नई दिल्ली – त्रिवेणी कला संगम, मंडी हाउस में एक भावपूर्ण संध्या के दौरान ‘आयाम’ संस्था द्वारा आयोजित भरतनाट्यम एकल नृत्य नाटिका “संदेह – निःसंदेह” ने श्रद्धा और संदेह के बीच की गहन यात्रा को प्रस्तुत किया। युवा प्रतिभा ईशा अग्रवाल ने गुरु श्रीमती सिंधु मिश्रा के मार्गदर्शन में इस प्रस्तुति को साकार किया, जिसने रामचरितमानस के आध्यात्मिक संदेश को नृत्य के माध्यम से जीवंत कर दिया।पौराणिक कथाओं और दार्शनिक विचारों के संयोजन से सजी इस प्रस्तुति ने अनिश्चितता से दृढ़ विश्वास तक के भावनात्मक और आत्मिक संघर्षों को बारीकी से उकेरा। ईशा अग्रवाल ने अपनी सधी हुई अभिव्यक्ति और भावनात्मक गहराई के माध्यम से आत्मा के अंतर्द्वंद्व को खूबसूरती से मंच पर उतारा, जो दर्शकों के दिलों तक गूंज उठा।परंपरागत भरतनाट्यम शैली में प्रस्तुत “संदेह – निःसंदेह” की संगीत संरचना भी उतनी ही समृद्ध रही, जिसमें कर्नाटिक और हिंदुस्तानी संगीत की सुंदर संगति ने प्रस्तुति में और भी गहराई ला दी। दक्ष संगीतज्ञों द्वारा प्रस्तुत सूक्ष्म और भावपूर्ण धुनों ने दर्शकों को एक आध्यात्मिक अनुभूति का अवसर प्रदान किया।गुरु सिंधु मिश्रा ने इस अवसर पर कहा, “‘संदेह – निःसंदेह’ केवल एक नृत्य प्रस्तुति नहीं है, यह आत्मा और परमात्मा के बीच संवाद स्थापित करने का एक प्रयास है। यह मानव आत्मा के संघर्षों और विजय की शाश्वत कथा को स्पर्श करता है।”इस नृत्य नाटिका ने न केवल अपनी सौंदर्यपूर्ण प्रस्तुति से बल्कि अपने गहन भावनात्मक कथ्य से भी दर्शकों को मोहित किया। दर्शन, पौराणिकता और शास्त्रीय नृत्य की बुनावट ने एक ऐसा ताना-बाना रचा जो हृदय और मस्तिष्क दोनों को समान रूप से स्पर्श कर गया। ईशा अग्रवाल के उत्कृष्ट अभिनय और तकनीकी कौशल की दर्शकों ने भूरी-भूरी प्रशंसा की, जो उनके शास्त्रीय नृत्य जगत में उभरते स्थान को और सुदृढ़ करता है।रामचरितमानस की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि में रचित “संदेह – निःसंदेह” ने यह स्मरण कराया कि आस्था में परिवर्तन की शक्ति कितनी गहन हो सकती है। इस भावपूर्ण संध्या का समापन दर्शकों के खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ हुआ, जिसने सभी के हृदयों को छू लिया और उन्हें एक आत्मिक चेतना से भर दिया।

Leave a Reply