चंपावत-आजादी के अमृत महोत्सव का जोश शुक्रवार को उत्तराखंड के चंपावत जिले के मां बाराही धाम देवीधुरा में खेले गए रोमांच से भरपूर प्रसिद्ध पाषाणयुद्ध बग्वाल में भी देखने को मिला जहां बग्वाली वीर र्फों और लठ्ठों के साथ तिरंगा हाथ में लेकर मैदान में पहुंचे। कोरोना प्रतिबंधों के चलते दो साल के अंतराल के बाद हुए बग्वाल के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी साक्षी बने। इस दौरान, उन्होंने मां बाराही मंदिर में विधि-विधान से पूजा कर उनका आशीर्वाद लिया और राज्य की खुशहाली की कामना की। बग्वाल हर साल रक्षाबंधन के दिन खेला जाता है। बग्वाल देखने के लिए देवीधुरा में बडा जनसैलाब उमड़ पड़ा जहां पत्थरों का युद्ध 11 मिनट तक चला। यह दोपहर एक बजकर 50 मिनट पर शुरू हुआ जो दो बजकर एक मिनट तक चला। उसमें कुछ दर्शकों सहित 200 से ज्यादा बग्वाली वीर घायल हो गए। बाद में बग्वाल में घायल हुए लोगों का उपचार किया गया। इस मौके पर धामी ने कहा कि रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर देवीधुरा में होने वाले बग्वाल की ख्याति पूरे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है। मान्यता है कि अनादिकाल में देवीधुरा के बाराही धाम में नरबलि देने की परंपरा थी जहां गहड़वाल, चमियाल, वालिक और लमगडिया खाम गुट से जुड़े लोग बारी-बारी से इस परंपरा को निभाते थे। एक बार जब चमियाल खाम की बारी आई तो उनके यहां बुढिया दादी एवं एक पोता ही बचे रह गए। तब बुढय़िा की प्रार्थना पर नरबलि की जगह आपस में खामों द्वारा एक दूसरे के ऊपर पत्थरों से युद्ध करने का निर्णय हुआ और तय किया गया कि युद्ध तब तक चलेगा जब तक कि एक व्यक्ति के बराबर रक्त न बह जाए। तब से ही इस परंपरा को बग्वाल कहा जाने लगा।इस परंपरा में गहड़वाल और चमियाल खाम बाजार क्षेत्र और लमगडिया और वालिक खाम मंदिर क्षेत्र की ओर से बाराही मंदिर के खोलीखांड दुर्बाचौड़ मैदान में बग्वाल पत्थर युद्ध करते आए है।
इस बार बग्वाल खेलने वाले बग्वाली वीर र्फों और लठ्ठों के साथ ही तिरंगा लेकर मैदान में पहुंचे।