नई दिल्ली – भारतीय शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम की गरिमामयी परंपरा में एक और स्वर्णिम अध्याय जुड़ गया, जब पद्मश्री एवं संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित गुरु विदुषी गीता चंद्रन की शिष्या अन्विता जैन ने अपना ‘अरंगेत्रम’ एकल भरतनाट्यम प्रस्तुति को चिन्मय मिशन ऑडिटोरियम, नई दिल्ली में प्रस्तुत किया।नाट्य वृक्ष संस्था द्वारा आयोजित इस विशेष अवसर पर 300 से अधिक रसिक, कला प्रेमी, सांस्कृतिक क्षेत्र की हस्तियां एवं नृत्य जगत के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। इस सांस्कृतिक संध्या की शोभा बढ़ाने के लिए विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रख्यात लोकगायिका श्रीमती मालिनी अवस्थी मुख्य अतिथि रहीं। कार्यक्रम की शुरुआत पुष्पांजलि से हुई जो ईश्वर को समर्पित एक पारंपरिक नृत्यांजलि है। इसके पश्चात अलारिप्पु में अन्विता ने गति और ताल के सामंजस्य को दर्शाया। जतीस्वरम के माध्यम से उन्होंने जटिल लयों पर अपनी पकड़ दिखाई, जबकि संध्या के प्रमुख भाग ‘ वर्णम ‘ में उन्होंने अपनी अभिव्यक्तिपूर्ण अभिनय (अभिनय) क्षमता और थकान सहन करने की क्षमता से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।प्रस्तुति के दूसरे भाग में ‘थाये यशोदा’ में बालकृष्ण की चंचल लीलाओं को सजीव किया गया। साथ ही, 16वीं शताब्दी की ब्रज भाषा रचना ‘चाकर’ में मीरा बाई के भक्ति भावों को अन्विता ने अत्यंत कोमलता और भावनात्मक गहराई के साथ प्रस्तुत किया। समापन ‘तिल्लाना’ के साथ हुआ, जो उत्सव और आनंद का प्रतीक है। अरंगेत्रम’ जिसका अर्थ है ‘मंच पर पहला प्रवेश’ केवल एक प्रस्तुति नहीं, बल्कि एक शिष्य के लिए गुरु द्वारा प्रदत्त दीक्षा का सार्वजनिक प्रमाण है। नाट्य वृक्ष की परंपरा में यह गुरु-शिष्य संबंध के गहरे मूल्यों पर आधारित होता है। अन्विता, जिन्होंने मात्र सात वर्ष की आयु में अपनी नृत्य यात्रा आरंभ की थी, मंच पर केवल तकनीकी दक्षता ही नहीं बल्कि भावपूर्ण परिपक्वता और कलात्मक संवेदनशीलता के साथ उतरीं।यह प्रस्तुति न केवल अन्विता की साधना का परिणाम थी, बल्कि नाट्यवृक्ष की उस सांस्कृतिक प्रतिबद्धता का भी प्रतीक बनी, जो भारत की समृद्ध शास्त्रीय परंपरा को आने वाली पीढ़ियों तक संजोने और सहेजने के लिए सतत प्रयत्नशील है।

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