नई दिल्ली – प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक लक्ष्मी दास द्वारा लिखित आत्मकथा “संघर्ष की आपबीती” का विमोचन कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में प्रकाशक वी एल मीडिया सॉल्यूशंस द्वारा आयोजित किया गया। यह आयोजन प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तियों, साहित्य प्रेमियों और लक्ष्मी दास के प्रशंसकों को एक साथ लाने वाला एक यादगार अवसर बना।कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. एच.के. पाटिल, कर्नाटक सरकार के कानून और न्याय तथा संसदीय मामलों के मंत्री ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पद्म विभूषण डॉ. कर्ण सिंह थे। मंगत राम सिंघल एवं संसद सुधाकर सिंह विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। डॉ कर्ण सिंह ने कहा कि सयह पुस्तक लक्ष्मी दास जी के जीवन का सत्य है जो उनकी गांधीवादी तरीके से लिखी गई है। डॉ एच के पाटिल ने कहा कि सत्य लिखना बहुत कठिन होता है परंतु लक्ष्मी दास जी ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। अपने मार्मिक संबोधन में, लक्ष्मी दास ने पुस्तक लेखन की अपनी यात्रा और जीवन को आकार देने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं को साझा किया। एक समर्पित गांधीवादी के रूप में, उन्होंने आचार्य विनोबा भावे और अन्य महान विचारकों से प्रेरणा ली। पुस्तक में उनके सर्वोदय आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान और सामाजिक सुधारों व जमीनी स्तर के विकास में उनके प्रयासों को रेखांकित किया गया है। पुस्तक में उनके खादी और ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल को विशेष रूप से दर्शाया गया है, जिसमें ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देने और बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करने के उनके प्रयास शामिल हैं।आत्मकथा में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक अवधियों, विशेष रूप से इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नेतृत्व के दौरान की घटनाओं को शामिल किया गया है। यह भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में उनके योगदान के दौरान उनके संघर्षों और उपलब्धियों का जीवंत चित्र प्रस्तुत करती है। उन्होंने सहकारी आंदोलन में अपने अनुभव साझा किए, विशेष रूप से नेशनल फेडरेशन ऑफ अर्बन कोऑपरेटिव बैंक्स एंड क्रेडिट सोसाइटीज के अध्यक्ष और कांगड़ा कोऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष के रूप में, जहां उन्होंने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।अपने नाम “संघर्ष की आपबीती” के अनुरूप, यह पुस्तक लक्ष्मी दास के व्यक्तिगत और पेशेवर असफलताओं पर ईमानदारी से प्रकाश डालती है, जिससे पाठकों को एक दुर्लभ और सच्चा दृष्टिकोण प्राप्त होता है। उनकी असफलताओं के प्रति स्पष्टता ने इस आत्मकथा को गहराई प्रदान की है, जिससे यह दृढ़ता और सत्यनिष्ठा की प्रेरणादायक कहानी बनती है।प्रकाशक नित्यानंद तिवारी ने पुस्तक की सराहना करते हुए कहा,संघर्ष की आपबीती’ एक सच्चे और भावपूर्ण जीवन का चित्रण है, जो आत्मकथा शैली के साथ पूर्ण न्याय करती है।इस कार्यक्रम को विभिन्न क्षेत्रों के कई प्रतिष्ठित अतिथियों की उपस्थिति से सम्मानित किया गया, जिनमें गांधीवादी विचारधारा, सहकारी आंदोलन, प्राकृतिक चिकित्सा, शिक्षा, सामाजिक कार्य, पर्यावरण संरक्षण और राजनीति शामिल थे। प्रमुख अतिथियों में कंवर शेखर विजयेंद्र, ओ पी शर्मा, बी आर शर्मा, आचार्य याशी फुंसोक, डॉ. शंकर कुमार सान्याल, प्रो. धनंजय जोशी, प्रो. बी.एन. मिश्रा, डॉ अन्नामलाई, श्री संजय राय, पूर्व सांसद नरेश यादव, और डॉ. अजय कौशिक शामिल आदि गणमान्य थे।कार्यक्रम का संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ. अमना मिर्जा ने कुशलता और गरिमा के साथ किया। यह आयोजन लक्ष्मी दास के साहित्यिक योगदान, गांधीवादी आदर्शों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, और सहकारी आंदोलन में उनके प्रभावशाली योगदान का उत्सव था।