नई दिल्ली- आज दुनिया के देशों के बीच जो रुखा और आक्रामक रवैया देखने को मिल रहा है उसे संस्कृति के आदान प्रदान के जरिए बड़ी ही सहजता से ठीक किया जा सकता है। स्माइल फाउंडेशन के सह संस्थापक शांतनु मिश्रा का कहना है कि रचनात्मकता की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से कोई खतरा नहीं है और किसी भी रचनात्मक इंसान को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सामने अपने आपको छोटा महसूस नहीं करना पड़ेगा। स्माइल फाउंडेशन ने युरोपियन यूनियन के सहयोग से आज दसवें – ‘स्माइल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल फॉर चिल्ड्रन एंड यूथ’ (SIFFCY) का उद्घाटन किया। युरोपियन यूनियन के एम्बेसडर श्री हर्वे डेल्फ़िन आज पीएचडी चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज में चार दिवसीय कार्यक्रम के उद्घाटन पर उपस्थित थे। उनके अलावा कई यूरोपीय देशों के राजनयिकों ने भी इस कार्यक्रम बढ़ाई। युरोपियन यूनियन के इस कार्यक्रम में सक्रिय भाग लेने से भारत और युरोपियन यूनियन के देशों के नागरिकों के बीच संस्कृति का आदान प्रदान होगा जिसकी वजह से लोगों के बीच एक समझदारी, आदर और विश्व बंधुत्व की भावना को बल मिलेगा और इसका सीधा फायदा यह होगा कि झगड़ों और आक्रामकता वाले विचारों पर लगाम लगेगी। संस्कृति के आदान प्रदान से लोगों के बीच में जो अपनत्व की भावना उपजती है वो कूटनीति द्वारा बनाये गए रिश्तों से कहीं अधिक मजबूत होती है।आज सोशल मीडिया पर जो भी कंटेंट परोसा जा रहा है उसमें से एक बड़ा हिस्सा इस बात पर जोर देता है कि कैसे किसी उत्पाद अथवा सेवा की मार्केटिंग की जाए। ऐसे में स्माइल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल फॉर चिल्ड्रन एंड यूथ उन युवाओं को वापस समाज की भलाई की दिशा में सोचने की राह दिखाने का प्रयास है। क्यूंकि रचनात्मकता के जरिए युवाओं और बच्चों के मन पर सकारात्मक छाप छोड़ने का काम बड़ा ही आसान हो जाता है।ऐसे कार्यक्रम जहाँ कई संस्कृतियों का आदान प्रदान होता है वहां दोनों तरफ के लोगों को एक दूसरे की संस्कृतियों को पास से जानने समझने का मौका मिलता है और आगे चलकर जनमानस में सकारात्मकता का संचार होता है। SIFFCY युवा दिमागों के मनोरंजन, संलग्न, शिक्षित और सशक्त बनाने के लिए स्माइल फाउंडेशन की एक पहल है। स्माइल फाउंडेशन का मानना है कि फिल्में सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करती बल्कि कई बार युवाओं के मन पर ऐसी छाप छोड़तीं हैं कि उनके सोचने समझने का नजरिया और समाज के प्रति उनके कर्त्तव्य बोध में एक सकारात्मक परिवर्तन लाती है। फिल्में वास्तविकता को चित्रित करने और मूल्य का अनुकरण करने का सबसे शक्तिशाली माध्यम है। युवाओं के बीच महत्वपूर्ण व्यक्तिगत, सामाजिक, नैतिक और वैश्विक मुद्दों के बारे में चर्चा को प्रोत्साहित करने के लिए फिल्म एक दिलचस्प और आकर्षक विकल्प बन जाती है।शांतनु मिश्रा का मानना है कि बचपन मानव जीवन की निर्णायक उम्र है – जो सबक हम सीखते हैं, जो आदतें हम बच्चों के रूप में बनाते हैं, वे हमेशा हमारे साथ रहते हैं। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम शुरू से ही युवाओं को एक सकारात्मक मूल्य प्रणाली के प्रति संवेदनशील बनाएं जो उन्हें जिम्मेदार नागरिक और अच्छे इंसान बनने में मदद करे। SIFFCY के माध्यम से, हम इसे हासिल करने और युवा दिमागों को प्रेरित करने के लिए सिनेमा के शक्तिशाली माध्यम का उपयोग करते हैं। विचार सिर्फ फिल्मों को प्रदर्शित करने का नहीं है, बल्कि एक कदम आगे जाकर बच्चों और युवाओं को चर्चा करने, सवाल करने और आकर्षक कार्यशालाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना है जो उन्हें अपने आसपास की दुनिया को अलग तरह से देखने में मदद करते हैं। स्माइल फाउंडेशन का मानना है कि शिक्षा बेहतर जीवन का साधन और अंत दोनों है। साधन क्योंकि यह व्यक्ति को अपनी आजीविका कमाने के लिए सशक्त बनाती है और लक्ष्य इसलिए क्योंकि यह कई मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाती है। शिक्षा सबसे प्रभावी उपकरण है जो बच्चों को एक मजबूत नींव बनाने में मदद करती है, उन्हें अज्ञानता, गरीबी और बीमारी के दुष्चक्र से मुक्त होने में सक्षम बनाने में अहम भूमिका अदा करती है।