कोच्चि- केरल उच्च न्यायालय ने एक एनआईए अदालत के 2013 के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें लश्कर-ए-तैयबा के संदिग्ध सदस्य तदियांताविदे नसीर सहित 10 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। यह मामला भारत के खिलाफ युद्ध छेडऩे के लिए जम्मू कश्मीर के आतंकी शिविरों में केरल के युवाओं को भर्ती किए जाने से संबंधित है। उच्च न्यायालय ने उनकी सजा को बरकरार रखते हुए कहा, जिन लोगों के विचार इस तरह के कट्टरपंथी हैं, उनके लिए हम केवल यह कह सकते हैं कि दूर के ढोल सुहाने लगते हैं अगर आप इतिहास को देखें। राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण एनआईए अदालत ने भारत के खिलाफ युद्ध छेडऩे और देश के खिलाफ साजिश रचने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 121 और 121ए के तहत 13 लोगों को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति सी. जयचंद्रन की पीठ ने 13 में से 10 अभियुक्तों की दोषसिद्धि और सजा को कायम रखा और शेष तीन अभियुक्तों एम. एच. फैसल, उमर फारूक और मोहम्मद नवास को बरी कर दिया। पीठ ने 10 आरोपियों को आपराधिक साजिश रचने, भारत के खिलाफ युद्ध छेडऩे के लिए हथियार एकत्र करने और भादंसं की धारा 120बी, 122 और 124ए के तहत देशद्रोह के लिए भी दोषी ठहराया। इनमें से प्रत्एक अपराध के लिए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उच्च न्यायालय ने हालांकि कहा कि उम्रकैद की सजाएं साथ-साथ चलेंगी। अपने 205 पृष्ठों के फैसले में उच्च न्यायालय ने एनआईए अदालत द्वारा दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ 10 अभियुक्तों की अपील को भी खारिज कर दिया।