नई दिल्ली – अटोरियम फाउंडेशन द्वारा प्रस्तुत नृत्य नाटिका ‘चित्रांगदा स्त्री की सर्वोच्च ध्वनि’ ने राजधानी के दर्शकों के हृदय को गहराई से छू लिया। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की कालजयी रचना पर आधारित यह मंचन केवल एक सांस्कृतिक प्रस्तुति नहीं, बल्कि नारीत्व,आत्मबोध और सामाजिक पहचान की एक सशक्त अभिव्यक्ति बनकर सामने आया। कथक, मयूरभंज छाऊ और उदय शंकर स्टाइल जैसी विविध नृत्य शैलियों का मोहक संयोजन, प्रतीकात्मक मंच सज्जा और दिवेंदु घोष की मूल संगीत रचना ने इस प्रस्तुति को एक समृद्ध और प्रभावशाली रंगमंचीय अनुभव में परिवर्तित कर दिया। युद्धभूमि की वीरता से लेकर आत्म-स्वीकृति की यात्रा तक, चित्रांगदा की कहानी को अत्यंत भावनात्मक गहराई के साथ प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई, जिसे प्रख्यात नृत्यांगना और पद्मश्री से सम्मानित प्रतिभा प्रह्लाद ने संपन्न किया। इस शुभारंभ ने पूरे कार्यक्रम को एक गरिमामय भाव प्रदान किया और कला प्रेमियों व विशिष्ट अतिथियों का पारंपरिक स्वागत हुआ। निर्देशक राहुल रे ने कहा, “चित्रांगदा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी अपने समय में थी। हर वह महिला जो अपनी पहचान खुद गढ़ना चाहती है, वह कहीं न कहीं चित्रांगदा ही है। दर्शकों की प्रतिक्रिया ने इस बात को और भी स्पष्ट कर दिया। कोरियोग्राफर निशा रे ने बताया,शास्त्रीय और समकालीन नृत्य रूपों, विशेषकर कथक, मयूरभंज छाऊ और उदय शंकर स्टाइल, ने हमें चित्रांगदा के भीतर की जटिलताओं को उजागर करने का एक सशक्त माध्यम दिया। वह सिर्फ एक योद्धा या प्रेमिका ही नहीं, बल्कि एक नेता और सबसे पहले एक औरत है। प्रस्तुति के समापन पर कलाकारों को प्रशस्ति पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया।अटोरियम फाउंडेशन सदैव कला के माध्यम से सामाजिक संवाद को बढ़ावा देने की दिशा में कार्यरत रहा है। चित्रांगदा स्त्री की सर्वोच्च ध्वनि इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए नारी अस्मिता, आत्मबल और स्वतंत्रता की बुलंद आवाज बनकर सामने आई। इस प्रस्तुति ने दर्शकों को यह सोचने पर विवश किया कि आज की नारी भी चित्रांगदा की ही तरह बार-बार अपने अस्तित्व और आत्मबल को सिद्ध करने के लिए संघर्ष कर रही है।