कुछ का 31 जनवरी 2023 तक खत्म हो जाएगा, ऐसे में जबकि ट्रपल टेस्ट की कार्यवाही कराना बहुत ही दुष्कर है और इसमें काफी लंबा वक्त लगेगा तो यही उचित होगा कि राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग स्थानीय निकाय चुनाव करने के लिए तत्काल अधिसूचना जारी करे। खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव में अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं को संविधान में प्रदत्त व्यवस्था के अनुरूप आरक्षण प्रदान किया जाएगा जबकि सरकार ने अभी तक इस चुनाव के लिए जो सीटें पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित की थी उन्हें सीटें सामान्य श्रेणी के लिए मान कर अधिसूचना जारी की जाए। अधिसूचना जारी करने के कारण के बारे में विस्तार से बताते हुए उच्च न्यायालय ने कहा, भारत के संविधान के अनुच्छेद 243-यू में कहा गया है कि एक नगर पालिका का गठन करने के लिए इसकी अवधि समाप्त होने से पहले निर्वाचन पूरा किया जाएगा। खंडपीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा कि जब डेडीकेटेड कमीशन बनाकर पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के विषय पर मंथन हो तो ऐसे में थर्ड जेंडर को पिछड़ा वर्ग में आरक्षण देने के बारे में भी विचार किया जाए।अदालत ने राज्य सरकार द्वारा गत 12 दिसंबर को जारी उस शासनादेश को भी खारिज कर दिया जिसके जरिए निकाय का कार्यकाल खत्म होने पर वहां प्रशासक नियुक्त करने की बात कही गई थी। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के एक आदेश के आधार पर उक्त व्यवस्था बनाई है जबकि वह आदेश केवल एक वर्ष के लिए 2011 में था जिसे आगे लागू नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि जिन निकायों का कार्यकाल खत्म हो रहा है वहां जिलाधिकारी की अध्यक्षता में कमेटी बनाई जाए यह कमेटी दिन-प्रतिदिन के कार्यों को देखेगी परंतु कोई पॉलिसी निर्णय नहीं लेगी। गौरतलब है कि लखनऊ पीठ ने एक पखवाड़े से रुके नगर निकाय चुनाव के मुद्दे पर शनिवार को सुनवाई पूरी कर ली थी और कहा था कि वह 27 दिसंबर को अपना फैसला सुनाएगी। अदालत ने मुकदमे की प्रकृति के कारण शीतकालीन अवकाश के बावजूद मामले में सुनवाई की। राज्य सरकार ने इस महीने की शुरुआत में त्रिस्तरीय नगर निकाय चुनाव में 17 नगर निगमों के महापौरों, 200 नगर पालिका परिषदों के अध्यक्षों और 545 नगर पंचायतों के लिए आरक्षित सीटों की अनंतिम सूची जारी करते हुए सात दिनों के भीतर सुझावाआपत्तियां मांगी थी और कहा था कि सुझावाआपत्तियां मिलने के दो दिन बाद अंतिम सूची जारी की जाएगी। राज्य सरकार ने पांच दिसंबर के अपने मसौदे में नगर निगमों की चार महापौर सीट ओबीसी के लिए आरक्षित की थीं, जिसमें अलीगढ़ और मथुरा-वृंदावन ओबीसी महिलाओं के लिए और मेरठ एवं प्रयागराज ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थे। दो सौ नगर पालिका परिषदों में अध्यक्ष पद पर पिछड़ा वर्ग के लिए कुल 54 सीट आरक्षित की गई थीं जिसमें पिछड़ा वर्ग की महिला के लिए 18 सीट आरक्षित थीं। राज्य की 545 नगर पंचायतों में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित की गईं 147 सीट में इस वर्ग की महिलाओं के लिए अध्यक्ष की 49 सीट आरक्षित की गई थीं।उच्च न्यायालय का आदेश आने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि सरकार नगर निकाय सामान्य निर्वाचन के परिप्रेक्ष्य में आयोग गठित कर ट्रपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएगी। बयान में उन्होंने कहा कि इसके उपरान्त ही नगर निकाय चुनाव सम्पन्न कराया जाएगा और यदि आवश्यक हुआ तो राज्य सरकार उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील भी करेगी। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने फैसला आने के बाद ट्वीट कर कहा कि नगर निकाय चुनाव के संबंध में उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश का विस्तृत अध्ययन कर विधि विशेषज्ञों से परामर्श के बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा,परंतु पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा। सत्तारूढ़ भाजपा के सहयोगी अपना दल के कार्यकारी अध्यक्ष और उप्र सरकार के मंत्री आशीष पटेल ने बातचीत में कहा कि ओबीसी आरक्षण के बिना निकाय चुनाव किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। हम इस संदर्भ में लखनऊ उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का अध्ययन कर रहे हैं। जरूरत पड़ी तो पार्टी पिछड़ों के हक के लिए उच्चतम न्यायालय में अपील करेगी। सपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने फैसला आने के बाद ट्वीट किया, भाजपा निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के विषय पर घडय़िाली सहानुभूति दिखा रही है। आज भाजपा ने पिछड़ों के आरक्षण का हक़ छीना है, कल भाजपा बाबा साहब द्वारा दिए गए दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी। उन्होंने आरक्षण को बचाने की लड़ाई में पिछड़ों व दलितों से सपा का साथ देने की अपील की है। वरिष्ठ सपा नेता एवं पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने ट्वीट किया, उत्तर प्रदेश निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण की समाप्ति का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। सामाजिक न्याय की लड़ाई को इतनी आसानी से कमजोर होने नहीं दिया जा सकता है। आरक्षण पाने के लिए जितना बड़ा आंदोलन करना पड़ा था, उससे बड़ा आंदोलन इसे बचाने के लिए करना पड़ेगा। कार्यकर्ता तैयार रहें। अदालत के फैसले के बाद बसपा अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने ट्वीट किया, उत्तर प्रदेश में बहुप्रतीक्षित निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग को संवैधानिक अधिकार के तहत मिलने वाले आरक्षण को लेकर सरकार की कारगुजारी का संज्ञान लेने सम्बंधी उच्च न्यायालय का फैसला सही मायने में भाजपा एवं उनकी सरकार की ओबीसी एवं आरक्षण-विरोधी सोच व मानसिकता को प्रकट करता है। मायावती ने लिखा, उत्तर प्रदेश सरकार को उच्चतम न्यायालय के निर्देश का पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी से अनुपालन करते हुए ट्रपल टेस्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था को समय से निर्धारित करके चुनाव की प्रक्रिया को अंतिम रूप देना था, जो सही से नहीं हुआ। इस गलती की सजा ओबीसी समाज भाजपा को जरूर देगा।