पटना. बिहार में विधान सभा चुनाव से 9 महीने पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच पोस्टर वार छिड़ गया है और RJD-JDU के लोग 15 साल के लालू-राबड़ी राज और 15 वर्ष के नीतीश कुमार के शासन काल की तुलना कर रहे हैं. जाहिर है दोनों ही पक्ष के लोग एक दूसरे को खुद से बेहतर बताते हुए आगामी विधान सभा चुनाव में जनता के बीच जाने की रणनीति के तहत आगे बढ़ रहे हैं. हालांकि दोनों ही पक्षों में एक खास फर्क उस फेस को लेकर है जिसके दम पर वे चुनाव मैदान में कूदेंगे.
जानकार बताते हैं कि एनडीए की ओर से तो चेहरे को लेकर कोई कन्फ्यूजन नहीं है क्योंकि सीएम नीतीश कुमार के नाम पर सहमति बन गई है. लेकिन, महागठबंधन में तेजस्वी यादव के चेहरे पर अभी भी पूर्ण सहमति नहीं बन पाई है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि राजद के जदयू के राजनीतिक पोस्टरों में चल रहा नीतीश Vs लालू की लड़ाई ही क्या आगामी विधानसभा चुनाव में भी दिखने को मिलेगी? क्या लालू यादव के नाम पर चुनावी लड़ाई में खुद को अधिक मजबूत पाती है आरजेडी?
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि दरअसल इसका कारण ये है कि एक वक्त ऐसा भी था जब तेजस्वी यादव का बिहार की राजनीति में उठान दिख रहा था और प्रदेश के यादव-मुस्लिम समाज ने उन्हें एक्सेप्ट भी कर लिया था. तब वे बिहार के एक यूथ लीडर के तौर पर उभर भी रहे थे, लेकिन लोक सभा चुनाव के बाद उनका ग्राफ तेजी से गिरने लगा.
मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि ऐसे समय में जब बिहार को एक मजबूत प्रतिपक्ष के नेता की जरूरत थी तब पता नहीं वे किन कारणों से बिहार की जनता से अलग रहे. जाहिर है जब लालू के छोटे बेटे का ग्राफ गिरा तो आरजेडी के लोगों को लगा कि तेजस्वी को नीतीश के मुकाबले खड़ा करने में बड़ा गैप है.
बकौल मणिकांत ठाकुर पुराने लोग ये मानते हैं कि लालू नाम ही आरजेडी की सबसे बड़ी पूंजी है. वो जेल में हों या फिर कहीं भी हों, उन्हीं के दम पर आरजेडी की राजनीति चलेगी. तेजस्वी यादव तो फिलहाल लालू यादव के आस-पास भी कहीं नहीं दिखते हैं. अभी भी जब भी मौका आता है तो लोग तेजस्वी-नीतीश की बात नहीं करते हैं, लालू-नीतीश की ही बात करते हैं.
वहीं वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि आरजेडी में लालू का जो कद है उसके अनुपात में कोई दूसरा नहीं है. लालू यादव जेल में हैं तो भी नीतीश कुमार को काउंटर करने के लिए वे ही जरूरी हैं. माइनस लालू जेडीयू के सामने आरजेडी कुछ भी नहीं है. बीते दो चुनावों में ये साबित हो चुका है.बकौल अशोक कुमार शर्मा पोस्टर वार में लालू का नाम आगे करने के पीछे दूसरी वजह ये भी है कि लालू का नाम आगे रखकर कई कारणों से असंतुष्ट सीनियर नेताओं को संतुलित रखा जा सकता है. जाहिर है आरजेडी लालू यादव के नाम पर पार्टी में एकता अनुशासन बनाए रखना चाहती है क्योंकि उसे डर है कि तेजस्वी के नाम पर शायद सीनियर नेताओं में कुछ दुविधा है.